Singrauli News: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के सिंगरौली (Singrauli) जिला मुख्यालय बैढन से 10 किलोमीटर दूर शक्तिनगर में स्तिथ है ज्वाला देवी का मंदिर (Jwala Devi Temple). बताया जाता है कि यहां देवी सती की जीभ के अग्रभाग का छोटा सा हिस्सा गिरा था. कई सालों से जल रही अखंड ज्योति भी यहां श्रद्धा का केंद्र बनी हुई है.


ज्वाला देवी शक्तिपीठ के तीर्थ पुरोहितों के अनुसार, शक्ति स्वरूपा मां भगवती के जीभ के अग्रभाग का छोटा सा हिस्सा सिंगरौली के रानी बारी नामक गांव में गिरा था, जो बाद में चलकर ज्वालामुखी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हुआ. पुजारियों ने पौराणिक कथाओं का जिक्र करते हुए बताया कि श्रृंगी ऋषि की तपोस्थली सिंगरौली राज्य के कुंवर उदित नारायण सिंह गहरवार को मां ज्वाला देवी ने स्वप्न दिया था.


 मां ज्वाला देवी का स्थापना
सपने में देवी ने कहा कि हे राजन तुम्हारे राज्य की राजधानी गहरवार के समीप रानी बारी गांव में नीम और बेल के जंगल में मेरी प्रतिमा पड़ी है. जिसकी तुम आराधना करो. तुम्हारे राज्य में सुख शांति और समृद्धि होगी. साथ ही तुम्हारे राज्य का यश पूरे विश्व में फैलेगा. इसके बाद राजा ने उस प्रतिमा की खोज कराई और उसको प्राप्त किया.


इसके बाद राजा प्रतिमा को लेकर अपने राजधानी की ओर जाना चाहते थे, लेकिन काफी प्रयास के बाद भी वो प्रतिमा को ले जाने में असफल रहे. तब राजपूतों के सुझाव से मां ज्वाला देवी का स्थापना कराई गई.


लोग देवी दर्शन को हैं आते
चैत्र शुक्ल पक्ष रामनवमी के दिन मंदिर का जीर्णोद्धार करते हुए मां की प्रतिमा को स्थापित कर विधि विधान से पूजा की गई. उसके बाद काशी के विद्वान पंडित तीर्थ पुरोहित गंगाधर मिश्र की यहां  मठपति के रूप में नियुक्ति की गई. तभी से हर साल चैत्र रामनवमी में एक महीने का विशाल मेला लगता है. साथ ही यहां चैत्र और शारदीय नवरात्रों में भक्तों का तांता लगता है.


इस दौरान लाखों श्रद्धालु नारियल, चुनरी माला फूल चढ़ाकर मनचाहा फल प्राप्त करते हैं. नवरात्र के दौरान मां के भक्त जवारी जुलूस लेकर हाथों में जवार, मशाल, त्रिशूल, खप्पर और तलवार आदि के साथ ढोल मजीरा के साथ नाचते गाते देवी दर्शन को आते हैं.


मंदिर के प्रधान पुजारी श्लोकी मिश्रा बताते हैं कि, इस मंदिर परिसर में एक निम का पेड़ है.  12 महीने यानी जनवरी से लेकर दिसम्बर तक उस पेड़ में फूल देखने को मिलता है.  इसी मंदिर के पास एक तालाब भी है जिसका पानी हमेसा गंगा जल के समान है.  उसमें कभी कीड़े नहीं पड़ते. इस जल का हमेसा एक जैसा ही स्वाद रहता है इस तालाब के जल से कई असाध्य रोगों का भी इलाज होता है.


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