Habibaganj Railway Station: मध्य प्रदेश के भोपाल में स्थित हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम आखिरकार बदल ही दिया गया. बीजेपी की भोपाल से सांसद साध्वी प्रज्ञा सहित पार्टी के कई नेताओं ने इस रेलवे स्टेशन का नाम देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहार वाजपेयी के नाम पर रखने की मांग कर रहे थे लेकिन अब रानी कमलापति के नाम से हबीबगंज रेलवे स्टेशन जाना जाएगा. हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम रानी कमलापति रेलवे स्टेशन होने के बाद कई लोगों के मन में ये सवाल उठ रहे होंगे कि आखिर रानी कमलापति कौन हैं? तो आइये इस ख़बर में हम आपको बताते हैं कि कौन थी रानी कमलापति और उन्हीं के नाम पर क्यों रखा गया?


रानी कमलापति कौन थी?


दरअसल, रानी कमलापति भोपाल की आखिरी हिंदू रानी थीं. उन्हें देश की महान वीरांगनाओं में से माना जाता है. रानी कमलापति के नाम पर भोपाल के हबीबगंज स्टेशन का नाम रखने का फैसले के पीछे रानी की वीरता और पराक्रम को ही माना गया है. रानी कमलापति 18वीं शताब्दी की गोंड रानी थीं. उस समय गिन्नौरगढ़ पर निजाम शाह शासन था, जिनकी 7 पत्नियां थीं. रानी कमलापति इन्हीं में से एक थीं और वह राजा को सबसे ज्यादा प्रिय थीं. उस दौरान बाड़ी पर निजाम शाह के भतीजे आलम शाह का शासन था. आलम की नजर निजाम शाह की दौलत और संपत्ति पर था. कमलापति की खूबसूरती से प्रभावित होकर उसने रानी से प्रेम का इजहार भी किया था, लेकिन रानी ने उसे ठुकरा दिया.


बाद में, आलम शाह ने अपने चाचा निजाम शाह के खाने में जहर मिलवा कर हत्या कर दी. इसके बाद रानी और उनके बेटे को भी खतरा था. ऐसे में रानी कमलापति अपने बेटे नवल शाह को गिन्नौरगढ़ से भोपाल स्थित रानी कमलापति महल ले आईं. रानी कमलापति अपने पति की मौत का बदला लेना चाहती थीं. लेकिन दिक्कत ये थी कि उनके पास न तो फौज थी और न ही पैसे थे.


रानी कमलापति ने दोस्त मोहम्मद खान से मांगी मदद


बताया जाता है कि रानी कमलापति ने दोस्त मोहम्मद खान से मदद मांगी. वह मदद को तैयार तो हो गया, लेकिन इसके एवज में उसने रानी से एक लाख रुपये की मांग कर दी. रानी कमलापति को बदला लेना था, सो पैसे न रहते हुए भी उन्होंने हामी भर दी. दोस्त मोहम्मद खान कभी मुगल सेना का हिस्सा हुआ करता था. लूटी हुई संपत्तियों के हिसाब में गड़बड़ी के बाद उसे सेना से निकाल दिया गया था. फिर उसने भोपाल के पास जगदीशपुर में अपनी सत्ता स्थापित कर ली थी.


कमलापति के साथ दोस्त मोहम्मद ने निजाम शाह के भतीजे बाड़ी के राजा आलम शाह पर हमला कर उसकी हत्या कर दी और इस तरह कमलापति ने अपने पति की हत्या का बदला ले लिया. हालांकि करार के मुताबिक, रानी के पास दोस्त मोहम्मद को देने के लिए एक लाख रुपये नहीं थे. उस वक्त एक लाख रुपये बहुत होते थे. ऐसे में रानी ने भोपाल का एक हिस्सा उसे दे दिया. लेकिन रानी कमलापति के बेटे नवल शाह को यह रास नहीं आया. ऐसे में नवल शाह और दोस्त मोहम्मद के बीच लड़ाई हो गई. बताया जाता है कि दोस्त मोहम्मद ने नवल शाह को धोखे से जहर देकर मार दिया. इस स्थान पर इतना खून बहा कि यहां की जमीन लाल हो गई और इसी कारण इसे लाल घाटी कहा जाने लगा.


रानी कमलापति ने ली थी जल-समाधि


इसके बाद रानी कमलापति ने बड़े तालाब बांध का संकरा रास्ता खुलवाया जिससे बड़े तालाब का पानी रिसकर दूसरी तरफ आने लगा. इसे आज छोटा तालाब के रूप में जाना जाता हैं. इसमें रानी कमलापति ने महल की समस्त धन-दौलत, जेवरात, आभूषण डालकर स्वयं जल-समाधि ले ली. दोस्त मोहम्मद खान जब तक अपनी सेना को साथ लेकर लाल घाटी से इस किले तक पहुंचा उतनी देर में सब कुछ खत्म हो गया था. स्रोतों के अनुसार रानी कमलापति ने सन् 1723 में अपनी जीवन-लीला खत्म की थी. उनकी मृत्यु के बाद दोस्त मोहम्मद खान के साथ ही नवाबों का दौर शुरू हुआ और भोपाल में नवाबों का राज्य हुआ.


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