Petlawad News Today: मध्य प्रदेश के पेटलावद में सालों पुरानी परंपरा का पालन करते हुए की स्थानों पर 'चुल कार्यक्रम' का आयोजन किया गया. जहां सैकड़ो मन्नतधारियों ने दहकती आग और अंगारों से गुजर कर अपनी मन्नत पूरा होने पर हिंगलाज माता का धन्यवाद दिया.
 
दरसअल, होलिका दहन के दूसरे दिन धुलेंडी की शाम में पेटलावद के ग्राम करवड़, टेमरिया, रायपुरिया सहित कई स्थानों पर सालों पुरानी परंपरा अनुसार चुल कार्यक्रम आयोजित किया गया. जिसमें मन्नतधारियो ने दहकती आग और अंगारों पर चलकर हिंगलाज माता को धन्यवाद दिया. मान्यता है कि कोई भी व्यक्ति हिंगलाज माता को साक्षी मानकर मन्नत मांगता है तो उसकी सारी मन्नतें पूरी होती हैं.


सालों पुरानी है 'चुल परंपरा'
मन्नतें पूरी होने पर मन्नतधारी आग और अंगारों पर चलकर हिंगलाज माता को धन्यवाद देते हैं. यह परंपरा क्षेत्र में सालों से चली आ रही है. जिसका आज भी क्षेत्र में बखूबी पालन किया जा रहा है. मन्नतधारियों की मानें तो जब वह दहकती आग और अंगारों से गुजरते हैं, तो उन्हें किसी भी तरह की चोट या दर्द नहीं पहुंचती है. उनके लिए अंगारे भी माता हिंगलाज के आशीर्वाद से फूल बन जाते हैं.


मन्नतधारियों में बच्चे, बुजुर्ग, महिला शामिल होते हैं. यह पूरा नजारा पुलिस प्रशासन की आंखों के सामने होता है. इस मौके पर पुलिस प्रशासन की और से सुरक्षा के पुख्ता इंतेजामत किए जाते हैं. बीते दिन भी कार्यक्रम में क्षेत्र से हजारों लोग पहुंचकर इसके साक्षी बने.


क्या है गल परंपरा?
इसी के साथ क्षेत्र में गल का आयोजन भी हुआ. जिसमे ग्रामीण अपनी मन्नतें उतारने और गल पर्व में शामिल होने के लिए बड़ी संख्या में पहुंचे. यहां पहुंचने के बाद शुरू हुआ मन्नत उतारने का दौर. मन्नतधारी लाल-पीले वस्त्र पहनकर पहुंचे. इस दौरान वह अपने शरीर पर हल्दी लगाकर पहुंचे थे. सबसे पहले मन्नातधारियों ने गल देवता की नारियल चढ़ाकर और अगरबत्ती लगाकर पूजा-अर्चना की.


इसके बाद गल पर चढ़ने का दौर शुरू हुआ. लगभग 30 फीट ऊंचे गल पर बंधी लकड़ी पर मन्नातधारियों ने लटककर चारों ओर घूमकर अपनी मन्नतें उतारी. किसी ने सात बार तो किसी ने 11 बार घूमकर मन्नत उतारी. वहीं ढोल-मांदल की थाप पर नृत्य भी किया गया. पेटलावद क्षेत्र में रायपुरिया में गल का आयोजन किया गया.


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