Fish Species: उत्तरी अमेरिका की झीलों में पाई जाने वाली एक विशेष प्रजाति की मछली भोपाल के बड़े तालाब में मिली है. यह मछली तब मिली जब एक व्यक्ति तालाब में मछली पकड़ रहा था. विशेषज्ञों के मुताबिक इस मछली का नाम एलिगेटर गार है. इसके मुंह के आकार की वजह से इसे क्रोकोडाइल फिश के नाम से भी जाना जाता है.
भोपाल में किसने पकड़ी यह मछली
इस मछली को भोपाल के बड़े तालाब में से अनस नाम के एक व्यक्ति ने पकड़ा. वह कोहेफिजा क्षेत्र के खानूगांव के रहने वाले हैं. वो मंगलवार को बड़े तालाब में मछली पकड़ रहे थे. इस दौरान ही यह मछली उनके हाथ लगी.जब उन्होंने मछली को बाहर निकाला तो पहली नजर में वह मगरमच्छ का बच्चा लग रही थी. लेकिन ध्यान से देखने पर वह मछली लगी.अनस ने जब मछली को बाहर निकाला तो उसे देखने के लिए लोग जमा हो गए. लोगों ने उसके फोटो और वीडियो इंटरनेट पर डाल दिए.
स्थानीय मीडिया को अनस ने बताया,''मैं हर दिन की तरह मंगलवार शाम को छह से सात बजे के बीच बड़े तालाब में मछली पकड़ रहा था.वहां मैंन कांटा लगा रखा था,कुछ देर बाद एक मछली आकर फंस गई. उसे मैंने बाहर निकाला. उस मछली को देखकर मुझे लगा कि यह मगरमच्छ का बच्चा है जो कांटे में फंस गया है, लेकिन उसके पैर नहीं होने से मैंने दोबारा नजर डाली तो वह मछली जैसी ही लगी. इससे मैंने उसको बाहर निकाला और उसे बचाने का प्रयास किया,लेकिन मैं उसे बचा नहीं पाया. मैंने अपने साथियों से पूछा और खुद भी जानकारी जुटाई तो वह विदेश में पाई जाने वाली मछली जैसी लग रही थी.''
क्या कहना है विशेषज्ञों का
मत्स्य विभाग के सहायक संचालक एसपी सैनी ने बताया कि भोपाल के बड़े तालाब में मिली मछली उत्तरी अमेरिका में पाई जाती है.इसे ऐलिगेटर गार के नाम से जाना जाता है. इसके आने के पीछे यह कारण हो सकता है कि हावड़ा और कोलकाता से मछली के सीड लाए जाते हैं. इनके माध्यम से भी यह वर्षा में नदियों के जरिए यहां तक पहुंची होगी. वहीं कुछ लोग इसके बारे जाने बिना ही एक्वेरियम में पाल लेते हैं,जब यह बड़ी होने लगती है तो इसे जलाशय में छोड़ देते हैं.
बड़े तालाब में मिली मछली की लंबाई डेढ़ फीट थी. उसका वजन करीब ढाई किलो था. इस मछली का मुहं मगरमच्छ के जबड़े जैसा था. इसलिए इसे क्रोकोडाइल फिश भी कहा जाता है. विशेषज्ञों के मुताबिक यह मांसाहारी मछली मीठे पानी में पाई जाती है. इसकी उम्र 18 से 20 साल तक होती है. यह 10 फीट तक लंबी हो सकती है. केरल में इसका पालन किया जाता है. इसके पांच इंच तक के बच्चे एक से दो हजार रुपये में मिलते हैं.
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