MP News: मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन कर मुस्लिम पुरुष से शादी करनेवाली महिला के माता पिता की अवैध कैद से रिहाई का आदेश दिया है. अदालत ने कहा कि विवाह या लिव-इन रिलेशनशिप के माध्यम से वयस्क महिला और पुरुष को एक साथ रहने का संवैधानिक अधिकार है. पति की तरफ से दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका (Habeas Corpus) पर अदालत ने माता पिता की अवैध कैद से महिला को रिहा करने का आदेश दिया.
जस्टिस नंदिता दुबे ने फैसले में कहा कि "जैसा भी हो, याचिकाकर्ता और बंधक लड़की, दोनों बालिग हैं. ऐसे मामलों में किसी भी नैतिक पुलिसिंग की अनुमति नहीं दी जा सकती है, जहां दो प्रमुख वयस्क व्यक्ति एक साथ रहने के लिए तैयार हैं, चाहे शादी के माध्यम से या लिव-इन रिलेशनशिप में, जब उस व्यवस्था का पक्ष दोनों स्वेच्छा से कर रहे हों और इसमें जबरदस्ती न हो तो, इसे अवैध नहीं कहा जा सकता. अदालत के सामने महिला ने स्पष्ट रूप से कहा है कि उसने याचिकाकर्ता से शादी कर ली है और उसके साथ रहना चाहती है. कॉर्पस (पत्नी) बालिग है. उसकी उम्र किसी भी पक्ष की तरफ से विवादित नहीं है. संविधान इसका हर नागरिक को अधिकार देता है, उसे या उसके जीवन को उसके या उसकी इच्छा के अनुसार जीने के लिए."
बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर हाईकोर्ट ने की सुनवाई
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति नंदिता दुबे बनारस में माता-पिता की तरफ से बंधक महिला के पति गुलजार खान की दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई कर रही थीं, आरोप लगाया गया था कि उसकी पत्नी के माता पिता उसे जबरन बनारस ले जाकर अवैध रूप से हिरासत में रखा है. याचिकाकर्ता ने कहा कि उसने महिला से उसकी सहमति से शादी की और उसने स्वेच्छा से इस्लाम धर्म कबूल किया है.
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पत्नी (कॉर्पस) ने अदालत को सूचित किया कि 19 साल की है. उसने स्वेच्छा से याचिकाकर्ता से शादी की है और इस्लाम धर्म में परिवर्तित हो गई है. उसने स्पष्ट बयान दिया कि उसे कभी भी धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर नहीं किया गया था और उसने जो कुछ भी किया है, अपनी इच्छा के अनुसार किया है. उसने आगे कहा कि उसके माता-पिता और दादा-दादी जबरन बनारस ले गए हैं, जहां उसे पीटा गया और याचिकाकर्ता के खिलाफ बयान देने की लगातार धमकी दी गई. उसने अदालत के सामने याचिकाकर्ता के साथ जाने की इच्छा जताई और बताया कि उसने स्वेच्छा से शादी की है.
राज्य सरकार की ओर से वकील प्रियंका मिश्रा ने तर्क दिया कि मध्य प्रदेश धर्म स्वतंत्रता अधिनियम, 2021 में निर्धारित प्रावधानों के अनुसार विवाह अमान्य था. अधिनियम की धारा 3 के अनुसार, कोई भी व्यक्ति विवाह के उद्देश्य से धर्मांतरण नहीं करेगा और इस प्रावधान के उल्लंघन में किसी भी रूपांतरण को शून्य और अवैध माना जाएगा. इसलिए, अधिनियम की धारा 3 और धारा 6 का एक संयुक्त पठन उक्त विवाह को शून्य और अवैध बना देता है.
धर्म परिवर्तन कर शादी करनेवाली के पक्ष में फैसला
जस्टिस दुबे ने इन परिस्थितियों में, राज्य के वकील की तरफ से उठाई गई आपत्ति और कॉर्पस (पत्नी) को नारी निकेतन भेजने की प्रार्थना को खारिज कर दिया. कोर्ट ने राज्य शासन और पुलिस अधिकारियों को देखने का निर्देश दिया कि कार्पस (पत्नी) को याचिकाकर्ता को सौंपा जाए. साथ में ये भी सुनिश्चित किया जाये कि दंपति सुरक्षित रूप से अपने घर पहुंचे. पुलिस अधिकारियों को सुनिश्चित करने के लिए भी निर्देशित किया गया कि भविष्य में दंपति को कॉर्पस (पत्नी) के माता-पिता की तरफ से धमकी नहीं दी जाए.
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