MP Siyasi Scan: 1956 में मध्य प्रदेश के गठन के बाद पहले दो मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल (Ravishankar Shukl) और भगवतराम मंडलोई (Bhagwatram Mandloi ) ज्यादा दिन इस कुर्सी पर नहीं टिक पाए. ऐसे में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू (Jawahar Lal Nehru) को चिंता हुई कि अब मध्य प्रदेश की कमान किसे दी जाए, जो स्थाई तौर पर लंबे समय तक सरकार चला सके.


उन्होंने इसके लिए ऐसा नाम चुना, जिसने उनकी एक साथ दो दुविधाएं दूर कर दीं. मध्य प्रदेश की सियासी की सीरीज में आज हम उसी नेता का जिक्र करेंगे, जो कभी उत्तर प्रदेश के कानून मंत्री थे और बाद में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. उन्हें पैराशूट सीएम (Parachute CM) भी कहा गया.


21 दिन ही सीएम रहे भगवतराम मंडलोई
यहां बताते चले कि 31 जनवरी 1956 को तत्कालीन मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल के निधन के बाद भगवतराम मंडलोई को मध्य प्रदेश का कार्यवाहक मुख्यमंत्री बनाया गया. वे इस पद पर 9 जनवरी 1957 से 30 जनवरी 1957 तक ही रह पाए. 21 दिन की कार्यवाहक सरकार चलाने के बाद कांग्रेस हाईकमान के आदेश पर उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया.


उनकी जगह प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कभी उत्तर प्रदेश राज्य के कानून मंत्री रहे कैलाशनाथ काटजू को भोपाल भेजकर मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलवा दी. कैलाश नाथ काटजू को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने के बाद 1957 में ही विधानसभा के चुनाव करवाये गए.


कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में बड़ी जीत हासिल की और काटजू को दोबारा मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई. वह नेहरू की उम्मीद पर खरे उतरे. काटजू मध्य प्रदेश के पहले ऐसे सीएम बने, जिन्होंने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया.


अपनी ही सीट से हार गए सीएम
1962 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस पार्टी ने कैलाशनाथ काटजू के नेतृत्व में लड़ा. हालांकि, कांग्रेस चुनाव तो जीत गयी, लेकिन मुख्यमंत्री कैलाशनाथ काटजू अपनी ही सीट से चुनाव हार गए. कैलाशनाथ काटजू के हार जाने के बाद विधानसभा में मंडलोई के कद को देखते हुए उन्हें फिर से मुख्यमंत्री पद के लिए चुना गया. 12 मार्च 1962 से 29 सितंबर 1963 तक उन्होंने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप नेतृत्व किया.


जानिए कैलाश नाथ काटजू को भोपाल भेजने की कहानी
कैलाश नाथ काटजू को भोपाल भेजे जाने के पीछे भी रोचक कहानी है. मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार दीपक तिवारी अपनी पुस्तक 'राजनीतिनामा मध्य प्रदेश :1856 से 2003 कांग्रेस का युग' में इसका जिक्र करते हैं. वे लिखते हैं, शायद नेहरू उन्हें मध्य प्रदेश में व्यस्त रखकर वीके कृष्णमेनन को रक्षामंत्री बनाना चाहते थे. डॉ. कैलाश नाथ काटजू मोतीलाल नेहरू के साथ वकालत में सहायक रह चुके थे.


उनकी स्थिति जवाहरलाल नेहरू के ऊपर थी. जवाहरलाल नेहरू के साथ प्रसिद्ध आईएनए लाल किला ट्रायल में भी वे काला कोट पहनकर वकालत में साथ थे. कैलाशनाथ काटजू नेहरू जी से दो 2 साल बड़े भी थे. जवाहर लाल नेहरू को लगा कि यही सही समय है, जब काटजू को दिल्ली की राजनीति से हटाकर मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाकर भेजा जा सकता है. इसके बाद की कहानी ऊपर बताई ही जा चुकी है. 1957 में कैलाश नाथ काटजू को मुख्यमंत्री बना दिया गया.


दिलचस्प है कैलाशनाथ काटजू का किस्सा
वरिष्ठ पत्रकार काशीनाथ शर्मा बताते हैं कि मध्य प्रदेश के तत्कालीन राजनेता पंडित जवाहर लाल नेहरू के इस फैसले से खुश नहीं थे. माना गया कि कैलाश नाथ काटजू पैराशूट मुख्यमंत्री हैं. राजनीति में कैलाश नाथ काटजू से जुड़ा एक किस्सा बहुत दिलचस्प है. 1937 ब्रिटिश सरकार ने पूरे देश में चुनाव कराए थे. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी. गोविंदवल्लभ पंत यूपी के पहले मुख्यमंत्री बने.


उनकी कैबिनेट में सभी मंत्रियों की जगह तय हो गई. लेकिन, मामला अटका कानून मंत्री पर. विचार किया गया कि कानून मंत्री किसे बनाया जाए. उस वक्त प्रसिद्ध वकील और कानून के जानकार कैलाश नाथ काटजू को यह पद दिया जाना सुनिश्चित हुआ. लेकिन, काटजू यह पद लेने के लिए तैयार नहीं थे. 


राजेंद्र प्रसाद के मनाने पर बने मंत्री
पंडित जवाहर लाल नेहरू ने तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद को काटजू को मनाने की जिम्मेदारी सौंपी. राजेंद्र प्रसाद के मनाने के बाद ही कैलाश नाथ काटजू ने उत्तर प्रदेश सरकार में कानून मंत्री का पद ग्रहण किया. यह भी कहा जाता है कि काफी समझाने के बाद जब वे सहमत हुए तो उन्होंने अपनी बैंक पासबुक सामने रख दी. कहा जाता है कि उस समय उनके खाते में तेरह लाख रुपए थे.


ऐसा करते हुए उन्होंने कहा कि मैं नहीं चाहता कि जब मैं मंत्री पद से हटूं, तो कोई मुझ पर लांछन लगाए कि मैंने गलत तरीकों से यह सम्पत्ति अर्जित की है. कालान्तर में स्वतंत्रता पूर्व और बाद में वे गृह, रक्षा और विधि विभाग के मंत्री रहे. 31 जनवरी सन् 1957 को जब डॉ. कैलाश नाथ काटजू भोपाल के बैरागढ़ हवाई अड्डे पर उतरे तो उन्हें भोपाल में जानने वाला कोई नहीं था.


और हंस दिए कैलाश नाथ काटजू
डॉ कैलाश नाथ काटजू के बारे में कहा जाता है कि अधिक उम्र के कारण उन्हें भूलने की बीमारी हो गई थी. देखने और सुनने में तकलीफ भी थी. एक बार का किस्सा है कि जब वे खंडवा गए तो तत्कालीन कलेक्टर सुशील चंद्र वर्मा गाड़ी चलाते हुए बुरहानपुर दौरा कराने के लिए ले गए. बुरहानपुर रेस्ट हाउस में अधिकारियों से परिचय के समय कलेक्टर मुख्यमंत्री से दूर बगल में खड़े थे.


जब सबसे परिचय हो गया तो कैलाश नाथ काटजू ने सुशल चंद्र वर्मा से मुखातिब होते हुए कहा कि महाशय आपने अपना परिचय नहीं दिया. अब पर वे बगलें झांकने लगे और धीरे से कहा कि सर मैं कलेक्टर हूं और आपकी गाड़ी चलाते हुए मैं ही आया हूं. इसके बाद झेंप मिटाते हुए कैलाश नाथ काटजू हंस दिए. 


दो बार जेल गए थे कैलाश नाथ काटजू
प्रसिद्ध न्यायाधीश मार्कण्डेय काटजू एमपी के पूर्व सीएम कैलाश नाथ काटजू के प्रपौत्र हैं. उस जमाने में कैलाश नाथ काटजू की आमदनी 25 हजार रुपए महीने आंकी जाती थी. मध्य प्रदेश के जावरा में जिले में 17 जून 1887 को जन्मे कश्मीरी मूल के कैलाश नाथ काटजू ने लाहौर से पढ़ाई की थी. वे प्रसिद्ध वकील और तेज तर्रार नेता थे. उन्होंने आजाद हिंद फौज के लिए भी वकालत की थी. अंग्रेजों से स्वाधीनता आंदोलन की लड़ाई के दौरान वे दो बार जेल भी गए.


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