Indore News: इंदौर के रॉबर्ट नर्सिंग में भर्ती एक महिला रोगी को नया जीवन देने के लिए नागपुर और वर्धा से दुर्लभ 'ओ बॉम्बे' ब्लड ग्रुप को फ्लाइट के जरिए इंदौर मंगवाया गया. रक्त दाता ने शिरडी में इस ब्लड को दान किया है और इंदौर की एक सामाजिक संस्था ने इसे इंदौर तक लाने की व्यवस्था करवाई.


ओ बॉम्बे ब्लड ग्रुप सबसे दुर्लभ है और भारत में केवल 180 लोग हैं जिनका ये ब्लड ग्रुप है. ये ब्लड ग्रुप मुख्य रूप से भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान और मध्य पूर्व के कुछ हिस्सों में पाया जाता है.


इंदौर के ब्लड कॉल सेंटर प्रभारी अशोक नायक ने बताया कि बड़नगर निवासी 26 वर्षीय मरीज पवनबाई पति राहुल को कुछ दिन पहले इंदौर के रॉबर्ट नर्सिंग होम में भर्ती कराया गया था. शुरुआती टेस्ट में पता चला कि उसका "ओ बॉम्बे" ब्लड ग्रुप है, जो पूरी दुनिया में दुर्लभ होता है. जिससे उसका इलाज जटिल हो गया.


इंदौर में नहीं मिला डोनर


इंदौर में कोई स्थानीय डोनर उपलब्ध नहीं होने के कारण डॉक्टर एमवायएच ब्लड बैंक पहुंचे, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. आगे की जांच में मरीज की बड़ी बहन में भी वही ब्लड ग्रुप पाया गया. जिससे एक यूनिट ब्लड ट्रांसफ्यूज किया गया.


नायक ने बताया कि उन्होंने रक्त दाताओं की पूरे भारत में खोजबीन की जो ये ब्लड दे सकें. काफी खोजबीन के बाद शिरडी से रवींद्र रक्तदान करने के लिए इंदौर आये. इसके अतिरिक्त, वर्धा में रोहित और नागपुर में एक अन्य दाता का ब्लड लिया गया और तत्काल आवश्यकता को पूरा करने के लिए फ्लाइट से इंदौर मंगवाया गया.


चढ़ा दिया था गलत ब्लड


मरीज पवनबाई के पति राहुल ने बताया कि पत्नी को ब्लीडिंग की समस्या को लेकर बड़नगर सिटी हॉस्पिटल में इलाज कराया गया था, जहां गलत डायग्नोसिस के कारण दो यूनिट "ओ पॉजिटिव" ब्लड चढ़ा दिया गया, जिससे उनकी तबीयत बिगड़ गई और किडनी की समस्या हो गई.


इलाज कर रहे डॉ. योगेन्द्र मालवीय ने कहा की मरीज की एक सर्जरी भी हुई थी. "ओ बॉम्बे" ब्लड ग्रुप देने वाले दाताओं को सही समय पर ढूंढ लिया गया जिससे मरीज की जान बचाई जा सकी. इससे पहले साल 2014 और 2018 में ओ बॉम्बे ग्रुप के ब्लड को इंदौर मंगवाया गया था.


बॉम्बे ब्लड ग्रुप क्या है?


बॉम्बे ब्लड ग्रुप एक रेयर ब्लड ग्रुप है, इस ग्रुप के फेनोटाइप में लाल कोशिका झिल्ली पर एच एंटीजन की कमी होती है और सीरम में एंटी-एच होता है. यह उनकी रेड सेल या अन्य टिश्यू पर किसी भी ए, बी या एच एंटीजन को एक्सप्रेस करने में विफल रहता है. 1952 में मुंबई में डॉ. वाईएम भेंडे ने इसे खोजा था.


ये भी पढ़े :Indore Loudspeaker: इंदौर में 250 से ज्यादा धार्मिक स्थलों से हटाए गए लाउडस्पीकर, शहर काजी ने जताया विरोध