Uma Bharti News: मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के बीच शीत युद्ध की खबरें कोई नई नहीं हैं. उनकी अदावत पिछले 17 सालों से मध्य प्रदेश की सियासत में हमेशा बयानबाजी के रूप में देखने को मिलती है. आखिर इसकी शुरुआत कब से हुई? यह प्रश्न हमेशा से राजनीति के दिग्गजों के बीच सुर्खियां बटोरता है. राजनीति के दो दिग्गजों के बीच विवाद का कारण एक दो नहीं बल्कि अनगिनत है. हालांकि दोनों ही खुले मंच से हमेशा एक दूसरे को भाई-बहन के रिश्ते से पुकारते हुए दिखते हैं. 


बात उन दिनों की है जब साल 2003 तक मध्य प्रदेश की राजनीति में सियासत के बड़े खिलाड़ी पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का राज था. पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की कांग्रेस सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए तत्कालीन कोयला मंत्री उमा भारती को मध्य प्रदेश बीजेपी का अध्यक्ष बनाकर भेजा गया. पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती की खासियत रही है कि उन्होंने सियासत में कभी पद नहीं बल्कि संघर्ष को चुना है, इसलिए उन्होंने केंद्रीय मंत्री पद का पद से पल भर में इस्तीफा भी दे दिया. इसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का मध्य प्रदेश से पत्ता साफ हो गया. 


2004 में देना पड़ा इस्तीफा
जब एमपी में बीजेपी की सरकार बनी तो उमा भारती ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली. मुख्यमंत्री बनते ही उमा भारती ने अपने पसंदीदा नेताओं को पार्टी की मंशा के अनुरूप मंत्री पद से नवाजा. सरकार ठीक चल रही थी. इसी बीच साल 1994 के एक मामले में हुबली के कोर्ट से वारंट जारी हुआ. इस वारंट की तामील को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती को अगस्त 2004 में इस्तीफा देना पड़ा. पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती इस्तीफा देते ही बीजेपी के वरिष्ठ नेता दिवंगत बाबूलाल गौर एमपी की जिम्मेदारी दी गई. हालांकि गौर भी लंबे समय तक सीएम के पद पर काबिज नहीं रह पाए.


शिवराज सिंह की जमीन हुई तैयार
इस दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की जमीन तैयार की जा रही थी. उन्हें सांसद रहते हुए मध्य प्रदेश बीजेपी का अध्यक्ष बना दिया गया. इसके बाद फिर शिवराज सिंह चौहान को सीएम की जिम्मेदारी मिली.  उन्होंने अपनी काबिलियत हो जनता के बीच लोकप्रियता के चलते मंझे में हुए राजनीतिक खिलाड़ी के तौर पर लगातार चार बार सीएम की कुर्सी पर अपना सिक्का जमा लिया. वर्तमान में भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अगले सीएम के रूप में भी देखे जा रहे हैं. इस दौरान कई बार पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती से उनकी सीधी टक्कर देखने को मिली. दोनों ही एक ही पार्टी के सिपहसालार होने के बावजूद राजनीतिक मतभेद हमेशा सुर्खियां बटोर रहे है.


इन मुद्दों पर शुरू हुए थे मतभेद जो मनभेद तक पहुंचे
पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने जिन नेताओं को मंत्री पद पर नवाजते हुए पावरफुल लीडर के रूप में प्रस्तुत किया, उन्हें धीरे-धीरे किनारा होना पड़ा. इसके बाद उमा भारती के मन में हमेशा इस बात की टीस रही कि उन्होंने एमपी की दिग्विजय सिंह सरकार को उखाड़ फेंक दिया, मगर बाद में कुर्सी नए नेताओं के हाथ में चली गई. उमा भारती जब एमपी से खजुराहो सीट से सांसद थीं, उस समय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का काम देखते थे. मतलब साफ है कि शिवराज सिंह चौहान उमा भारती की तुलना में काफी जूनियर रहे हैं. विवाद के कारण एक दो नहीं बल्कि कई ऐसे हैं जो अभी तक लोगों के बीच नहीं आ सके. उमा भारती ने एमपी में जब सरकार बनाई थी, उस समय गाय, गांव, गरीब, किसान का नारा दिया था, मगर बाद में उनके साथ इस नारे को भी राजनीतिक प्रतिद्वंदिता से दूर कर दिया गया. 


वर्तमान में उमा भारती और शिवराज सिंह चौहान के बीच शराब की वजह से टकराव की स्थिति बनी हुई है. पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती शराब की दुकानों से लेकर नीति तक पर सवाल उठा रही है. दूसरी तरफ मध्यप्रदेश में शराबबंदी को लेकर सरकार की ओर से कोई कदम उठाने की संकेत नहीं है. शराबबंदी को यह टकराव लगातार जारी है.


बीजेपी नेताओं के टकराव का लाभ नहीं उठा पाई कांग्रेस
बीजेपी हमेशा कार्यकर्ता केडर बेस पार्टी के रूप में जानी जाती रही है. यही वजह है कि दिग्गज नेताओं के बीच कितना भी सियासी विवाद बढ़ जाए, इसका लाभ कभी कांग्रेस या अन्य किसी दल को नहीं मिल पाया. उमा भारती और शिवराज सिंह चौहान की अदावत खुलेआम चलती रही, मगर कांग्रेस हमेशा की तरह चुप्पी की मुद्रा में दिखाई दी. पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने बीजेपी से बगावत करते हुए भारतीय जनशक्ति पार्टी का भी निर्माण किया, किंतु कुछ ही सालों में नई पार्टी का बीजेपी विलय करना पड़ा. 


उमा भारती और शिवराज का सियासी कार्यकाल 
पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने 1984 में खजुराहो सीट से लोकसभा सांसद का चुनाव हारा था. इसके बाद उन्होंने 5 बार सांसद का चुनाव जीतकर मध्य प्रदेश ही नहीं बल्कि देश की सियासत में अपना बड़ा वजूद तैयार कर लिया. इसके बाद उन्होंने मध्यप्रदेश में राजा के नाम से फेमस पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की राजनीति पर साल 2003 के चुनाव में प्रश्नचिन्ह लगा दिया. इसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती का सियासी कद काफी ऊपर उठ गया.


पीएम की दौड़ में थे शामिल 
इसी तरह शिवराज सिंह चौहान की राजनीतिक पृष्ठभूमि भी काफी मजबूत रही है. वे संघ के प्रचारक के रूप में समाज सेवा से राजनीति में कदम रखने के बाद लगातार कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे.  उन्होंने सांसद, विधायक और लगातार चार बार सबसे अधिक समय तक मध्य प्रदेश का सीएम रहने का रिकॉर्ड बनाया है. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के राजनीतिक कद का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब साल 2013-2014 में प्रधानमंत्री पद को लेकर बीजेपी मंथन कर रही थी, उस समय नरेंद्र मोदी के साथ-साथ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और राजस्थान की सीएम वसुंधरा राजे सिंधिया पीएम पद की दौड़ में शामिल थे.


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