Gwalior News: मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो गई है. सालों तक एक ही पार्टी में साथ रहे मध्य प्रदेश के दो राजघराने अब आमने-सामने हो गए हैं. केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के गढ़ में सेंध लगाने के लिए कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बेटे और दो बार विधायक बने जयवर्धन सिंह को मैदान में उतारने तैयारी है. विधानसभा चुनाव 2023 को लेकर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस लगातार हर मोर्चे पर निगाह रख रही है. केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह राजघराने से आते हैं. दोनों ही परिवार पिछले कई सालों से कांग्रेस में रहे है. हालांकि कांग्रेस में रहते हुए भी इन परिवारों के बीच शुरू से ही प्रतिस्पर्धा देखी गई है. 


अब केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी की ओर से प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, जबकि पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का कद कांग्रेस में कभी कम नहीं हुआ है. इस बार पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के पुत्र और विधायक जयवर्धन सिंह ग्वालियर-चंबल क्षेत्र की राजनीति में हस्तक्षेप कर रहे हैं. वे लगातार सिंधिया के गढ़ में सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसा माना जा रहा है कि ग्वालियर-चंबल संभाग की 34 विधानसभा सीटें ही सत्ता की कुंजी है. इन सीटों पर जिस पार्टी का दबदबा रहा, वह राजधानी भोपाल पर राज करेगी. 


बिकाऊ और टिकाऊ के बयान पर बवाल
पूर्व मंत्री जयवर्धन सिंह ग्वालियर-चंबल संभाग के दौरे के दौरान यह बयान दिया है कि जो कांग्रेस पार्टी में बिकाऊ थे वे चले गए हो और जो टिकाऊ है, वे संघर्ष कर रहे हैं. इस बयान को लेकर बवाल मच गया है. शिवराज सरकार के मंत्री सिंधिया समर्थक प्रद्युम्न सिंह तोमर ने पलटवार करते हुए कहा है कि गुलाम नबी आजाद सहित कई ऐसे नेता है. जो कांग्रेस छोड़कर चले गए हैं. कांग्रेस के नेताओं को यह बताना चाहिए कि गुलाम नबी आजाद टिकाऊ थे या फिर बिकाऊ? 


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सिंधिया और सिंह घर आने में पुरानी प्रतिस्पर्धा
केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के घराने में पुरानी प्रतिस्पर्धा चली आ रही है. यह प्रतिस्पर्धा कुछ दशक नहीं बल्कि सदियों पुरानी है. जब पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस में थे, उस समय भी पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और उनके बीच इशारे ही इशारे में कई बार कटाक्ष करने वाले बयान सामने आ चुके थे. कांग्रेस की 2018 में सत्ता जाने के बाद यह तक कहा जाने लगा था कि पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच मतभेद की वजह से कांग्रेस पर संकट छाया था. हालांकि अब अलग-अलग दल होने की वजह से खुलकर राजनीतिक बयान दिए जा रहे हैं.