MP News: 'पद्मश्री' से नवाजे गए बुंदेलखंडी राई के धुरंधर कलाकार रामसहाय पांडेय, जानिए कैसा रहा है उनका सफर
MP News : रामसहाय पांडे बुंदेलखंड की प्रसिद्ध राई नृत्य में पारंगत हैं.वह देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी राई नृत्य कर चुके हैं. उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राई लोक नृत्य को पहचान दिलाई है.
मध्य प्रदेश के सागर जिले के राई नृत्य के धुरंधर कलाकार रामसहाय पाण्डेय को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सोमवार को 'पद्मश्री' से नवाजा. 95 साल के रामसहाय पाण्डेय बुंदेलखंड के प्रसिद्ध नृत्य राई में पारंगत हैं. उनकी प्रतिष्ठा देश-विदेश में है. पांडेय के माता-पिता का निधन बहुत कम उम्र में ही हो गया था और उनका बचपन बहुत गरीबी में बीता. इसके बाद भी उन्होंने राई नृत्य सीखा और उसे देश-विदेश में लोकप्रिय बनाया.
राष्ट्रपति ने सम्मानित करते हुए क्या कहा
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के ट्वीटर हैंडल से रामसहाय पांडेय की पद्मश्री अवार्ड वाली फ़ोटो ट्वीट करते हुए लिखा है, '' राष्ट्रपति कोविंद ने श्री राम सहाय पांडेय को कला के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया. वो बुंदेलखंड इलाके के लोक कलाकार हैं. उन्होंने कई देशों में देश का प्रतिनिधित्व किया है.वो बुंदलेखंडी लोक नृत्य नाट्य कला परिषद के संस्थापक हैं. ''
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केंद्र सरकार ने 26 जनवरी की पूर्व संध्या पर पद्म पुरस्कारों की घोषणा की थी.इसमें केंद्र सरकार ने बुंदेलखंड अंचल के राई नृत्य के उस्ताद रामसहाय पांडेय को भी पदमश्री के लिए चुना था.वो सागर के रहने वाले हैं.
कैसा रहा है रामसहाय का जीवन
रामसहाय पांडे बुंदेलखंड की प्रसिद्ध राई नृत्य में पारंगत हैं.वह देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी राई नृत्य कर चुके हैं. उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राई लोक नृत्य को पहचान दिलाई है.राई के उस्ताद रामसहाय पांडे का जन्म 11 मार्च 1933 को सागर जिले के ग्राम मडधार पठा में हुआ था.उनका परिवार बेहद गरीब था. पिता लालजू पांडे गांव के मालगुजार के यहां काम करते थे.लेकिन जब पांडे 6 साल के थे तब इनके पिता का निधन हो गया,लिहाजा इनकी माता अपने बच्चों को लेकर कनेरादेव गांव आ गई और अपने मायके में रहने लगी.लेकिन 6 साल बाद ही उनकी मां ने भी उनका साथ छोड़ दिया.उनका बचपन मुश्किलों से गुजर रहा था.
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एक बार रामसहाय पांडे एक मेले में पहुंचे. वहां उन्होंने राई नृत्य देखा. इसके बाद उन्होंने सोच लिया कि वह भी राई करेंगे.बस फिर क्या था,उन्होंने मृदंग बजाने की प्रैक्टिस शुरू कर दी.बुंदेलखंड के सामाजिक नजरिए से राई नृत्य ब्राह्राण परिवारों के लिए अच्छा नहीं माना जाता था.लेकिन रामसहाय पांडे अपनी जिद पर अड़े रहे.आखिरकार वह मृदंग बजाना सीख गए.एक बार एक जगह राई नृत्य की प्रतियोगिता रखी गई जिसे रामसहाए पांडे ने जीत लिया और इस तरह उनका सफर शुरू हुआ.