रिपोर्टर डायरी: कैसे कहूं कि मेरा परिचय क्या है, बस ये समझिये कि साल के शुरुआती महीनों में जब कोरोना का कहर बनकर पूरे देश पर छाया तो मेरे सर से भी पहले पिता फिर मां का साया उठ गया और मैं अनाथ हो गया तेरह साल की उम्र में ही. भरी दुनिया में अकेला होना क्या होता है ये मुझे उन दिनों पता चला मगर भला हो मेरे चाचा चाची का जो उन्होंने मुझे अपने साथ रख लिया, अब मैं उनके साथ रह रहा हूं विदिशा में. कुछ दिनों पहले मेरे घर सरकारी विभाग के लोग आये और मेरे चाचा से मुझे भोपाल ले जाने के लिये सहमति मांगी. मैं भी हैरान था कि मुझे भोपाल क्यों जाना है, वहां जाकर क्या करूंगा, फिर बाद में चाचा ने बताया कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उन बच्चों को रविवार को अपने घर बुलाया है जो मेरे जैसे हैं यानी कि जिनके मां बाप कोरोना में चल बसे. हम बदनसीब बच्चों को शिवराज क्यों बुलाना चाहते है ये सब मेरे छोटे दिमाग की समझ में नहीं आ रहा था.
रविवार की सुबह हम भोपाल की श्यामला हिल्स में मुख्यमंत्री निवास के सामने थे. सजा हुआ बड़ा सा बंगला जिसमें अंदर घुसते ही दायां तरफ एक बडा पंडाल था. जिसमें आगे छोटा सा मंच फिर उसके सामने बैठने की कुर्सियां और उनके पीछे गोल टेबल लगे थे. किनारे की ओर वैसे ही खाने पीने के स्टॉल थे जैसे हम शादियों के रिसेप्शन में देखते हैं. मुझे आगे की कुर्सियों पर कुछ दूसरे बच्चों के साथ बिठा दिया गया. उस पंडाल में मुझे सब कुछ थोडा अजीब सा लग रहा था. मैं कभी इतने बडी जगह नहीं गया था. थोड़ी देर बैठने के बाद ही वहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आ गये. चश्मा लगाये दुबले पतले पेंट शर्ट पहने मुस्कुराते हुए वह मेरी ही तरफ आ गये. मेरे खडे होने से पहले ही वो पूछने लगे कैसे हो तुम, क्या नाम है तुम्हारा, मैं शिवराज हूं, तुम्हारा मामा. धीमी धीमी आवाज में मेरे जवाबों को सुनकर वो आगे बढ गये, वो सबसे ही ऐसी बात कर रहे थे. उनके साथ उनकी पत्नी भी थीं. वो भी हमारी तरफ प्रेम भरी निगाहों से देख रही थीं. उन्होंने भी मेरे पास आकर नाम पूछा. अब मुझे यहां थोडा अच्छा लगने लगा था क्योंकि मेरे आसपास भी जो बच्चे बैठे थे वो सारे भी मेरी ही तरह थे यानी कि बिना मां बाप वाले. उन सबको देख अब मेरा हौसला बढ़ने लगा था कि कोरोना ने मेरे मम्मी पापा को ही नहीं छीना, ये बुरा वक्त इतने सारे बच्चों पर भी आया है और जब ये सारे प्रसन्न हैं तो मैं खुश क्यों नहीं हो सकता.
शिवराज सिंह ने पांच हजार रुपये हर महीने खाते में डालने की बात कही
इस बीच में शिवराज जी ने माइक लेकर बात करनी शुरू कर दी. वो सच में मामा जैसी बातें कर रहे थे. बोले कि सुनो तुम्हारे मां बाप की कमी तो हम दूर नहीं कर सकते मगर तुम सबकी पढ़ाई लिखाई और रहने खाने में कोई परेशानी ना हो ये काम हम करेंगे. हर महीने पांच हजार रुपये तुम्हारे खाते में आयेंगे. घर पर राशन और स्कूल का खर्चा भी हम उठाएंगे. सच में ये तो अच्छी बात थी इससे हमारे चाचा चाची पर हम बोझ नहीं बन पायेंगे ये शिवराज समझा रहे थे. वो बोले तुम अच्छा पढोगे तो तुम्हारे मम्मी पापा जहां भी होंगे खुश होंगे इसलिए उनको खुश करने के लिए खूब पढो. इसके बाद वो हम बच्चों से दिवाली के दिये भी जलवाने लगे. हम सारे बच्चों ने लाइन में लगकर शिवराज सिंह के साथ दिये जलाये. वो ये भी देख रहे थे कि कोई बच्चा छूटे नहीं और बहुत सारे कैमरों की भीड़ में किसी को धक्का भी ना लगे.
मुख्यमंत्री ने सभी को हर छोटी-बड़ी परेशानी दूर करने का आश्वासन दिया
अब आयी खाने की बारी हम सबको गोल टेबल पर बैठा दिया. टेबल पर क्या था गोल गप्पे, चाट, चाउमीन, पाव भाजी और बडे बडे रसगुल्ले. बाप रे इतना कुछ मेरी पसंद का, ना तो कभी एक साथ मुझे मिला था ना मैंने देखा था. मैं मजे में चाउमिन खा रहा था कि पीछे से आवाज़ आयी अरे तुम तो विदिशा वाले होकर गुलाब जामुन नहीं खा रहे. लो ये खाओ और मेरी कटोरी से गुलाब जामुन उठाकर मुझे चम्मच से खिला दिया. सच बताऊं मुझे बहुत अच्छा लगा. तभी मेरे सामने बैठे भैया ने एक कागज पर कुछ लिख कर उनको दिया, तो शिवराज जी ने हम सबसे कहा कि जो तुम सब कहना चाहते हो जो भी परेशानी हो उसे मुझे लिख कर दे दो. मैं कोशिश करूंगा कि तुम्हारी सारी छोटी बड़ी दुख तकलीफ दूर कर सकूं. फिर वो बोले अरे भाई मुझको भी तो खाना खिलाओ इन बच्चों के साथ साथ मुझे भी बहुत भूख लगी है. मुख्यमंत्री का इस तरह हम बच्चों की तरह खाना मांगने पर मुझे हंसी आ गयी फिर क्या था एक टेबल पर उनको और मामी को खाना परोसा.
मुख्यमंत्री ने अपना बंगला भी दिखाया
इतने अच्छे मनपसंद खाने के बाद अब हम सब बच्चे इस माहौल में सामान्य हो गये थे. अब यहां अच्छा लगने लगा था. हमें विदिशा से लेकर आये अधिकारी भी बीच बीच में आकर हमारी खबर ले रहे थे. खाने के बाद शिवराज जी और उनकी पत्नी घर परिवार की तरह हम सबको सीएम हाउस दिखाने ले गये. इतना बड़ा बंगला अंदर से मैंने तो पहली बार देखा था. बंगले के अंदर हरी घास का बडा सा लॉन, लंबी सड़क और खूब सारे कमरे सब कुछ था. शिवराज जी ने हमें अपने काम करने का कमरा टेबल कुर्सी सब दिखाई और कहा कि यहां बैठकर ही उन्होंने हम बच्चों के लिये मुख्यमंत्री कोविड बाल सेवा योजना बनाई है. जिससे मेरे जैसे प्रदेश के 1365 बच्चों के रहने और पढ़ने लिखने का खर्चा भी सरकार उठाएगी. अरे वाह ये तो अच्छी बात है. लौटते में हमें शिवराज जी ने उपहार भी दिए मगर मेरे लिये सबसे बडा उपहार था ये अहसास कि अब मैं अकेला नहीं हूं, मेरे जैसे बहुत सारे बच्चे हैं जिनकी जिंदगी में अचानक दुख और अकेलापन आया है मगर हमारा दुख बांटने वालों में शिवराज मामा भी हैं जिनकी मदद से हम अच्छा पढेंगे लिखेंगे जिससे हमारे मम्मी पापा जहां भी होंगे खूब खुश होंगे.
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