Madhya Pradesh News: मध्य प्रदेश आईएएस अधिकारी की आज शुक्रवार को मुश्किलें बढ़ सकती हैं. अवमानना के मामले में दोषी पाए गए इस अधिकारी के खिलाफ सजा का ऐलान आज मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में किया जाएगा. पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट ने छतरपुर जिले के तत्कालीन कलेक्टर शीलेन्द्र सिंह के साथ एक अन्य अधिकारी को कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट का दोषी माना था.


छतरपुर के तत्कालीन कलेक्टर और आईएएस अधिकारी शेलेन्द्र सिंह और तत्कालीन एडीशनल कलेक्टर अमर बहादुर सिंह के खिलाफ अवमानना की सजा के प्रश्न पर हाईकोर्ट शुक्रवार को अपना फैसला सुनाएगा. मामले पर गुरुवार (17 अगस्त) को जस्टिस जीएस आहलूवालिया की एकलपीठ ने सभी पक्षों को सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. शुक्रवार को दोपहर ढाई बजे अदालत अपना फैसला सुनाएगी.


स्थानांतरण का प्रावधान नहीं
यहां बताते चले कि छतरपुर में स्वच्छता मिशन के तहत जिला समन्वयक रचना द्विवेदी (याचिकाकर्ता) को बड़ा मलहरा स्थानांतरित कर दिया गया था.याचिकाकर्ता की ओर से हाई कोर्ट में दलील दी गई कि संविदा नियुक्ति में स्थानांतरण करने का कोई प्रावधान नहीं है. याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता डीके त्रिपाठी के मुताबिक इस मामले में हाईकोर्ट ने 10 जुलाई 2020 को स्थानांतरण आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी थी. 


हाईकोर्ट की रोक के बावजूद याचिकाकर्ता को बड़ा मलहरा में ज्वॉइनिंग नहीं देने के कारण सेवा से बर्खास्त कर दिया गया. इस पर याचिकाकर्ता ने तत्कालीन छतरपुर कलेक्टर शीलेन्द्र सिंह और एडिशनल कलेक्टर अमर बहादुर सिंह के खिलाफ अवमानना याचिका दायर की थी.


पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट के निर्देश पर गुरुवार को दोनों अधिकारी हाजिर हुए. एडीशनल कलेक्टर अमर बहादुर सिंह की ओर से याचिकाकर्ता को आधा वेतन देने की पेशकश की गई. वहीं महाधिवक्ता की ओर से कहा गया कि याचिकाकर्ता को शासन अभी वेतन भुगतान कर देगा और बाद में दोषी अधिकारी से वसूली कर ली जाएगी. 


'जिम्मेदारी से नहीं बच सकते अधिकारी'
वहीं, अवमाननाकर्ता अधिकारियों ने कोर्ट को बताया कि इस मामले में जवाब प्रस्तुत करने के लिए ओआईसी नियुक्त किया गया था. ओआईसी ने जवाब भी प्रस्तुत किया था. जस्टिस एस एस अहलूवालिया की कोर्ट ने कहा कि अवमानना प्रकरण में संबंधित अवमाननाकर्ता को ही व्यक्तिगत हलफनामे पर जवाबदावा पेश करना होता है. ओआईसी नियुक्त करके अधिकारी अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते.


इस मामले में कोर्ट का स्थगन आदेश था, इसलिए दोनों अधिकारियों को याचिकाकर्ता को सेवाएं जारी रखने देनी चाहिए थी. कोर्ट ने कहा कि ऐसा नहीं करके इन अधिकारियों ने अदालत के आदेश का खुला उल्लंघन किया है.


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