MP Politics: दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी होने का दावा करने वाली बीजेपी (BJP) आज 43 साल की हो गई है. मध्य प्रदेश की कद्दावर नेता राजमाता विजया राजे सिंधिया (Vijya Raje Scindia) बीजेपी की संस्थापक सदस्यों में से एक थीं. राजमाता विजयाराजे सिंधिया बीजेपी और जनसंघ से पहले कांग्रेस (Congress) की बड़ी नेता हुआ करती थीं. साल 1967 में उन्होंने एक ऐसी चाल चली, जिसने मध्य प्रदेश की राजनीति में एक नया इतिहास रच दिया. उन्होंने कांग्रेस की निर्वाचित सरकार का तख्तापलट करवा दिया. मध्य प्रदेश के सियासी किस्सों की सीरीज में आज हम उसी ऐतिहासिक घटना के बारे में बात करेंगे.


डीपी मिश्र थे सीएम
यह 1960 का दशक था. उन दिनों मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले द्वारिका प्रसाद मिश्र यहां के मुख्यमंत्री हुआ करते थे. उस दौर में राजमाता विजयाराजे सिंधिया मध्य प्रदेश की राजनीति में दबदबा रखती थीं. वह ऐसा समय था, जब राजनीति में राजे-रजवाड़ों का बहुत ज्यादा प्रभाव होता था. राजा-महाराजा भी कांग्रेस के साथ ही खड़े दिखाई देते थे. मध्य प्रदेश का सिंधिया राज घराना भी कांग्रेस के निकट था. यह सिलसिला 1967 तक चला.


राजमाता को नागवार गुजरी यह बात
वरिष्ठ पत्रकार काशीनाथ शर्मा बताते हैं कि इसी दौरान पचमढ़ी में युवक कांग्रेस का सम्मेलन हुआ. इस सम्मेलन का आयोजन अर्जुन सिंह ने किया था. इस आयोजन में राजमाता विजयाराजे सिंधिया भी उपस्थित थीं. मुख्यमंत्री द्वारिका प्रसाद मिश्रा ने सम्मलेन में राजशाही पर जमकर तंज कसा और कई तीखी टिप्पणी की. उन्होंने राजशाही को लोकतंत्र का दुश्मन बता दिया. यह बात राजमाता विजयाराजे सिंधिया को नागवार गुजरी और उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी.


राजमाता के कांग्रेस छोड़ते ही पड़ गई दरार
इसके बाद 1967 में मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव हुए. राजमाता गुना सीट से स्वतंत्र उम्मीदवार बनी और चुनाव में जीत हासिल की. इसके अलावा वे शिवपुरी की करैरा सीट से भी जनसंघ की टिकट पर चुनाव लड़ी थीं. इस सीट से भी उन्हें जीत मिली थी. उन्हें विपक्ष का नेता बनाया गया. उधर, राजमाता के कांग्रेस छोड़ने के बाद पार्टी में दरारें पड़ने लगीं थीं. पार्टी के कई बड़े नेता मुख्यमंत्री द्वारिका प्रसाद मिश्रा के स्वभाव से नाराज चल रहे थे.इसका फायदा राजमाता को मिला.


रातोंरात गिर गई डीपी मिश्र की सरकार
काशीनाथ शर्मा बताते हैं कि करीब 35 विधायक गोविंदनारायण सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस से अलग हो गए और राजमाता के पास पहुंचे. इसके बाद राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने तनिक भी देर न करते हुए कांग्रेस का तख्तापलट कर दिया. रातोंरात द्वारिका प्रसाद मिश्रा की सरकार गिर गई. उन्होंने 15 फीसदी विधायकों का दल-बदल करवाया और देश में पहली बार संयुक्त विधायक दल बनवा दिया. जनसंघ, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और कांग्रेस के दल-बदलू विधायक एकजुट हो गए थे. राजमाता विजयाराजे सिंधिया को सीएम बनने का प्रस्ताव दिया गया, लेकिन उन्होंने अपनी जगह कांग्रेस के बागी गोविंदनारायण सिंह को मुख्यमंत्री की शपथ दिलाई. वह खुद सदन की नेता चुनी गईं. 


19 महीने ही चल पाई सरकार
राजनीतिक जानकार बताते हैं कि संविदा सरकार बनने के पीछे की वजह वर्चस्व का टकराव था, जो द्वारिका प्रसाद मिश्रा और राजमाता के बीच पचमढ़ी में कांग्रेस कार्यकर्ता सम्मलेन में हुआ था. उन्होंने तय किया कि वे इस अपमान का बदला जरूर लेंगी. हालांकि,संविदा सरकार महज 19 माह ही चल पाई और गोविन्द नारायण सिंह ने आपसी मतभेदों के चलते 10 मार्च 1969 को इस्तीफ़ा दे दिया.


राजनीतिक कैरियर
राजमाता विजया राजे सिंधिया (12 अक्टूबर 1919-25 जनवरी 2001) का जन्म मध्य प्रदेश के सागर जिले में राणा परिवार में ठाकुर महेंद्र सिंह एवं चूड़ा देवेश्वरी देवी के घर हुआ था. वे अपने पिता की सबसे बड़ी संतान थीं. इनके पिता जालौन जिले के डिप्टी कलेक्टर हुआ करते थे. इनके बचपन का नाम लेखा देवेश्वरी देवी था. उनका विवाह ग्वालियर के महाराजा जीवाजी राव सिंधिया से हुआ.


भारत से राजशाही समाप्त होने पर वे राजनीति में उतर गईं और कई बार संसद के दोनों सदनों में चुनी गईं. वह कई दशकों तक जनसंघ और बीजेपी की सक्रिय सदस्य भी रहीं. वे पहली बार 1957 में गुना से लोकसभा के लिए चुनी गईं. विजया राजे सिंधिया ने 1957 में कांग्रेस से अपनी राजनीतिक पारी शुरू की थी. वह गुना लोकसभा सीट से सांसद चुनी गईं. लेकिन, कांग्रेस में 10 साल बिताने के बाद विजयाराजे सिंधिया ने 1967 में जनसंघ ज्वाइन कर लिया.


कहते हैं कि विजया राजे सिंधिया की बदौलत ही ग्वालियर क्षेत्र में जनसंघ काफी मजबूत हुआ था. साल 1971 में पूरे देश में जबरदस्त इंदिरा लहर होने के बावजूद जनसंघ ने ग्वालियर क्षेत्र की तीन सीटों पर जीत हासिल की थी. विजयाराजे सिंधिया भिंड से, उनके पुत्र माधवराव सिंधिया गुना से और अटल बिहारी वाजपेयी ग्वालियर से सांसद बने थे.


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