Jabalpur News: डॉक्टर दंपति पर गिरी गाज, नियमों के खिलाफ नियुक्ति पाए जाने पर दोनों को किया गया बर्खास्त
डॉ. तृप्ति गुप्ता और उनके पति डॉ. अशोक साहू की 2014 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति हुई थी. दोनों की डिग्री और नियुक्ति को लेकर कई तरह के सवाल उठे और जांच भी हुई.
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MP News: नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कॉलेज (Subhash Chandra Bose Medical College) जबलपुर में पदस्थ प्रोफेसर दंपति को बर्खास्त कर दिया गया है. ईओडब्ल्यू (EOW) के छापे के बाद से चर्चा में आए बायोकेमिस्ट्री विभाग में प्रोफेसर डॉ. अशोक साहू (Ashok Sahu) और डॉ. तृप्ति गुप्ता (Tripti Gupta) पर यह कार्रवाई डीन कार्यालय द्वारा शुक्रवार को की गई. जारी आदेश में कहा गया है कि 14 साल पहले प्रोफेसर दंपति की नियुक्ति नियम खिलाफ तरीके से की गई थी.
EOW को छापेमारी में मिली थी करोड़ों की संपत्ति
यहां बता दें कि मध्य प्रदेश आयुर्विज्ञान विवि में डिप्टी रजिस्ट्रार रहीं डॉ. तृप्ति गुप्ता की प्रतिनियुक्ति इसी साल फरवरी में समाप्त कर उन्हें मूल विभाग नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कॉलेज भेज दिया गया था. इसके बाद 16 मार्च 2022 को आर्थिक अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) की टीम ने दंपति के घर पर छापा मारकर कार्रवाई की थी, जिसमें आलीशान बंगले के साथ करोड़ों की संपत्ति होने की बात सामने आई थी.
नियमों के विरुद्ध पाई गई दंपति की नियुक्ति
वहीं, अधिष्ठाता कार्यालय द्वारा शुक्रवार को जारी आदेश के अनुसार प्रोफेसर दंपति के विरुद्ध विभागीय जांच बिठाई गई थी. जांच में आरोप सिद्ध होने के बाद कॉलेज प्रबंधन ने मध्य प्रदेश सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियम-1966 के नियम-10 (आठ) के अंतर्गत सेवा से पृथक करने की कार्रवाई की है. डीन के नाम से जारी आदेश के अनुसार विभागीय जांच अधिकारी ने जांच में पाया कि डॉ. अशोक साहू और डॉ. तृप्ति गुप्ता (सहायक प्राध्यापक बायोकेमिस्ट्री विभाग) की अर्हता नहीं रखते थे. उनके पास नियमानुसार 3 वर्ष का अध्यापन अनुभव भी नहीं था.
जांच में यह बात भी सामने आई कि दोनों का चयन प्रोविजनली एवं सशर्त था और एमसीआई से अनुमति नहीं मिलने के बाद स्वयं शून्य हो गया था. शून्य चयन के आधार पर डॉ. अशोक साहू और डॉ. तृप्ति गुप्ता को नियुक्ति नहीं दी जा सकती थी.
कोर्ट में लंबित है प्रकरण
इस कार्रवाई को लेकर प्रोफेसर दंपति के वकील ब्रम्हानंद पांडेय के मुताबिक विभागीय जांच का मामला हाईकोर्ट में लंबित है. प्रकरण पर शुक्रवार को ही सुनवाई नियत थी, लेकिन मेडिकल प्रशासन ने कोर्ट के आदेश का इंतजार न करते हुए सुबह 10 बजे ही कार्रवाई कर दी.
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