MP Assembly Election 2023: मध्य प्रदेश में कांग्रेस अपने चुनाव अभियान का श्रीगणेश महाकौशल से करने जा रही है. पार्टी का सबसे प्रमुख चेहरा प्रियंका गांधी 12 जून को महाकोशल की राजनीति के केंद्र जबलपुर से 'मध्य प्रदेश फतह' के मिशन की शुरुआत करेंगी. कहा जा रहा है कि कांग्रेस जबलपुर में प्रियंका गांधी का रोड़ शो और आम सभा ऐतिहासिक बनाने की तैयारी में है.


12 जून से कांग्रेस के विजय संकल्प अभियान की होगी शुरुआत
जबलपुर शहर के महापौर और कांग्रेस के नगर अध्यक्ष जगत बहादुर सिंह ने बताया कि प्रियंका गांधी 12 जून को पार्टी के चुनाव अभियान और विजय संकल्प-2023 की शुरुआत करेंगी. उन्होंने कहा कि वह दो किलोमीटर के दायरे में शहर के मुख्य मार्गों पर रोड शो करेंगी और एक रैली को संबोधित करेंगी. उनका अंतिम कार्यक्रम तीन या चार दिनों में आ जाएगा. पार्टी का लक्ष्य 1.5 से 2 लाख की भीड़ इकट्ठा करने का है. इसके लिए शीघ्र ही महाकौशल क्षेत्र में कांग्रेस पार्टी के नेताओं की बैठक करने जा रही है.


पांच इलाकों में बंटी है सत्ता की चाबी
मध्य प्रदेश में सत्ता की चाबी पांच इलाकों में बंटी है. प्रदेश को भौगोलिक रूप से महाकोशल, ग्वालियर-चंबल, मध्य भारत, निमाड़-मालवा, विंध्य और बुंदेलखंड इलाके में बांटा गया है. इन इलाकों में जातीय और सामाजिक समीकरण तो अलग-अलग हैं ही, साथ में दोनों दलों के क्षत्रपों का प्रभाव भी है. आज हम नवंबमर माह में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिहाज से महाकोशल इलाके का राजनीतिक विश्लेषण करेंगे.


 महाकोशल में बीजेपी को हाथ लगी थी निराशा
यहां बता दें कि महाकौशल में जबलपुर, छिंदवाड़ा, कटनी, सिवनी, नरसिंहपुर, मंडला, डिंडोरी और बालाघाट जिले आते हैं. यहां के परिणाम हमेशा ही चौकाने वाले रहे हैं. 2018 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को महाकौशल इलाके से निराशा हाथ लगी थी. इसकी बड़ी वजह आदिवासियों की नाराजगी मानी गईं थी. कांग्रेस ने कमलनाथ को सीएम का चेहरा बनाकर चुनाव लड़ा था. इससे उनके गृह जिले छिंदवाड़ा की सभी 7 सीटें कांग्रेस ने जीत ली थीं. इसी तरह जबलपुर में कांग्रेस को 8 में से 4 सीट मिली थी. अब बड़ा सवाल यह है कि क्या 2023 के चुनाव में भी कांग्रेस ऐसा ही प्रदर्शन कर पाएगी या बीजेपी को बड़ी सफलता मिलेगी?


महाकोशल क्षेत्र में विधानसभा की 38 सीटें
माना जा रहा है कि 2023 के विधानसभा चुनाव में महाकौशल की 38 सीटों पर ही सत्ता का दारोमदार रहेगा. यहां 2018 में बीजेपी को मात्र 13 सीटें जीतकर ही संतोष करना पड़ा था, जबकि कांग्रेस के खाते में 24 सीट गई थीं. एक सीट कांग्रेसी विचारधारा के उम्मीदवार ने निर्दलीय चुनाव लड़कर जीती थी. कांग्रेस के लिए यह प्रदर्शन 2013 चुनाव के मुकाबले डबल खुशी देने वाला था.


2013 में बीजेपी ने किया था शानदार प्रदर्शन
2013 के आंकड़े देखने पर स्पष्ट है कि बीजेपी को महाकौशल इलाके से 24 और कांग्रेस को 13 सीट मिली थीं. एक स्थान पर निर्दलीय को जीत मिली थी. ओवर ऑल देखें तो 2018 में कांग्रेस ने 114 सीट जीतकर 15 साल बाद सरकार बनाई थी, जबकि बीजेपी 109 सीट जीतकर थोड़े से मार्जिन से सत्ता से बाहर हो गई.


प्रियंका के जबलपुर से चुनाव अभियान शुरू करने की वजह
कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य विवेक तंखा का कहना है कि प्रियंका गांधी की जबलपुर रैली के पीछे एक खास वजह है. चूंकि मालवा और मध्य भारत के इलाकों में भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी का दौरा हो चुका है, इस वजह से प्रियंका गांधी की रैली के लिए महाकौशल के एपीसेंटर जबलपुर को चुना गया है. वे कहते हैं कि महाकौशल फिलहाल दो वजहों से कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण है. पहला, यहां बीजेपी सरकार की उपेक्षा के कारण सत्ता विरोधी लहर है. दूसरा, महाकौशल में आदिवासी वोटरों की संख्या अधिक है जो कि कांग्रेस का कोर वोटर कहलाते हैं. महाकौशल में प्रियंका गांधी की रैली होने से विंध्य और बुंदेलखंड के कार्यकर्ता भी चार्ज हो जाएंगे.


दैनिक भास्कर के स्थानीय संपादक मनीष गुप्ता कहते हैं कि मध्य प्रदेश में सत्ता की चाबी उसी पार्टी के पास होगी, जो राज्य के भौगोलिक रूप से महत्वपूर्ण 6 इलाकों में से 3 में अच्छे मार्जिन से जीत हासिल करेगी. इस हिसाब से कांग्रेस को महाकौशल में 2018 का प्रदर्शन दोहराने की चुनौती है. यही वजह है कि कांग्रेस आदिवासी बहुल महाकौशल इलाके से ही अपनी सबसे बड़ी लीडर प्रियंका गांधी की पब्लिक रैली और रोड शो की शुरुआत कर रही है. मनीष गुप्ता कहते हैं कि प्रियंका गांधी के इस मेगा शो के बाद मध्य प्रदेश में कांग्रेस की राजनीति में कुछ बड़े बदलाव के भी संकेत मिल रहे हैं.


आज चुनाव हों तो बीजेपी को हो सकता है नुकसान
वहीं, बात बीजेपी की करें तो उसे महाकौशल में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए अधिक मेहनत करनी होगी. पीसीसी अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ महाकौशल इलाके से ही आते हैं. यहां की 38 सीटों के परिणाम तय करेंगे कि 2023 के सत्ता संग्राम में अगली सरकार की चाबी किसे मिलेगी? दुबे का अनुमान है कि आज चुनाव हों तो कांग्रेस को बढ़त और बीजेपी को नुकसान हो सकता है.


वर्तमान परिदृश्य देखने से स्पष्ट है कि भारतीय जनता पार्टी को सत्ता विरोधी मत परेशान करेंगे. महाकौशल में 2013 के प्रदर्शन को दौहराने के लिए बीजेपी संगठन को कठोर मेहनत करनी होगी. बीजेपी से आदिवासी वोट बैंक तो छिटका ही है, साथ में महंगाई, बेरोजगारी और प्रदेश शासन के कर्मचारियों की नाराजगी भी चरम पर है. यही वजह है कि बीजेपी नए वोटर की तलाश में सक्रिय है. उसने मुख्यमंत्री लालड़ी बहना योजना के माध्यम से प्रदेश की आधी आबादी को साधने का बड़ा दांव खेला है.


राजनीतिक जानकार बताते है कि बीजेपी नए आदिवासी मतदाता को आकर्षित करने की मुहिम चला रही है. शिवराज सरकार ने 'पेसा एक्ट' का दांव इसी हिसाब से चला है. इसके अलावा आदिवासी नायकों का भी खूब महिमा मंडन किया जा रहा है. हालांकि, इससे मतदाता कितना प्रभावित होगा यह आने वाला समय ही बताएगा. वहीं, कांग्रेस की सक्रियता भी कम नहीं है. जब भी महाकौशल की बात होती है तो कांग्रेस के एकछत्र नेता पूर्व सीएम कमलनाथ का नाम आता है. यहां कांग्रेस के अन्य बड़े नेताओं का उतना प्रभाव नहीं है. कुछ क्षेत्रों में पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह समर्थकों का खासा प्रभाव है. राज्य सभा सदस्य विवेक तंखा का भी महाकौशल इलाके में प्रभाव बढ़ता जा रहा है. उन्होंने आदिवासी इलाकों में मेगा हेल्थ कैंप करके इलाके में अच्छी पकड़ बनाई है. कांग्रेस का फोकस बीजेपी से नाराज मतदाता पर है. इसी वजह से कांग्रेस ने आदिवासी नेताओं को सक्रिय किया है. माना जाता है कि पूर्व सीएम कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की खासी पकड़ इन क्षेत्रों में है. कांग्रेस इसी का लाभ उठाने की जुगत में है. कांग्रेस कमलनाथ सरकार के कामों को भी गिना रही है लेकिन सबसे अहम सवाल है कि जिन 24 सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की थी, क्या वह बढ़त क़ायम रहेगी?


पिछले विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश की 47 सुरक्षित आदिवासी सीटों में से 31 कांग्रेस जीतने में सफल रही थी, जबकि बीजेपी को सिर्फ 16 सीटें ही मिली थीं. हालांकि, इससे पहले 2013 के चुनाव में बीजेपी 47 में से 30 सीटें जीती थीं, इसीलिए कांग्रेस आदिवासी वोटों पर अपनी पकड़ मज़बूत रखना चाहती है तो बीजेपी आदिवासियों को फिर से अपने साथ जोड़ने की हरसंभव कोशिश कर रही है.


सत्ता के साथ ही नाराजगी भी समानांतर चलती है. इसी वजह से मतदाता और कार्यकर्त्ता दोनों में शिवराज सरकार के प्रति नाराजगी दिखने लगी है. इसी तरह 2018 के बाद कांग्रेस की सरकार 15 महीने रही लेकिन प्रभावशाली नेता निगम-मंडल में नियुक्त के लिए भोपाल के चक्कर ही लगाते रहे. इस दौरान कमलनाथ सरकार सिर्फ प्रशासनिक गतिविधियों को ठीक करने में लगी रही. इसी फेर में सरकार चली गई. 15 माह बाद बीजेपी की सरकार आ तो गई लेकिन बीजेपी का कार्यकर्ता भी निगम-मंडल की आस में बैठा रहा गया.


अब चुनाव को मात्र 6 माह बचे हैं ऐसे में कार्यकर्त्ता की तरफ विधायक और संगठन के पदाधिकारी आशा भरी नजरों से देख रहे हैं. दोनों ही दलों का कार्यकर्ता मुंह फुलाए बैठा है. पंचायत और नगरीय निकाय के चुनाव भी हो गए हैं, जिनको टिकट नहीं मिली वे अब अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं. माना जा रहा है कि महाकौशल का चुनावी संग्राम बहुत रोचक होगा.


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