MP Election 2023: मुकदमों में राहत देकर 22 फीसदी आदिवासियों को साधने की जुगत में शिवराज सरकार, 78 सीटों पर नजर
MP Elections 2023: पीसीसीएफ अजित श्रीवास्तव के मुताबिक सिर्फ मामूली धाराओं के केस में शामिल लोगों के प्रकरण में ही कपाउंडिंग की जाएगी. वन विभाग के आंकड़े बताते हैं कि इस तरह के 3852 प्रकरण लंबित हैं.
MP Assembly Election 2023: मध्य प्रदेश के तकरीबन 22 फीसदी आदिवासी वोटरों को लुभाने के लिए शिवराज सरकार एक और दांव चलने जा रही है. विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले सरकार आदिवासियों पर वन से जुड़े दर्ज अपराध वापस लेने जा रही है. इसके लिए वन विभाग ने तीन माह का एक्शन प्लान तैयार किया है.
दरअसल, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगातार आदिवासियों के बीच पहुंचकर इसकी घोषणा करते आ रहे हैं. वहीं अब विभाग ने इस पर अमल करने का फाइनल एक्शन प्लान तैयार कर लिया है. कहा जा रहा है कि राज्यभर में ऐसे करीब तीन हजार आठ सौ वन अपराध के केस वापस लिए जाएंगे. वन विभाग के भोपाल स्थित मुख्यालय से प्लान बनाकर सभी सीसीएफ और डीएफओ को चिह्नित प्रकरण में कंपाउंडिंग कर प्रकरण खत्म करने के निर्देश जारी किए गए हैं.
पीसीसीएफ अजित श्रीवास्तव के मुताबिक छोटे-मोटे अपराध के प्रकरण कई वर्षों तक लंबित रह जाते हैं. कई केस तो पांच से दस वर्षों तक अटके रहते हैं. सिर्फ मामूली धाराओं के केस में शामिल लोगों के प्रकरण में ही कपाउंडिंग की जाएगी. अगले तीन महीनों में वन अधिनियम 1927 एवं वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 के अंतर्गत पिछले 10 वर्षों में पंजीबद्ध प्रकरणों का निराकरण किया जाएगा.
500 मामलों में राहत देने की तैयारी
वन विभाग के आंकड़े बताते हैं कि इस तरह के 3852 प्रकरण लंबित हैं. श्रीवास्तव के अनुसार गंभीर अपराध या कोर्ट में चल रहे मामलों में किसी तरह की राहत नहीं दी जाएगी. बताया जाता है कि सबसे अधिक प्रकरण बुरहानपुर जिले में हैं. यहां वनों में अवैध अतिक्रमण और अवैध वन कटाई के मामले आदिवासियों पर दर्ज हैं. यहां करीब पांच सौ मामले में राहत देने की तैयारी है.
47 सीटें हैं रिजर्व
यहां बताते चलें कि मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव में अब सिर्फ तीन महीने बचे है. ऐसे में बीजेपी और कांग्रेस ने उन 78 सीटों पर अपना फोकस बढ़ा दिया है, जहां आदिवासी वोटर ही जीत-हार का फैसला करते हैं. इनमें से 47 सीटें आदिवासियों के लिए रिजर्व हैं. दोनों ही दलों की चिंता की बड़ी वजह यह है कि आदिवासी समुदाय का रुझान फिलहाल बेहद नकारात्मक दिख रहा है. इसी के चलते बीजेपी ने अपने दोनों दिग्गज नेताओं पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को एक साथ आदिवासी वोटरों की पिच पर बैटिंग के लिए उतार दिया है. कांग्रेस भी प्रियंका गांधी और राहुल गांधी को आदिवासियों के बीच उतार रही है.
आदिवासी वोटर्स पर बीजेपी-कांग्रेस की नजर
मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार रविंद्र दुबे कहते हैं कि पिछले चुनाव में आदिवासी वोटरों ने बीजेपी के प्रति बेरुखी दिखाई थी. शिवराज सरकार के अभी तक के कार्यकाल में भी आदिवासियों में भारतीय जनता पार्टी को लेकर कोई बड़ा उत्साह देखने को नहीं मिल रहा है. पिछले विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश की 47 सुरक्षित आदिवासी सीटों में से 31 कांग्रेस जीतने में सफल रही थी, जबकि बीजेपी को सिर्फ 16 सीटें ही मिली थीं. हालांकि, इससे पहले 2013 के चुनाव में बीजेपी ने 47 में से 30 सीटें जीती थीं. इसीलिए कांग्रेस आदिवासी वोटों पर अपनी पकड़ मजबूत रखना चाहती है तो बीजेपी आदिवासियों को फिर से अपने साथ जोड़ने की हरसंभव कोशिश कर रही है.
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