MP News: मध्य प्रदेश में इन दिनों नाम बदलो अभियान चल रहा है और इसी अभियान के तहत पिछले दस दिनों में मिंटो हॉल का नामकरण संस्कार सातवां है. नाम बदलो अभियान की इस बसंती बयार की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भोपाल दौरे से हुई. जिसमें भोपाल के कई साल पुराने हबीबगंज स्टेशन के नए रंग रूप में आते ही नया नाम रानी कमलापति रख दिया गया. जिसे रेलवे की भाषा में आरकेपीटी के नाम से लिखा जा रहा है और आखिर में मिंटो हॉल के नाम बदलने के साथ फिलहाल अंत हुआ है. हालांकि आगे और भी किसी जगह का नाम बदला जा सकता है. 


मिंटो हॉल का भी हुआ नाम परिवर्तन
दरअसल प्रदेश कार्यसमिति की बैठक के दौरान शिवराज सिंह ने कहा, "हम यहां बैठे हैं इसका नाम है मिंटो हाल, अब आप बताओ ये धरती अपनी ये मिट्टी अपनी ये चूना अपना ये गारा अपना ये भवन अपना, बनाने वाले मजदूर अपने, ये पसीना अपना और नाम मिंटो का. इसलिए जिसने पूरे मध्य प्रदेश में बीजेपी को खडा किया उन कुशाभाऊ ठाकरे के नाम पर होगा अब ये मिंटो हाल."


अटल बिहारी वाजपेयी की जगह कमलापति रखा गया नाम 
अखबारों और नये जमाने की एसएमएस की भाषा में भी इसे आरकेपीटी ही बोला जा रहा है. ये बिलकुल वैसा ही है जैसे भोपाल में तात्या टोपे नगर को टीटी नगर और महाराणा प्रताप नगर को एमपी नगर लिखा और बोला जाता है. मजे की बात ये है कि इस रेलवे स्टेशन के विश्व स्तरीय बनते ही बीजेपी के सारे नेताओं ने एक सुर में इसका नाम पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर करने के लिए सोशल मीडिया में मुहिम चलाई थी. मगर जब अचानक मध्य प्रदेश बीजेपी ने अपना गियर चेंज कर आदिवासी और जनजातीय पर फोकस किया तो भुला दिए गए वाजपेयी और आ गई रानी कमलापति. जिनको भोपाल की आखिरी हिंदू शासक के तौर पर पुनर्स्थापित कराने की मुहिम भी छेड़ दी गई है. खैर राजनीतिक दलों के मुद्दे वक्त वक्त पर मिलने वाले वोटों के नफे नुकसान के हिसाब किताब से जुडे़ होते हैं इससे आम जनता अब जानती है. दिल्ली का कनॉट प्लेस आज भी कनॉट प्लेस है राजीव चौक तो बस कागजों में दर्ज है.


इन जगहों का बदला नाम
राकेएमटी क्षमा करिये रानी कमलापति से शुरू हुई ये मुहिम हमारे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ऐसी बढाई कि इंदौर के पातालपानी रेलवे स्टेशन का नाम टंट्या मामा के नाम पर करने की सिफारिश हो गई है. इंदौर के भंवरकुआं चौराहा भी अब टंट्या मामा के नाम से जाना जाएगा. इंदौर एमआर टेन बस अड्डा भी वही टंट्या मामा के नाम हो जाएगा. मंडला के महिला पॉलिटेक्निक का नाम रानी फूलकुंवर के नाम पर होगा तो मंडला की कंप्यूटर सेंटर और लाइब्रेरी भी अब शंकर शाह ओर रघुनाथ शाह के नाम पर जानी जाएगी और मिंटो हाल तो कुशाभाऊ ठाकरे हाल हो ही गया है.


इंदौर और भोपाल का भी बदलेगा नाम?
नाम बदलने की इस बहती गंगा में हाथ धोने के लिए उतावले लोग इंदौर का नाम रानी अहिल्या बाई करवाना चाहते हैं और भोपाल को भोजपाल कराने पर जोर लगा रहे हैं. हालांकि मुख्यमंत्री ने फिलहाल इन शहरों के नाम बदलने की सहमति नहीं दी है मगर कब तक अब तो कभी भी कुछ भी बदल सकता है. हम ये मान कर बैठे हैं. नाम बदलने की कवायद पहले उत्तर प्रदेश से होती हुई मध्य प्रदेश आई है. राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई कहते हैं कि नाम बदलने से किसी को कुछ हासिल नहीं होता मगर सभी सरकारें ये हथकंडा अपनाती हैं. आम जनता से जुडे असल मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए. रोटी कपड़ा और रोजगार देना अब सरकार के लिए मुश्किल होता है इसलिए अतीत के गौरव का अहसास कराइए और जनता को खुश रखिए. ये नया फंडा सारी राज्य सरकारें सीख गई हैं.


तो तैयार रहिए कभी भी कुछ भी बदल सकता है. वैसे भी हमारे गुलजार साहब ने तो 1977 में ही लिख दिया था 'नाम गुम जाएगा चेहरा ये बदल जाएगा.' तो हबीबगंज स्टेशन का चेहरा बदला और नाम भी. यूं तो शेक्सपियर ने भी लिखा है 'नाम में क्या रक्खा है.' मगर कोई हमारे एमपी के नेताओं से पूछे जो नाम बदलते ही वो वोटों की बारिश के सपने देखने लगते हैं. 


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