Temple of Ujjain: कवि कालिदास की अज्ञानता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता था कि वे जिस डाल पर बैठते थे उसी को काट देते थे. लेकिन माता गढ़ कालिका के दर्शन के बाद उन्हें ऐसे प्रकाशमान अद्भुत ज्ञान का आशीर्वाद मिला,जिसके बाद उन्होंने कई ग्रंथों को लिख डाले. वो ग्रंथ आज भी पढ़े जा रहे हैं.माता गढ़ कालिका का मंदिर प्राचीन शास्त्रों में भी उल्लेखित है.इस मंदिर से सम्राट विक्रमादित्य और बेताल का भी संबंध रहा है.
कालीदास को भी मिला था माता गढ़ कालिका का आशीर्वाद
धार्मिक नगरी उज्जैन में स्थित माता गढ़ कालिका के बारे में महंत टीनानाथ ने बताया कि यह मंदिर शक्तिपीठ है.महंत के मुताबिक कवि कालिदास की अज्ञानता माता के आशीर्वाद से ही दूर हुई थी.उन्होंने बताया कि कवि कालिदास को उनकी पत्नी लज्जित किया था.इसके बाद वे महाकाल वन में आ गए थे.यहां वे प्रतिदिन माता गढ़ कालिका का आशीर्वाद लेने के लिए आते रहे. इसके बाद उन्हें अद्भुत ज्ञान की प्राप्ति हुई.कवि कालिदास ने अपनी रचनाओं में भी माता गढ़ कालिका का उल्लेख किया.गढ़ कालिका माता को सम्राट विक्रमादित्य की आराध्य देवी में माना जाता है.यह क्षेत्र प्राचीन समय से ही तप और साधना का केंद्र रहा है.
दर्शन से पूरी होती हैं सारी मनोकामनाएं
गढ़कालिका मंदिर के सेवक जयंत नागर बताते हैं कि विक्रम और बेताल का किस्सा भी इसी क्षेत्र से जुड़ा हुआ है. माता गढ़ कालिका मंदिर के आसपास के कुछ इलाकों में बेताल से जुड़े कुछ किस्से काफी प्रसिद्ध हैं.नगर के मुताबिक में लंबे समय से माता की सेवा कर रहे हैं.यहां दर्शन करने मात्र से ही सारी मनोकामना पूरी हो जाती हैं.देशभर के श्रद्धालु माता गढ़ कालिका का आशीर्वाद लेने के लिए आते हैं.नवरात्रि के दौरान हजारों की संख्या में भक्तों का तांता लगा रहता है.
मंदिर से जुड़े लोग बताते हैं कि पुराने समय में मंदिर में माता को मदिरा का भोग लगाकर तामसी पूजा भी की जाती थी. यह सिलसिला अब बंद हो गया है.अब यहां पर केवल सात्विक पूजा ही की जाती है.माता को सोलह श्रृंगार,कंकू आदि चढ़ाने से सारी मनोकामना पूरी होती है. इस मंदिर से लाखों लोगों की आस्था जुड़ी हुई है.मंदिर में सुबह और शाम होने वाली आरती में भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं.
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