Shajapur News: 'गैसगुरु' के नाम से जाना जाता है यह आठवीं पास किसान, गोबर गैस से चलाता है बाइक से लेकर ट्रैक्टर तक
MP News: एमपी के शाजापुर में किसान देवेंद्र परमार को उनकी सूझबूझ के कारण 'गैसगुरु' के नाम से जाना जाने लगा है.वो गोबर गैस को बायो सीएनजी में बदलकर अपनी गाड़ियां चलाते हैं. आइए जानते हैं उनके बारे में.
Madhya Pradesh News: मध्य प्रदेश (MP) के शाजापुर (Shajapur) के किसान (Farmer) देवेंद्र परमार (Devendra Parmar) से खेती-बाड़ी (Agriculture) को लाभ का धंधा (Profit Making) बनाने का मंत्र सीखा जा सकता है. आठवीं पास देवेंद्र के हुनर के कारण उन्हें अब 'गैसगुरु' (Gasguru) के नाम से पुकारा जाने लगा है. देवेंद्र परमार अपने बायोगैस प्लांट (Biogas Plant) से बिजली और बायो सीएनजी बनाते हैं. इसी बायो सीएनजी से वो अपनी कार और ट्रैक्टर तक चलाते हैं.
देवेंद्र परमार की कहानी बड़ी दिलचस्प है. उनका खेती-किसानी के साथ डेयरी का व्यवसाय है. वह आसपास के गांव से दूध खरीदकर लोडिंग वाहन, कार और ट्रैक्टर के जरिये लाते हैं. उन्हें रोज गाड़ियों में 3 हजार रुपये का डीजल और पेट्रोल डलवाना पड़ता था. इस खर्च से परेशान होकर उन्होंने खुद के गोबर गैस संयंत्र को बायोगैस प्लांट के रूप में कनवर्ट कराया.
बिहार के एक इंजीनियर ने प्लांट लगाने में मदद की. इस पर 25 लाख रुपये की लागत आई. अब प्लांट से खेत में ही बैलून में रोज 70 किलो गैस का उत्पादन हो रहा है. इसे सीएनजी के रूप में उपयोग कर बोलेरो पिकअप वाहन, ऑल्टो कार, ट्रैक्टर और बाइक बिना खर्च चलाई जा रही है.
बायोगैस प्लांट से इस तरह बना रहे बिजली, खाद और फ्यूल
शाजापुर जिला मुख्यालय से 55 किलोमीटर दूर पटलावदा गांव के किसान देवेंद्र परमार सिर्फ आठवीं पास हैं. देवेंद्र 100 दुधारू पशुओं का पालन करते हैं. वह खेत में लगे बायोगैस संयंत्र से न केवल अपने वाहन दौड़ा रहे हैं, बल्कि केंचुआ खाद के साथ-साथ बिजली भी पैदा कर रहे हैं. संयंत्र से रोजाना 70 किलो गैस के अलावा 100 यूनिट बिजली पैदा हो रही है. केंचुआ खाद बेचकर वह रोजाना तीन हजार रुपये और दूध बेचकर चार हजार रुपये की कमाई कर रहे हैं. इस तरह उन्हें महीने भर में करीब दो लाख दस हजार और सालाना करीब 25 लाख रुपये की इनकम हो रही है.
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बिजली बनने का यह है हिसाब
देवेंद्र बताते है कि उनके पास सात बीघा जमीन है. उन्होंने बीते चार साल से रासायनिक खाद का उपयोग नहीं किया. इसके साथ 100 दुधारू पशु भी हैं. इससे रोजाना 25 क्विंटल गोबर जमा होता है. ऑटोमेटिक मशीन से गोबर 100 घन मीटर के बायोगैस संयंत्र में डाला जाता है. इससे 100 यूनिट यानी 12 किलोवाट बिजली पैदा हो रही है. गोबर के वेस्ट से केंचुआ खाद बनता है. 300 किलो जैविक खाद 10 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेची जाती है. खाद को आसपास के गांवों के किसान ही ले जाते हैं.
इस तरह बनता है वाहनों के लिए फ्यूल
देवेंद्र ने बताया कि 2,500 किलो गोबर से चलने वाले बायोगैस संयंत्र में बनने वाली गैस में 60 फीसदी मीथेन और 40 फीसदी कार्बन डाइ ऑक्साइड गैस होती है. कार्बन डाई ऑक्साइड को पानी और ऑयल से प्यूरीफाई करते हुए अलग किया जाता है, जिसमें पानी के साथ कार्बन डाई ऑक्साइड एक पाइप से बाहर निकल जाती है. दूसरे पाइप से मीथेन गैस बैलून में आ जाती है. इसी गैस को कंप्रेशर से वाहनों में सीएनजी के रूप में डाला जाता है. यह डीजल से ज्यादा 15 किलोमीटर प्रति किलो का माइलेज देती है.
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