MP Siyasi Scan: जीवन के शुरुआती दौर जब मजदूरों के साथ अन्याय देखा तो एक ऐसी तड़प जाग उठी कि मजदूरों को कैसे न्याय दिलाया जाए? मजदूरों की लड़ाई कैसे लड़ी जाए? इन सवालों का जवाब ढूंढते-ढूंढते मध्य प्रदेश के जावद में जन्मे डॉ. सत्यनारायण जटिया ने भारतीय मजदूर संघ के जरिए सड़क पर अन्याय के खिलाफ लड़ाई शुरू कर दी. मजदूरों के मसीहा के रूप में पहचान बनाने के बाद जब उन्होंने राजनीतिक सफर शुरू किया तो कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. इस राजनीतिक सफर की सफलता के पीछे भी मजदूरों की मेहनत ही सबसे बड़ी वजह बताई जाती है. 


एक बार विधायक, 6 बार सांसद, दो बार केंद्रीय मंत्री, एक बार राज्यसभा सदस्य, भारतीय जनता पार्टी के मध्य प्रदेश अध्यक्ष, पार्लियामेंट्री बोर्ड के सदस्य जैसे कई महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके डॉ. सत्यनारायण जटिया ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत मजदूरों की लड़ाई के साथ शुरू की थी. मिल मजदूरों के लिए सड़क पर उतरने वाले डॉ. सत्यनारायण जटिया ने रेल रोको आंदोलन में भी हिस्सा लिया. इस दौरान वे कई बार जेल भी गए. 


मजदूर वर्ग की समस्या के बारे में जानते थे डॉ. सत्यनारायण जाटिया


जब भारतीय मजदूर संघ के बैनर तले मजदूरों के हक की लड़ाई के लिए डॉ. सत्यनारायण जटिया सड़क पर उतरते थे तो उनके साथ सैकड़ों की संख्या में मजदूर भी सड़क पर आ जाते थे. उन्होंने मजदूरों के बीच बैठकर उनकी समस्याओं को जाना और इसके बाद उन्हें समस्या से निजात दिलाने के लिए सड़क पर लड़ाई शुरू की. डॉ. सत्यनारायण जटिया काफी निर्धन परिवार से जुड़े हुए थे, इसलिए उन्हें मजदूर वर्ग की अधिकांश समस्या के बारे में अच्छी तरह पता था. 


इसी वजह से उन्हें मजदूरों की लड़ाई लड़ने में महारथ हासिल हो गई. जब मजदूरों की लड़ाई लड़ने के लिए राजनीति के क्षेत्र में आए तो उनका साथ हजारों की संख्या में श्रमिकों ने भी दिया. उन्होंने बिना किसी पारिश्रमिक उनका प्रचार प्रसार किया और उन्हें विधानसभा से लेकर लोकसभा तक पहुंचा. 


आज भी मजदूरों के लिए दरवाजे खुले
डॉ. सत्यनारायण जटिया ने पहली बार आगर मालवा से 1977 में विधायक का चुनाव जीता. इसके बाद उन्होंने साल 1980, 1990, 1995, 1998, 1999 और 2004 में लगातार लोकसभा सीट से जीत हासिल की. उज्जैन आलोट लोकसभा सीट से 6 बार सांसद बने डॉक्टर जटिया सामाजिक न्याय मंत्री भी रह चुके हैं. इसके अलावा वर्तमान में वे पर्लियामेंट्री बोर्ड के सदस्य हैं.


इतने बड़े ओहदे पर पहुंचने के बाद भी आज भी वे मजदूरों की समस्याओं को लेकर हमेशा जुझते रहते हैं. जब भी कोई मजदूर अपनी समस्या लेकर जाता है तो वे खुद उसका निदान करते हैं. आज भी वे अपनी पहचान श्रमिक नेता के रूप में ही मानते हैं.


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