जबलपुर: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में 2022 और 2023 चुनावी समर का साल होगा. अभी पंचायत (Panchayat) और नगरीय निकाय (Urban Body Election) के लिए घमासान शुरू हो चुका है तो 2023 में विधानसभा चुनाव (Assembly Election 2023) के नगाड़े बजेंगे. माना जा रहा है कि 2023 के सत्ता के फाइनल मुकाबले के लिए पंचायत और नगरीय निकाय के चुनाव सेमी फाइनल जैसा होगा. यहां मुख्य मुकाबला बीजेपी (BJP) और कांग्रेस (Congress) के बीच ही है. इसके लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (CM Shivraj Singh Chouhan) और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ (Kamalnath) की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है.
बीजेपी और कांग्रेस का कैसा रहा था पिछला प्रदर्शन
सबसे पहले बात करें 2015 के नगरीय निकाय चुनाव की तो बीजेपी के शत प्रतिशत मेयर चुने गए थे. बीजेपी ने सभी 16 शहरों के मेयर पद पर कब्जा किया था. वहीं, नगर पालिका अध्यक्ष के 97 पदों के निर्वाचन में 53 पर बीजेपी ने और 39 पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी. नगर परिषद के अध्यक्ष पदों के लिए हुए मुकाबले में बीजेपी ने 154 और कांग्रेस ने 96 सीटें जीती थीं.
जिला पंचायत और जनपद पंचायत चुनाव के आंकड़े भी aबीजेपी की तरफ झुके हुए थे. जिला पंचायत की 51 सीटों में से 40 पर बीजेपी ने कब्जा किया था. कांग्रेस को सिर्फ 11 सीटें ही मिली थीं. जनपद पंचायत अध्यक्ष के 313 पदों के लिए हुए चुनाव में बीजेपी ने 214 और कांग्रेस ने 99 सीट जीती थीं.
शिवराज और कमलनाथ के हाथ में है कमान
लंबे अंतराल के बाद 1995 में तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के शासनकाल में पंचायत और नगरीय निकाय के चुनाव हुए थे. साल 2003 तक कांग्रेस के शासनकाल में निकायों में कांग्रेस का दबदबा रहा. इसके बाद के 17 साल शिवराज सरकार ने राज किया. 2014-15 के बाद अब 7 साल के अंतराल के बाद हो रहे चुनाव में तगड़ा मुकाबला हो गया हैं.
अपनी पसंद से टिकिट वितरण करके बीजेपी की कमान शिवराज ने अपने हाथों में रखी है. वहीं,कांग्रेस का नेतृत्व कमलनाथ संभाल रहे हैं, जिन्होंने अधिकांश टिकिट अपने सर्वे के आधार पर बांटे है. बीजेपी को सभी 16 नगर निगम बचाने के लिए ताकत लगानी पड़ रही है. यह भी कहा जा रहा है कि यह चुनाव 2023 के विधानसभा चुनाव के लिए सेमी फाइनल हो सकता है. फिलहाल गांव और शहर में 4 लाख से ज्यादा जनप्रतिनिधियों का चुनाव हो रहा है.
कौन नेता है ज्यादा मजबूत
वैसे वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में शिवराज ज्यादा मजबूत दिखाई दे रहे हैं. लेकिन किसानों की नाराजगी, शहरी क्षेत्रों में असंतुलित विकास उनके लिए परेशानी खड़ा कर सकता है. बात करें पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की तो उनके लिए 2020 में सत्ता गंवाने के बाद यह चुनाव बड़े मौके की तरह है, क्योंकि 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले उन्हीं के हाथ में कमान थी और कांग्रेस 15 साल बाद सत्ता में लौटी थी. अपनी पसंद के लोगों को टिकिट दिलाने के कारण दोनों पर ही बेहतर प्रदर्शन का दबाव है. दोनों ही नेताओं ने राजनीतिक सभाओं के माध्यम से जोर अजमाइश शुरू कर दी है.
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