Leakage in Oxygen Plant: मरीजों की सुविधा और कोरोना जैसी महामारी से निपटने के उद्देश्य से पीएम केयर्स फंड से जिला मुख्यालय पर स्थापित किए गए ऑक्सीजन प्लांट शुरू किया गया था लेकिन टेस्टिंग के कुछ दिन बाद से ही प्लांट लीकेज हो जाने से अब तक बंद है. ऐसे में अब अस्पताल में उपचार के लिए गंभीर भर्ती जरूरतमंद मरीजों को ऑक्सीजन  उपलब्ध कराने के लिए जिले का स्वास्थ्य विभाग निजी ऑक्सीजन विक्रेताओं से महंगा सिलेंडर खरीदना पड़ रहा है. 


कोरोना के दूसरी लहर के दौरान लगा था ऑक्सीजन प्लांट
कोरोना काल की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन की कमी होने और कोरोना से पीड़ित मरीजों की हो रही मौतों को देखते हुए केंद्र सरकार द्वारा पीएम केयर्स फंड से जिला मुख्यालय पर एक करोड़ 33 लाख की लागत से ऑक्सीजन प्लांट स्थापित किए जाने की मंजूरी दी गई थी. दूसरी लहर का प्रकोप थम जाने के बाद जिला मुख्यालय पर लंबे अंतराल के बाद इस स्वीकृत आक्सीजन प्लांट को स्थापित करते हुए मुख्यमंत्री द्वारा इसका वर्चुअल व लोकार्पण सितंबर माह में कर दिया था लेकिन इस प्लांट में बनने वाली आक्सीजन की जांच नहीं हो पाने और जिला अस्पताल के विभिन्न भागों में ऑक्सीजन की सप्लाई लाइन नहीं बिछाई जाने के कारण इसे शुरू नहीं किया जा सका था.
जांच मानकों पर भी नहीं उतरा था खरा
नवंबर महीने में प्लांट से बनने वाली ऑक्सीजन की गुणवत्ता जांचने के लिए इसे के सैंपल लिए गए और उन्हें बेंगलुरु की प्रयोगशाला में भेजा गया जहां से जांच रिपोर्ट सामने आई उसमें जिला मुख्यालय पर स्थापित यह प्लांट किसी भी मानक पर खरा साबित नहीं हो सका. उसके बाद भी प्लांट को चालू रखा गया और इसमें लीकेज की समस्या उत्पन्न हो जाने से इसे पूरी तरह से बंद कर दिया गया. वहीं इसके कुछ दिन बाद ही स्वास्थ मंत्री ने प्लांट का निरीक्षण किया था. तब भी उन्होंने प्लांट को तुरंत दुरुस्त करने के निर्देश दिए थे, लेकिन अब तक प्लांट दुरुस्त नहीं किए गए हैं। तीसरी लहर ने दस्तक दे दी है, लेकिन अब तक प्लांट को ठीक नहीं किया गया है.


कर्मचारियों की भी है कमी
वहीं एक और समस्या है जिसका सामना प्लांट शुरू करने से पहले सामने आ खड़ा हुआ है. स्वास्थ विभाग में पहले से ही कर्मचारियों की कमी है ऐसे में प्लांट में भी कर्मचारी नहीं है. जिससे प्लांट शुरू नहीं हो पा रहे है. दरअसल, प्रदेश में भर में आक्सीजन प्लांटों का मंत्रियों और अफसरों ने शुभारंभ तो कर दिया लेकिन विभाग ने इस ओर ध्यान देना ही उचित नहीं समझा कि इन प्लांटों को चलाने के लिए अस्पताल के कर्मचारियों को प्रशिक्षित भी किया जाना चाहिए. जब प्लांट लगाए गए तभी कंपनी के इंजीनियर ने संबंधित अस्पताल के कर्मचारी को संचालन का तरीका बताया, इसके अतिरिक्त अन्य कोई जानकारी नहीं दी. इससे प्लांट से मानक स्तर पर आक्सीजन तैयार नहीं होने की समस्या खड़ी हो गई. मालूम हो कि मेडिकल कालेज छोड़ कहीं भी बायोमेडिकल इंजीनियर नहीं हैं.


सीहोर के अलावा इन प्लांटों में मिली थी अशुद्ध आक्सीजन
जिला अस्पताल छतरपुर, दतिया, देवास, मंडला, नरसिंहपुर, सागर, सिंगरौली, विदिशा, सीएचसी गुना, सिविल अस्पताल अंबाह मुरैना, सिविल अस्पताल नसस्र्ल्लागंज सीहोर, सीएचसी रेहटी सीहोर, सीएचसी विजयपुर श्योपुर, सिविल अस्पताल हटा, दमोह, मंदसौर में सीएचसी सीतामऊ और सुवासरा, नरयागढ़,सीएचसी मनासा जिला नीमच, जिला अस्पताल देवास, जिला अस्पताल बैतूल, एमआरटीबी इंदौर, सिविल अस्पताल सिहोरा जबलपुर, सिविल अस्पताल थांदला, झाबुआ, जीएमसी रतलाम, जिला अस्पताल मुरैना, सीएचससी बड़ोदा श्योपुर, सीएचसी मैहर जिला सतना, सीएचसी गाडरवाड़ा जिला नरसिंह पुर, सीएचसी जतारा जिला टीकमगढ़, जिला अस्पताल टीकमगढ़, सिविल अस्पताल लांझी जिला बालाघाट, सिविल अस्पताल बेगमगज जिला रायसेन, सिविल अस्पताल खुरई जिला सागर और माधव नगर उज्जैन शामिल थे. इनमें से कुछ में सुधार का काम शुरू भी हो चुका है. सिविल सर्जन अशोक माझी का कहना है कि एक-दो दिन में प्लांट शुरू हो जाएगा इंजीनियर आ गए हैं. जो फाल्ट है उसको सुधार रहे है फिलहाल अभी ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है पर्याप्त ऑक्सीजन सिलेंडर है हमारे पास.


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