Satna News: मध्य प्रदेश के सतना जिले में मैहर की माता शारदा का सुप्रसिद्ध मंदिर स्थित है. मान्यता के अनुसार इस मंदिर में शाम की रती के बाद जब मंदिर के कपाट बंद करके पुजारी लौटकर आ जाते हैं तब मंदिर के अंदर से घंटी और पूजा करने की आवाजा आती है. यहां के लोगों का मानना है कि मां शारदा के भक्त आल्हा अभी भी पूजा करते आते हैं. अक्सर सुबह की आरती वहीं करते हैं और रोज मंदिर के पट खुलते है तब कुछ न कुछ रहस्यमय अजूबे के दर्शन होते हैं. कई बार मंदिर के अंदर से अद्भुत खूशबू आती है तो कई मां की प्रतिमा के ऊपर अद्यभुत फूल चढ़ा मिलता है.
मंदिर का इतिहास
मध्य प्रदेश के विन्धय पर्वत श्रेणियों के मध्य पर्वत पर स्थित इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि मां शारदा की पहली बार पूजा आदिगुरू शंकराचार्य द्वारा की गई थी. मैहर पर्वत का नाम प्राचीन धर्मग्रंथ महेन्द्र में मिलता है. इसका उल्लेख भारत के अन्य पर्वतों के साथ पुराणों में भी आया है. मां शारदा की प्रतिमा के ठीक नीचे के न पढ़े जा सके शिलालेख भी कई पहेलियों को समेटे हुए हैं. सन् 1922 में जैन दर्शनार्थियों की प्रेरणा से तत्कालीन महाराजा ब्रजनाथ सिंह जूदेव ने शारदा मंदिर परिसर में जीव बलि को प्रतिबंधित कर दिया था.
आल्हा करते हैं मां का पहला श्रृंगार
मैहर स्थित मां शारदा के इस मंदिर की पवित्रता का अंदाजा इस बात से लगा सकते है कि मां शारदा की पूजा आज भी आल्हा सबसे पहले करते हैं. मैहर मंदिर के महंत पंडित बताते है कि अभी भी मां का पहला श्रृंगार आल्हा ही करते हैं. आज भी ब्रह्म मुहूर्त में मां शारदा का का श्रृंगार और पूजा की हुई मिलती है. यह कैसे होता है इसका रहस्य सुलझाने के लिए वैज्ञानिकों ने बहुत कोशिश की पर वो इस बात का पता नहीं लगा सके.
कौन थे आल्हा
आल्हा और ऊदल दो भाई थे, ये बुंदेलखंड के महोबा के वीर योद्धा और परमार के सामंत थे. कालिंजर के राज परमार के दरबार में जगनिक नाम के एक कवि ने आल्हा खण्ड नामक एक काव्य की रचना भी की थी. इस काव्य रचना में वीरो की गाथा लिखी हुई है. इस ग्रंथ में दो वीरों की 52 लड़ाइयों का रोमांचकारी वर्णन है. आज भी मां शारदा मंदिर में भक्त आल्हा पूजा और आरती करने आते हैं.
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