Raksha Bandhan 2022: पूरा देश आजादी का अमृत महोत्सव (Azadi Ka Amrit Mahotsav) मना रहा है. इस अमृत महोत्सव को मनाने के लिए कई परिवारों ने बलिदान दिया है. इन्हीं परिवारों में एक मध्य प्रदेश (Mashya Pradesh) के उज्जैन (Ujjain) का जोशी परिवार भी शामिल हैं. उज्जैन के बहादुरगंज इलाके में 30 नवंबर 1974 को राधेश्याम व्यास और सरजू बाई व्यास के यहां एक बच्चे ने जन्म लिया था, जिसका नाम परिवार वालों ने बलराम रखा. बलराम इसलिए भी सबका लाडला था, क्योंकि वह तीन बहनों में सबसे छोटा था.


पूरे परिवार की जिम्मेदारी और बहादुरी के कारण वह सभी की आंख का तारा बना रहा. उज्जैन के माधव विज्ञान महाविद्यालय से ग्रेजुएशन करने के बाद शारीरिक रूप से दक्ष बलराम जोशी ने बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स (BSF) ज्वाइन कर ली. उपनिरीक्षक के पद पर सेवाएं देते समय बलराम जोशी को जम्मू-कश्मीर की नाल चौकी में पदस्थ किया गया. साल 2000 में कारगिल युद्ध के दौरान दुश्मनों के आधा दर्जन घुसपैठियों को मौत के घाट उतारने के बाद रॉकेट लॉन्चर का शिकार बने बलराम जोशी शहीद हो गए.


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बहनों को बलराम की कमी भी होती है महसूस 


बलराम जोशी की बहादुरी और बलिदान की चर्चा करते हुए रक्षाबंधन के अवसर पर उज्जैन के महानंदा नगर में रहने वाली उनकी बहन दुर्गा बाई की आंखों में आंसू आ गए. दुर्गा बाई अपने छोटे भाई की तस्वीर को तिलक लगाकर रक्षाबंधन का पर्व मनाते हुए नजर आई. उन्होंने बलराम जोशी की तस्वीर की आरती भी उतारी. दुर्गा बाई ने कहा कि गर्व के साथ पूरे परिवार में बलराम की कमी भी महसूस होती है, जब रक्षाबंधन का पर्व आता है, तब बहनों की आंखें नम हो जाती हैं.


यह कहते थे शहीद के माता-पिता


दुर्गा बाई बताती हैं कि उनके पिता राधेश्याम जोशी और माता सरजू बाई का निधन हो चुका है. जब दोनों का निधन नहीं हुए था. उस समय वह भी बलराम को खूब याद करते थे. माता-पिता भी इस बात को कहते थे कि यदि उनका एक बेटा और होता तो उसे भी देश सेवा के लिए सेना में भेजते. बलराम को तीनों बहनों ने अंतिम बार रक्षाबंधन पर्व पर तिरंगे की अंतिम राखी भेजी थी. इस दौरान फोन पर जब बात हुई थी तो बलराम ने कहा था जल्द ही दुश्मनों को लोहे के चने चबावा कर वापस लौटूंगा.


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