Independence Day News: आजादी की 75 वीं वर्षगांठ के मौके पर देश जहां एक और अमृत महोत्सव (Azadi Ka Amrit Mahotsav) मना रहा है. साथ ही साथ लोगों को  आजादी के जाबांज हीरोज से भी परिचित भी कराया जा रहा है. इसी कड़ी में आज हम आपको एक एमपी (MP) के सीहोर (Sehore) में अंग्रेजों द्वारा किए गए एक ऐसे नरसंहार की कहानी बताने वाले है जिसे सुनकर हर राष्ट्रभक्त के रोंगटे खड़े हो जाएंगे.


सीहोर में भी अंग्रेजों ने किया था नरसंहार


देश की अमर क्रांति के इतिहास में असंख्य बलिदानों में सबसे बड़ा नाम जलियांवाला बाग नरसंहार का लिया जाता है. लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि अंग्रेजों ने मध्यप्रदेश के सीहोर में भी एक नरसंहार किया था. इसीलिए इसे मध्य प्रदेश का जलियांवाला बाग भी कह सकते हैं. अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति के दौरान जब बगावत के स्वर सैनिक छावनी में पूरे देश के अंदर उठ रहे थे. उसी दौरान मध्यप्रदेश के सीहोर के अंदर भी 356 क्रांतिवीरों ने बगावत का बीड़ा उठाया था.इस ऐतिहासिक विद्रोह का उल्लेख मध्यप्रदेश शासन द्वारा प्रकाशित कराई गई पुस्तक सिपाही बहादुर में मिलता है.


 ऐसे उठाई अत्याचार के विरुद्ध उठाई आवाज


सिपाही बहादुर और इतिहासकारों से प्राप्त जानकारी के अनुसार 1857 की क्रांति के दौरान 11 जुलाई के दिन सामग्री में मिलावट की शिकायत सीहोर छावनी में सिपाहियों के द्वारा दर्ज कराई गई थी. जब मिलावट की जांच सामने आई तो सिपाहियों को विद्रोह करने का सीधा अवसर भी मिल गया. इसी के साथ सिपाहियों ने अंग्रेजों के अत्याचार के विरूद्ध बिगूल फूंक दिया और एक समानांतर सरकार का निर्माण भी कर दिया था.


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 करीब 356 क्रांतिवीरों को गोलियों से भूना


वहीं अंग्रेज इस विद्रोह को सहन नहीं कर सके और मुंबई से एक सेना का दल इस विद्रोह को दबाने के लिए भेजा गया. अंग्रेजों की सेना मुंबई से 8 जनवरी 1858 को सीहोर भेजी गई. बाद में क्रांतिकारियों और अंग्रेजों के बीच युद्ध हुआ. लेकिन अंत में 14 जनवरी के दिन सैकड़ों क्रांतिकारियों ने सैकड़ाखेड़ी स्थित चांदमारी मैदान पर अपने बलिदान का अंतिम झंडा गाड़ दिया. अंग्रेजो के द्वारा लगभग 356 से अधिक क्रांतिवीरों को गोलियों से भून दिया गया था. इसलिए हत्या कांड को मध्यप्रदेश का जलियांवाला बाग कह सकते हैं.


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