MP News: मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने दावा किया है कि उनकी सरकार जाने के बाद 34 लाख किसान डिफाल्टर हो गए. उन्होंने यह भी वादा किया कि उनकी सरकार आते ही एक बार फिर किसानों का कर्जा माफ किया जाएगा ताकि किसान कर्ज के दलदल में फंसने से बच जाएं. 


सरकार बनी तो फिर करेंगे किसानों का कर्ज मांफ
बता दें कि मध्य प्रदेश में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होना है. ऐसे में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों ही किसानों के मुद्दे पर गंभीर हैं. पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सोशल मीडिया पर ट्वीट करते हुए लिखा है कि उनकी सरकार जाते ही 34 लाख  किसान डिफाल्टर हो गए. शिवराज सरकार के राज में किसान कर्ज के दलदल में फंस गए हैं. उन्होंने यह भी दावा किया कि उनकी सरकार के दौरान 27 लाख किसानों का कर्ज माफ किया गया था. 


सोशल मीडिया के माध्यम से पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने दावा किया है कि इसी साल एक बार फिर कांग्रेस की सरकार बनेगी और फिर किसानों के कर्ज माफी की प्रक्रिया शुरू की जाएगी. मध्य प्रदेश में किसानों के कर्ज माफी को लेकर सियासत गर्म है. यही एक ऐसा मुद्दा है जिसके बल पर कांग्रेस को सत्ता की चाबी मिल सकती है, जबकि बीजेपी भी पूरे मामले में कांग्रेस पर निशाना साध रही है.


कांग्रेस झूठे वादे करने में माहिर- बीजेपी
वहीं शिवराज सरकार के पूर्व मंत्री और वरिष्ठ विधायक पारस जैन ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपने कार्यकाल में 10 दिन के अंदर कर्जा माफ करने का घोषणा पत्र दिया था लेकिन किसी भी किसान का कर्जा माफ नहीं हो पाया. एक बार फिर सत्ता हासिल करने के लिए कांग्रेस झूठे वादे कर रही है. उन्होंंने कहा कि 2023 में प्रदेश में फिर से बीजेपी की सरकार बनने जा रही है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान किसान परिवार से हैं और किसानों का दर्द और तकलीफ अच्छी तरह जानते हैं. 


किसानों पर क्यों इतनी मेहरबान है बीजेपी-कांग्रेस?
मध्य प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में से अधिकांश विधानसभा सीट ग्रामीण क्षेत्र की हैं. शहरी क्षेत्र में बीजेपी का दबदबा है जबकि ग्रामीण इलाकों में पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने एकतरफा प्रदर्शन किया था. इसी के चलते मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बन गई थी. राजनीतिक सभाएं और चुनावी रैलियां भले ही शहरी क्षेत्र में होती हों, लेकिन विधानसभा का रास्ता गांव की गलियों से होकर ही गुजरता है, इसलिए बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही किसान वोट बैंक को अपनी और आकर्षित करने में हमेशा लगी रहती है.


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