MP News: धरती पर पाए जाने वाले हर जीव-जंतु और वनस्पतियों को बचाने की जरूरत है. पानी और पर्यावरण को सहेजने की जरूरत है. आपने पोस्टर, बैनर और नारों में तो पर्यावरण बचाने की ये बातें तो खूब देखी-सुनी होंगी, लेकिन आज हम आपको दिखाते हैं एक ऐसे गाँव की तस्वीर जो पानी और पर्यावरण बचाने की दिशा में इतने आसान और अनूठे प्रयास कर रहा है कि उसे सोलर विलेज या वाटर विलेज जैसे उपनाम से पुकारा जाता है.
बाचा गांव बना आर्दश
बैतूल के घोड़ाडोंगरी ब्लॉक का आदिवासी बाहुल्य ग्राम बाचा आज पूरे देश के लिए एक आदर्श गांव है. चारों तरफ जल संरचनाओं का जाल, लहलहाते खेत, साफ सुथरे घर और 100 फीसदी सौर ऊर्जा का इस्तेमाल इस गाँव को अलग पहचान देता है. आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि केवल एक दशक पहले इसी गांव में भीषण जलसंकट था. बिजली ना होने से लोग अंधकार में जीवन गुजार रहे थे. गंदगी से लोग बीमार पड़ रहे थे. यहां इंसान तो क्या मवेशियों का भी जीना दूभर हो गया था.
बाचा के सरपंच राजेंद्र कवडे के मुताबिक बैतूल की विद्या भारती शिक्षा समिति ने ग्रामीणों को जल संरक्षण, स्वच्छता और सौर ऊर्जा का महत्व समझाया. इसे अपनाते हुए बाचा गांव आज ऊर्जा और पानी को लेकर पूरी तरह से आत्मनिर्भर बन चुका है.
कैसे शुरू हुई पानी सहेजने की शुरूआत
बाचा में जल क्रांति की शुरुआत हुई घरों से निकलने वाले पानी को सहेजने से. गांव में 74 घरों के लिए कुल 14 हैंडपंप हैं. हर हैंडपंप के सामने सोखता गड्ढे बनाकर अतिरिक्त बहते पानी को वापस जमीन में पहुंचाया गया. वहीं घरों से निकलने वाला पानी जो सड़कों पर बहता था, उसे भूमिगत नालियों के जरिए सभी घरों में बनी बाड़ियों या बगीचे से जोड़ दिया गया. अब इन बाड़ियों में साल भर बिना सिंचाई किए सब्जियां और फल-फूल पैदा होता है.
ग्रामीण मिथिलेश कावड़े बताते हैं कि 100 फीसदी सौर ऊर्जा के इस्तेमाल से अब रात के समय भी गाँव में उजाला रहता है. सोलकर कूकर की वजह से ईंधन के लिए पेड़ों की कटाई भी लगभग बंद हो चुकी है.
मवेशियों के लिए पानी की व्यवस्था
पानी के मामले में पूरी तरह आत्मनिर्भर हो चुके बाचा गांव में ग्रामीणों के साथ-साथ मवेशियों के लिए पानी की अलग व्यवस्था बनाई गई है. छोटी नदियों, नालों पर हर साल श्रृंखलाबद्ध बोरी बंधान बनाकर इतना पानी रोका जा रहा है जिसने खेती को हर मायने में लाभ का व्यवसाय बना दिया है.
गांव में स्वच्छता ऐसी की किसी भी तरफ नजर जाए तो गांव सुंदर ही नजर आता है. इस गाँव में रहने वाले अनिल उइके ने बताया कि हम लोग ज़रा सा भी प्लास्टिक या कचरा गांव के जलस्रोतों तक नहीं जाने देते हैं, जिससे गाँव और पानी दोनों स्वच्छ हैं.
बैतूल की विद्या भारती शिक्षा समिति के सचिव मोहन नागर के मुताबिक केवल स्वच्छता और जलसंरक्षण ही नहीं बल्कि सौर ऊर्जा का 100 फीसदी इस्तेमाल करने वाला भी ग्राम बाचा देश मे एकलौता गांव है. देश के कई आईआईटी सहित दुनिया के 8 देशों से यहां छात्र और मैनेजमेंट के दिग्गज आकर बाचा मॉडल का अध्ययन कर चुके हैं.
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