GI Tag To Sunderja Mango: मध्यप्रदेश के रीवा जिले के एक आम की अब खास पहचान होगी. उसे जीआई टैग (Geographical Indications Tag) दिया गया है. इसकी जानकारी खुद केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने ट्वीट करके दी है. इस पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी खुशी जाहिर की है. बता दें कि सफेद शेर के बाद अब मध्यप्रदेश के विंध्य इलाके के स्पेशल 'सुंदरजा आम' के खास स्वाद और सुगंध की पूरी दुनिया दीवानी होगी. रीवा के सुंदरजा आम को जीआई टैग (GITag) मिला है, जिससे इसको वैश्विक पहचान मिलेगी. '


केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने क्या कहा है? उन्होंने रीवा के 'सुंदरजा आम' के साथ मुरैना की गजक और छत्तीसगढ़ के नागरी दुबराज चावल को जीआई टैग मिलने की जानकारी देते हुए अपने ट्वीटर अकॉउंट पर लिखा कि, "इनके स्वाद के चर्चे होंगे अब आम, GI tag से बढ़ेगा इनका देश विदेश में नाम." इस पर खुशी जाहिर करते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लिखा कि,"यह हर्ष का विषय है कि हमारे रीवा के सुंदरजा आम और मुरैना की गजक को #GITag के माध्यम से वैश्विक पहचान मिली है. इस गौरवपूर्ण सम्मान के लिए रीवा और मुरैना के भाई-बहनों और सभी प्रदेशवासियों को बधाई! माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी का आभार और श्री पीयूष गोयल जी को धन्यवाद."



'सुंदरजा आम' को मिला GI Tag


दरअसल, रीवा में 237 किस्म के आम के बगीचे है. इसमें सबसे खास गोविंदगढ़ का 'सुंदरजा आम' है. रीवा के फल अनुसंधान केंद्र कुठुलिया में आम और अमरूद पर रिसर्च की जाती है. फल अनुसंधान केंद्र कुठुलिया के वैज्ञानिक डॉ टी के सिंह कुछ साल पहले 'सुंदरजा आम' को जीआई टैग के लिए अप्लाई किया गया था. जिसको स्वीकार कर अब 'सुंदरजा आम' को टैग दे दिया गया है. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय जबलपुर के अधीन कृषि महाविद्यालय रीवा का फल अनुसंधान केंद्र, कुठुलिया 32 हेक्टेयर में फैला है. यह भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) का उपक्रम है.


'एक जिला एक उत्पाद योजना' में भी शामिल 'सुंदरजा आम'


रत्नागिरी के हापुस और उत्तरप्रदेश के दशहरी की तरह 'सुंदरजा आम' रीवा जिले का स्पेशल आम है. इसका स्वाद आम की सभी किस्मों से बेहतर है. बताते हैं कि यह सीमित क्षेत्र में पाया जाता है लेकिन इसकी पहचान विशिष्ट है. 'सुंदरजा आम' को रीवा जिले की 'एक जिला एक उत्पाद योजना' में भी शामिल किया गया है. यहां बता दें कि जीआई टैग किसी भी रीजन का जो क्षेत्रीय उत्पाद होता है या जिससे उस क्षेत्र की पहचान होती है, उसे दिया जाता है. उस उत्पाद की ख्याति जब देश-दुनिया में फैलती है तो उसे प्रमाणित करने के लिए एक प्रक्रिया होती है, जिसे जीआई टैग यानी जीओ ग्राफिकल इंडीकेटर (Geographical Indications) कहते हैं.


संसद ने उत्पाद के रजिस्ट्रीकरण और संरक्षण को लेकर दिसंबर 1999 में अधिनियम पारित किया था. इसे माल का भौगोलिक संकेत (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 कहा गया. इसे 2003 में लागू किया गया. इसके तहत भारत में पाए जाने वाले प्रॉडक्ट के लिए जीआई टैग देने का सिलसिला शुरू हुआ.


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