Kaal Bhairav Sawari in Ujjain: धार्मिक नगरी उज्जैन में काल भैरव मंदिर से भगवान काल भैरव की सवारी निकल रही है. शाही ठाठ बाट के साथ पालकी में सवार होकर नगर कोतवाल भ्रमण पर निकले हैं. भगवान काल भैरव को ढोलग्यारस के अवसर पर छप्पन भोग लगाए गए. काल भैरव मंदिर की पहचान भगवान महाकाल के नगर कोतवाल की है. भगवान महाकाल की तरह नगर कोतवाल काल भैरव भी भ्रमण कर प्रजा का हाल-चाल जानने के लिए निकलते हैं. नगर कोतवाल के रूप में विराजित काल भैरव की महिमा अपरंपार है. मान्यता है कि भगवान महाकाल का आशीर्वाद लेने से पहले नगर कोतवाल का आशीर्वाद लेना जरूरी है. श्रद्धालु भगवान महाकाल का दर्शन करने के बाद काल भैरव के दरबार में पहुंचते हैं.


भगवान काल भैरव की निकली सवारी


पुजारी पंडित राजेश चतुर्वेदी बताते हैं कि काल भैरव मंदिर में तामसी पूजा समेत तीन प्रकार की पूजा होती है. उन्होंने बताया कि भगवान काल भैरव की सवारी वर्ष में दो बार नगर भ्रमण पर निकलती है. हर साल डोलग्यारस और भैरव अष्टमी पर्व पर ग्वालियर के सिंधिया घराने से पगड़ी मंदिर लाई जाती है. भगवान काल भैरव डोलग्यारस और भैरव अष्टमी पर प्रजा का हाल-चाल जानने के लिए नगर भ्रमण करते हैं. भगवान काल भैरव का दर्शन करने के लिए देशभर से श्रद्धालु आते हैं. भगवान काल भैरव को मदिरापान भी कराया जाता है.


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शाही ठाठ के साथ पालकी में हुए सवार


आज तक वैज्ञानिक पता नहीं लगा पाए हैं कि भगवान काल भैरव को कराया गया मदिरापान कहां जाता है. पंडित राजेश चतुर्वेदी के मुताबिक 400 साल पहले महादजी शिंदे या सिंधिया (Mahadaji Shinde) की सेना पर छात्रों ने विजय हासिल करने की पूरी कोशिश की थी. उस समय महादजी सिंधिया ने काल भैरव के चरणों में अपनी पगड़ी रखकर प्रार्थना की. भगवान काल भैरव के आशीवार्द से हारी हुई जंग में सिंधिया घराने को विजय प्राप्त हुई. तब से लेकर अब तक कोई भी दुश्मन सिंधिया घराने से जंग नहीं जीत पाया है. 


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