MP Politics: संगठन में नियुक्ति क्यों नहीं चाहते हैं कांग्रेस-बीजेपी के नेता, वजह जानकर चौंक जाएंगे आप
MP News: चुनावी मौसम में भारतीय जनता पार्टी या कांग्रेस में कई ऐसे नेता हैं जो विधानसभा टिकट के दावेदार हैं. ऐसे में अभी अपनी पार्टी में शहर अध्यक्ष या जिला अध्यक्ष का पद लेने को तैयार नहीं हैं.
वक्त के साथ पद की अहमियत भी बदल जाती है. इस बात पर यदि यकीन नहीं होता तो वर्तमान परिदृश्य में मध्य प्रदेश के जिलों के महत्वपूर्ण पद रिक्त होने के बावजूद कई योग्य नेता इस की दावेदारी नहीं कर रहा है.संगठन की जिम्मेदारी नहीं लेने के पीछे महत्वपूर्ण और रोचक वजह विधानसभा चुनाव है. मध्य प्रदेश विधानसभा के चुनाव इस साल के अंत में होने वाले हैं.
क्या है नेताओं की रणनीति
दरअसल मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस ने सोची-समझी रणनीति के तहत अंदरूनी तौर पर ऐलान कर रखा है कि जिस नेता को शहर और जिले अध्यक्ष की कमान सौंपी जाएगी, उसे विधानसभा टिकट नहीं मिलेगा. इस राजनीति के पीछे कई महत्वपूर्ण बातें छुपी हुई हैं. संगठनों का ऐसा मानना है कि जब विधानसभा चुनाव आते हैं तब संगठन की जिम्मेदारी निभाने वाले खुद चुनाव लड़ने पहुंच जाते हैं. इस वजह से संगठन की पकड़ ढीली हो जाती है. इससे विधानसभा चुनाव में कई बार शिकस्त का सामना करना पड़ा है. इसी वजह से शहर और जिले के अध्यक्ष को विधानसभा चुनाव में नही टिकट दिए जाने की रणनीति बनाई गई है. संगठन की इस रणनीति के चलते चुनावी मौसम में योग्य नेताओं का जिला और शहर अध्यक्ष पद से मोहभंग हो गया है.
कांग्रेस की परंपरा
कांग्रेस नेता शोभा ओझा के मुताबिक वर्तमान में मध्य प्रदेश कांग्रेस में तीन जिलों के अध्यक्षों की नियुक्ति होना है.ओझा के मुताबिक यदि कोई बहुत अच्छा कैंडिडेट हो तो उसे शहर या जिला अध्यक्ष के रहते हुए टिकट दिया जा सकता है. लेकिन आमतौर पर संगठन इस बात का ध्यान रखता है कि विधानसभा चुनाव लड़ने के दावेदार नेताओं को शहर या जिला अध्यक्ष पद की कमान न सौंपी जाए.वर्तमान में मध्य प्रदेश में 3 जिलों के अध्यक्षों के पद खाली हैं, इनमें इंदौर, उज्जैन और खंडवा शामिल हैं.
बीजेपी की परिपाटी
फिलहाल भारतीय जनता पार्टी में मध्य प्रदेश में संगठन का कोई महत्वपूर्ण पद खाली नहीं है, लेकिन यहां भी संगठन की जिम्मेदारी संभालने वाले नेताओं को चुनाव लड़ाने की परिपाटी काफी कम है. यदि कोई विशेष परिस्थिति हो तो यहां भी जिला अध्यक्ष चुनाव लड़ जाता है.हालांकि प्रदेश या संगठन में कम जिम्मेदारी वाले पदों पर काम करने वाले नेताओं को जरूर प्रत्याशी बनाया जाता रहा है. प्रदेश उपाध्यक्ष चिंतामणि मालवीय के मुताबिक बीजेपी में तो संगठन सब कुछ तय करता है, इसलिए यहां केवल संगठन की ही चलती है. बीजेपी का संगठन किसी को भी टिकट दे सकता है, इसके लिए वह स्वतंत्र है.
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