Shortage of Fertilizer in MP: मध्यप्रदेश सरकार के लाख दावों के बावजूद प्रदेश में खाद की किल्लत बनी हुई है. घंटों कतार में लगने के बाद भी किसानों को पर्याप्त खाद नहीं मिल रहा है. मजबूरी में किसानों को सडक़ पर आक्रोश जताना पड़ रहा है. इधर रात-दिन किसानों को खाद के लिए कतार में लगना पड़ रहा है. भोपाल के नजदीकी जिले सीहोर में जहां किसान लाइन में खड़े हो रहे हैं तो वहीं उनकी जमीन के कागजात भी कतार में लगे नजर आ रहे हैं. 


सीहोर जिला मुख्यालय स्थित कृषि उपज मंडी में स्थित सोसायटी में जहां एक तरफ किसान खाद की कतार में दिखे तो वहीं किसानों ने बही, आधार कार्ड की फोटोकापी को कतारबद्ध करके रखा है. यह कागज हवा में उड़ न जाए इसके लिए किसानों ने इस पर पत्थर रखा हुआ है. किसानों का दर्द है कि सुबह से खाद के लिए यहां पहुंच गए थे, कतार में लगे हैं, लेकिन अब तक खाद नहीं मिल सका है. 


खाद के लिए जद्दोजहद कर रहे किसान


किसानों का दर्द है कि खाद के लिए अल सुबह से घर से निकले हैं. मालूम था कि खाद के लिए जद्दोजहद करना पड़ेगी, इसके लिए घर से रोटी (खाना) बांधकर लाए और यहीं पेड़ के नीचे बैठकर खाया है. किसानों का कहना है कि सरकार हर साल दावा करती है कि पर्याप्त खाद है. किसानों को परेशानी नहीं उठाना होगी लेकिन, हर साल हम किसानों को खाद के लिए मशक्कत करनी पड़ती है. किसानों का आरोप है कि भरी धूप में यहां कतार में लगना पड़ रहा है जबकि खाद बांटने वाले कर्मचारी-अधिकारियों की डांट भी खानी पड़ रही है. 


पर्याप्त मात्रा में हमें खाद मिले- किसान


एबीपी न्यूज़ ने जब किसानों से बात की तो बताया गया कि मध्यप्रदेश के कृषि मंत्री खाद की किल्लत के पीछे की वजह यूक्रेन-रूस के बीच हो रहे युद्ध को बता रहे हैं, जिस पर किसानों ने कहा कि कौन सा यूक्रेन-रूस का युद्ध. हम तो मध्यप्रदेश और भारत की सरकार के लिए मतदान करते हैं, हमें रूस-यूक्रेन से क्या लेना देना. किसानों को पर्याप्त मात्रा में खाद मिलना चाहिए. 


खाद संकट पर विपक्ष हमलावर


इधर, खाद संकट पर विपक्ष लगातार हमलावर है. पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह और पीसीसी चीफ जीतू पटवारी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर खाद संकट को लेकर केन्द्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को जिम्मेदार ठहराया है. 


दिग्विजय सिंह ने कहा, ''1993 से लेकर 2003 तक कांग्रेस पार्टी की सरकार थी, उस दौरान खाद के लिए किसान को परेशान नहीं हो पड़ा और एक भी बोरी खाद की कालाबजारी नहीं हुई. आज खाद की ब्लैक मार्केटिंग और नकली खाद के मामले बढ़ रहे हैं.''


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