इंदौर: देश के सबसे स्वच्छ शहर मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के इंदौर (Indore) की उपलब्धियों का सिलसिला थम नहीं रहा है. जहां देश में धार्मिक वैमनस्यता ने इन दिनों में अलग ही रंग दिखा रही है, वहीं दूसरी ओर भगवान परशुराम की जन्मस्थली से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित इंदौर में गंगा-जमुनी तहजीब का अलग नजारा देखने को मिल रहा है. जहां दिल्ली (Delhi) और मध्य प्रदेश के खरगोन (Khargone) में धार्मिकता की आड़ में अधर्म की नई परिभाषा लिखी जा रही है, वहीं इंदौर में भगवान की पूजा के साथ अल्लाह की इबादत भी की जा रही है.


क्या है इंदौर की यह परंपरा         
दरअसल मध्य प्रदेश के इंदौर में 50 साल पहले से निभाई जा रही परंपरा आज भी जीवंत है. यहां एक समाजसेवी आरसी सलवाडिया ने 50 साल पहले धार्मिक एकता का प्रण लेते हुए एक सिलसिला शुरू किया था, वो आज भी कायम है. बता दे कि इंदौर में हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी ईद धूमधाम से मनाई गई. वही हर साल की तरह कौमी एकता की मिशाल भी पेश की गई. यहां एक हिंदू परिवार द्वारा शहर काजी को बकायदा ईद के मौके पर नमाज अदायगी के लिए ईदगाह तक बग्गी और पूरी शानो शौकत के साथ ले जाया जाता है.


कौमी एकता की मिशाल


इंदौर के आरसी सलवाडिया को यूं तो रावण दहन कार्यक्रम के लिए जाना जाता है, लेकिन उन्होंने हमेशा ही सर्वधर्म सद्भभाव को आगे रखते हुए ईद पर तत्कालीन शहर काजी शौकत अली को ईद पर उनके घर से लाने और सम्मान के साथ घर छोड़ने की जो परंपरा की शुरुआत की थी वो आज भी कायम है. अब उनके बेटे सत्यनारायण सलवाडिया ईद पर शहर काजी ईशरत अली को उनके घर से बग्गी और गाजे बाजों के साथ लाते हैं और बकायदा पहले की ही तरह उन्हें ईद की नमाज के बाद उन्हें घर छोड़कर आते हैं. सत्यनारायण सलवाडिया कहते हैं कि पिता की इस परंपरा को वो आज भी निभा रहे हैं, यह उनके लिए खुशी की बात है. 


शहर काजी ईशरत अली की माने तो देश के 4 हजार से ज्यादा शहरों में से किसी भी शहर में ऐसा नहीं होता है, जहां इस तरह से कौमी एकता की मिसाल को पेश किया जाता हो.


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