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MP Politics: 'अटल बिहारी' ने सीट छोड़कर 'शिवराज' को दिया था पहला टिकट!
Madhya Pradesh: मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का आज 64वा जन्मदिन है. उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत और सफलता दोनों ही कई रोचक किस्से से जुड़ी है.
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Bhopal News: मध्य प्रदेश की सियासत में भारतीय जनता पार्टी की सफलता का पहला नाम "शिवराज" है. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से मध्य प्रदेश की सत्ता की सबसे बड़ी कुर्सी तक पहुंचने वाले शिवराज सिंह चौहान का राजनीतिक जीवन आसान नहीं रहा है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक ऐसे राजनेता है जिनका चयन पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में 1991 में कर लिया था. अटल बिहारी वाजपेई ने लोकसभा सीट को छोड़कर शिवराज सिंह चौहान को लोकसभा का पहला टिकट दिया. इसके बाद से ही शिवराज सिंह चौहान का राजनीतिक जीवन और भी चमकदार हो गया.
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का आज 64वा जन्मदिन है. उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत और सफलता दोनों ही कई रोचक किस्से से जुड़ी है. इन्हीं में से एक किस्सा साल 1991 से जुड़ा है. वर्ष 1991 में बीजेपी के तत्कालीन प्रधानमंत्री पद के सबसे बड़े चेहरे अटल बिहारी वाजपेई को चुनाव लड़ाने की तैयारी की जा रही थी. इसके बाद भारतीय जनता पार्टी ने लखनऊ के साथ-साथ मध्य प्रदेश की विदिशा लोकसभा सीट से अटल बिहारी वाजपेई को चुनाव मैदान में उतारा. जैसे ही विदिशा सीट से अटल बिहारी वाजपेई ने औपचारिकता पूर्वक चुनाव लड़ने की तैयारी शुरू की, उस समय पहली बार बुधनी विधानसभा सीट से विधायक बने शिवराज सिंह चौहान को अटल बिहारी वाजपेई का चुनाव संचालक बनाया गया.
उत्तराधिकारी के रूप में किसे दिया जाए टिकट?
इस दौरान लगातार शिवराज सिंह चौहान अटल बिहारी वाजपेई के संपर्क में रहे. अटल बिहारी वाजपेई विदिशा और लखनऊ दोनों सीट से चुनाव जीत गए. इसके बाद जब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई से संगठन के नेताओं ने पूछा कि वह कौन सी सीट को खाली करेंगे ? तो उन्होंने मध्यप्रदेश की लोकसभा सीट को खाली करने का फैसला लिया. यह फैसला कोई मामूली नहीं था बल्कि इसी फैसले के साथ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के राजनीतिक कैरियर की चमक और भी बढ़ गई. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई से जब बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं ने पूछा कि उनके उत्तराधिकारी के रूप में विदिशा से किसे टिकट दिया जाना चाहिए ? तो उन्होंने कहा कि सिर्फ "शिवराज सिंह चौहान". यह नाम आते ही सभी नेता हतप्रभ रह गए और बीजेपी के तत्कालीन बड़े नेताओं ने स्पष्ट रूप से कह दिया कि शिवराज सिंह चौहान, अटल बिहारी वाजपेई के उत्तराधिकारी के रूप में चुनाव लड़ेंगे. शिवराज सिंह चौहान को विदिशा लोकसभा सीट से टिकट मिला और वे भारी बहुमत से जीत गए, जिसके बाद वे लगातार सांसद चुने जाते रहे हैं.
'शिवराज' की विनम्रता ने उन्हें सबसे अलग खड़ा किया
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बारे में यह कहा जाता है कि उनकी विनम्रता ही उनकी सबसे बड़ी ताकत और लोकप्रियता का माध्यम है. उन्होंने कभी भी विपक्ष और पक्ष दोनों ही नेताओं को नाराज नहीं किया. पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती जब शिवराज सिंह चौहान से नाराज हो गई थी तो उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के घर जाकर उनके पैर छुए और आशीर्वाद लेकर नाराजगी को दूर करने की कोशिश की. राजनीति में मध्यप्रदेश में चार बार मुख्यमंत्री बनकर रिकॉर्ड बना चुके शिवराज सिंह चौहान की विनम्रता आज भी उन्हें सबसे अलग खड़ा करती है. यही वजह है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में बीजेपी फिर विधानसभा चुनाव लड़ने जा रही है.
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