MP News: सिंगरौली में आवारा कुत्तों के बीच मिड डे मील खाने को मजबूर बच्चे, बर्तन भी खुद ही धोते हैं
सिंगरौली जिले के शासकीय माध्यमिक स्कूल चुरीपाठ गांव में बच्चे आवारा कुत्तों के बीच मिड डे मील खाने को मजबूर हैं. इतना ही नहीं खाने के बाद वो खुद बर्तन भी धोते हैं.
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Singrauli News: शिक्षा के अधिकार के तहत स्कूल आने वाले बच्चों को नियमित रूप से मिड-डे मील आहार देने के तौर तरीके पर सवाल खड़े हो रहे हैं. सरकार नारा दे रही है कि पढ़ेगा इंडिया तो बढ़ेगा इंडिया, लेकिन जिले के सरकारी स्कूलों में मिड डे मील ग्रहण करने के बाद नौनिहालों को बर्तन धोने पर विवश किया जा रहा है.
मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले के एक स्कूल में बच्चों को स्कूल परिसर में घूमने वाले आवारा कुत्तों के बीच मिड डे मील का भोजन करना पड़ रहा हैं. इस मामले में स्कूल के प्रधानाचार्य तीरथ सिंह ने मिड डे मील देने वाले समूह का पक्ष लेते हुए कहा कि मेरे द्वारा उन्हें समझा दिया गया है की आप लोग छात्रों से बर्तन न धुलवाए, रसोइयों को वेतन बहुत कम मिलता है, जिस वजह से ये लोग बर्तन साफ करने को तैयार नही है.
दरअसल, यह पूरा मामला सिंगरौली जिले के शासकीय माध्यमिक स्कूल चुरीपाठ गांव का है. जहां देश का भविष्य कहने वाले छात्र-छात्राओं को स्कूल से मिलने वाला मिड डे मील भोजन आवारा कुत्तों के बीच खाना पड़ रहा है. इसके साथ ही बच्चों को अपने खाने के बर्तन खुद साफ करने पड़ रहे है. वहीं, स्कूल के छात्रों का कहना है कि यह कोई पहला मौका नहीं कि उन्हें बर्तन साफ करने पड़ रहे हों. बल्कि वह जब से स्कूल में पढ़ रहे है, तभी से उन्हें अपने खाने के बर्तन स्कूल में धोना पड़ रहे है.
लापरवाही का शिकार स्कूल के बच्चे
वहीं, यह हालात आज की नहीं है. इस दौरान शासकीय स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों का कहना है कि जब से वह स्कूल में पढ़ रहे हैं, उन्हें इसी तरीके से आवारा कुत्तों के बीच जमीन पर बैठा कर उन्हें मिड डे मील भोजन करना पड़ता है. इसके साथ ही उन्हें अपने बर्तन भी खुद ही धोने पड़ते हैं. ऐसे में क्या करें मजबूरी है कि मिड डे मील भोजन करना है तो बर्तन भी धोने पड़ेंगे.
मामला सामने आने के बाद शिक्षा विभाग के सहायक संचालक एसबी सिंह ने कहा कि आपके माध्यम से हमें जानकारी मिली है, मामले की जांच कराकर कार्यवाही की जायेगी.
शिक्षा और स्कूलों को लेकर चिंतित दिखाई देने वाली शिवराज सरकार को नौनिहालों की बदहाल दशा पर संज्ञान लेना होगा. तभी मिड -डे मील जैसी स्कीम अपने मूल उद्देश्यों में सफल होगी.
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