MP News: आज आदिवासी दिवस है. इस मौके पर प्रदेश भर में आदिवासी समाज द्वारा समारोह का आयोजन किया गया. इस दिन को विशेष तौर से मनाया जा रहा है तो वहीं सतपुड़ा में स्थित माता मंदिर में भी आदिवासी दिवस के विशेष अवसर पर खास पूजा-अर्चना हुई है. बता दें सतपुड़ा के इस मंदिर में कोई ब्राह्मण पुजारी नहीं है, बल्कि आदिवासी समाज के ही मामा-भांजे सालों से मंदिर में पूजा-अर्चना करते आ रहे हैं.
आज आदिवासी दिवस के विशेष मौके पर मध्य प्रदेश के अलीराजपुर, बड़वानी, झाबुआ, मंडला और डिंडौरी जिलों में इस दिन को विशेष रूप से मनाया जा रहा है. जबरदस्त उत्साह आदिवासी समाज के लोगों में देखा जा रहा है.
अधिकतर आदिवासी अपने बड़ा देव बूढ़ा देव एवं प्रकृति पूजक होते हैं, लेकिन आदिवासी अपने स्थानीय देवताओं के अलावा माता की भी शक्ति के रूप में उपासना करते हैं. गांव के शीतला माता और देव गुड़ियों में भी अक्सर आदिवासी पंडा के रुप में सेवा करते हैं. कुछ अपवादों को छोड़ दें तो अकसर मंदिरों में पूजारी के रूप में ब्राह्मण ही होते हैं. सतपुड़ा क्षेत्र में गोंड और कोरकू जनजाति बहुतायत में हैं.
प्रदेश के प्रसिद्ध पर्यटनस्थल और हिल स्टेशन पचमढ़ी के पास सतपुड़ा की तराई में अनहोनी नाम के गांव में ज्वाला देवी का प्रसिद्ध और मान्यता वाली मंदिर स्थापित है, जहां के पुजारी दो आदिवासी हैं जो रिश्ते में मामा और भांजे हैं. माता मंदिर सौ साल पुराना है. बताया जाता है कि इस मंदिर में मकर संक्रांति पर एक महीने का विशाल मेला लगता है और लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है. मंदिर में मनोकामना करने वाले भक्तों की मन वांछित इच्छा पूरी होती है, इसलिए जनता की भीड़ हजारों में आती है. पचमढ़ी और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व भ्रमण को आने वाले पर्यटक गाइड के साथ यहां भी दर्शन करने आते हैं.
मंदिर से जुड़े दो बड़े रहस्य
आदिवासी समाज में मंदिर से जुड़ी दो खास बातें हैं.सतपुड़ा के जंगलों के बीच बसे इस गांव का नाम अनहोनी है. पहली नजर में अनहोनी, मन में किसी आशंका से भर देती है और लोगों की जिज्ञासा भी इस नाम के प्रति बढ़ जाती है. दूसरा रहस्य इस अनहोनी नाम से ही फिर शुरु होती है और जो इस नाम के रहस्य को जानने इस स्थान पर आते हैं और अपने दातों तले उंगली दबा लेते हैं.
दरअसल गांव और रहस्यमय नाम से जानी जाने वाली यहां स्थापित अनहोनी ज्वाला देवी की प्रतिमा के चरणों से पानी का एक स्रोत है जो जमीन से न केवल गर्म बल्कि उबलते हुए बाहर आता है और धारा बनाते हुए आसपास बहते हुए फैल जाता है. यहां स्थापित माता ज्वाला देवी की प्रतिमा का पारंपरिक निर्माण और स्वरूप स्वयं आपको उन पर नजरे टिकाए रहने पर मजबूर कर देगी. पुजारी चंद्रभान परते बताते हैं कि वो बचपन से इस गांव और माता के प्रतिमा को देखते आ रहे हैं.
उन्होंने कहा कि पानी की धारा को इतना गरम होता है कि गरमी के दिनों में हाथ क्या बर्तन में भी नहीं ले सकते. बर्तन में भरते तक पानी का उबाल बना रहता है. उबलते पानी से कभी यहां पर चावल भी पका लेते थे. एक बार भूकंप के समय यह धारा फव्वारे के रूप में भी ऊंचाई में उठकर बहने लगी थी किसी भी सूखे या गर्मी में पानी का उबाल और स्रोत बंद नहीं हुआ. श्रद्धालुओं की आस्था के केंद्र बढ़ने और स्रोत को सुरक्षित रखने के लिए मूल स्रोत को कुंड नुमा बनाकर जाली से ढंक दिया है वहीं इस धारा को आगे रोक कर मंदिर में आने वाले लोगों के स्नान के लिए पुरुष और महिला स्नान कुंड बना दिया है. यहां कोई भी श्रद्धालु डुबकी लगा कर स्नान कर सकता है.
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