Rani Durgavati Balidan Diwas: गौंड साम्राज्य की वीरांगना रानी दुर्गावती का आज सोमवार (24 जून) को बलिदान दिवस है. मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव जबलपुर में वीरांगना रानी दुर्गावती बलिदान दिवस कार्यक्रम में शामिल होंगे. वे सुबह 11 बजे बारहा गांव स्थित रानी दुर्गावती समाधि स्थल पर पूजन एवं प्रतिमा पर माल्यार्पण करेंगे. इसके बाद 12 बजे सीएम यादव वेटनरी कॉलेज ग्राउंड में आयोजित बलिदान दिवस कार्यक्रम में शामिल होंगे. कार्यक्रम स्थल पर रानी दुर्गावती पर केंद्रित प्रदर्शनी भी लगाई जाएगी. साथ ही आदिवासी लोक कलाओं के कार्यक्रमों की प्रस्तुति भी होगी.


वीरांगना रानी दुर्गावती बलिदान दिवस कार्यक्रम में जनजातीय कार्य मंत्री कुंवर विजय शाह, लोक निर्माण मंत्री राकेश सिंह, पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री प्रहलाद पटेल और संस्कृति राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) धमेन्द्र सिंह लोधी भी उपस्थित रहेंगे.


PM मोदी ने रखी थी स्मारक की आधारशिला
बता दें कि जबलपुर शहर में रानी दुर्गावती की 52 फ़ीट ऊंची प्रतिमा सहित 100 करोड़ के स्मारक के निर्माण की आधारशिला 5 अक्टूबर 2023 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रखी थी. भारत में गौंड राजवंश की महानतम रानी दुर्गावती को उनके अप्रतिम साहस और बलिदान के लिए याद किया जाता है. उन्होंने मुगल सेना से अपनी मातृभूमि और आत्मसम्मान की रक्षा हेतु अपने प्राणों का बलिदान दिया था.


दुर्गाष्टमी पर जन्म के कारण नाम पड़ा ‘दुर्गावती’
बांदा जिले के कालिंजर किले में रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर 1524 में हुआ था. दुर्गाष्टमी पर जन्म के कारण ही उनका नाम दुर्गावती रखा गया था. महारानी दुर्गावती कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल की इकलौती संतान थीं. नाम के अनुरूप ही वह तेज, साहस, शौर्य और सुंदरता के कारण इनकी प्रसिद्धि सब ओर फैल गई.


गोंडवाना राज्य के राजा संग्राम शाह के पुत्र दलपत शाह से उनका विवाह हुआ था. दुर्भाग्यवश विवाह के 4 वर्ष बाद ही राजा दलपतशाह का निधन हो गया. उस समय दुर्गावती का पुत्र नारायण 3 वर्ष का ही था. अतः रानी ने स्वयं ही गढ़मंडला का शासन संभाल लिया. वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केंद्र था.


अकबर के जुल्म के आगे नहीं झुकी रानी दुर्गावती
रानी दुर्गावती इतनी पराक्रमी थी कि उन्होंने अकबर के जुल्म के आगे झुकने से इंकार कर दिया. अपने राज्य की स्वतंत्रता और अस्मिता के लिए उन्होंने युद्ध भूमि को चुना और अनेक बार शत्रुओं को पराजित करते हुए 24 जून 1564 में बलिदान दे दिया. इतिहासकार बताते है कि वीरांगना महारानी दुर्गावती साक्षात दुर्गा थी. इस वीरतापूर्ण चरित्र वाली रानी ने अंत समय निकट जानकर अपनी कटार स्वयं ही अपने सीने में मारकर आत्म बलिदान का पथ चुना.


रानी दुर्गावती 16 वर्ष तक संभाला राज 
वर्तमान में जबलपुर जिले में जबलपुर-बरगी रोड पर स्थित बारहा गांव के पास वह स्थान है. जहां रानी दुर्गावती वीरगति को प्राप्त हुईं थीं. उसी स्थान में नरई नाला के पास रानी दुर्गावती का समाधि स्थल है. रानी दुर्गावती के इस वीरतापूर्ण चरित्र के लिए हमेशा उन्हें याद किया जाता है. रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस पर भारत सरकार द्वारा 24 जून 1988 को उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया गया था. महारानी ने 16 वर्ष तक राज संभाला था. इस दौरान उन्होंने अनेक मंदिर, मठ, कुएं, बावड़ी तथा धर्मशालाएं बनवाईं थी.


मुस्लिम राज्यों को बार-बार किया परास्त
बताते है कि रानी दुर्गावती ने तीनों मुस्लिम राज्यों को बार-बार युद्ध में परास्त किया था. पराजित मुस्लिम राज्य इतने भयभीत हुए कि उन्होंने गोंडवाना की ओर झांकना भी बंद कर दिया था. इन तीनों राज्यों की विजय में दुर्गावती को अपार संपत्ति हाथ लगी थी. रानी दुर्गावती बहुत वीर और साहसी थी.


उन्हें कभी पता चल जाता था कि किसी स्थान पर शेर दिखाई दिया है, तो वे शस्त्र उठा तुरंत शेर का शिकार करने चल देती थी. कहते है कि जब तक शेर को मार नहीं लेती थी, पानी भी नहीं पीती थीं.


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