Russia Ukraine War: मेडिकल की पढ़ाई करने यूक्रेन क्यों जाते हैं भारतीय छात्र? जानिए इसका जवाब
भारत में नीट का नतीजा आने के बाद यूक्रेन जाने का रास्ता शुरू होता है. सरकारी कॉलेज में एडमिशन से वंचित रह जानेवालों को एमबीबीएस सीट के लिए बोली लगाने का ही रास्ता बचता है.
MP News: रूस और यूक्रेन की जंग ने भारत में परिजनों की चिंता बढ़ा दी है. मध्यप्रदेश के तकरीबन 2 हजार बच्चे यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं. देश भर से 20 हजार छात्र पढ़ने गए हैं. यूक्रेन से भारतीयों को सुरक्षित निकालने की कवायद के दौरान चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए. अब सवाल उठ रहा है कि भारत से बड़ी संख्या में बच्चे मेडिकल की पढ़ाई करने यूक्रेन क्यों जा रहे है? तस्दीक करने पर पता चला कि राष्ट्रीय स्तर पर सरकारी मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस (MBBS) की सीटें बेहद कम हैं और प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में डोनेशन के नाम पर लूट मची है. साधारण परिवार का निजी मेडिकल कॉलेज से बच्चों को डॉक्टर बनाना बेहद दुश्वार है.
प्रदेश में निजी और सरकारी मिलाकर MBBS की 3868 सीट
मध्यप्रदेश के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस की सिर्फ 2118 और निजी मेडिकल कॉलेजों में 1750 सीट है. कुल मिलाकर राज्य में एमबीबीएस के लिए सीटों का आंकड़ा 3868 है. एक अनुमान के मुताबिक राष्ट्रीय स्तर पर 586 मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस सीटों की संख्या करीब 88 हजार है. एमबीबीएस में एडमिशन के लिए पिछले साल 16 लाख से अधिक बच्चों ने नीट का एग्जाम दिया था. एमबीबीएस में एडमिशन के लिए डोनेशन का धंधा पूरे देश में चल रहा है. मध्यप्रदेश के सरकारी मेडिकल कॉलेज में एक लाख से भी कम फीस है. निजी मेडिकल कॉलेज में निर्धारित शुल्क 8 लाख रुपये तक है. सरकारी मेडिकल कॉलेज से 4-5 लाख में एमबीबीएस की पूरी पढ़ाई हो जाती है.
नीट का नतीजा आने के बाद शुरू होता है यूक्रेन का रास्ता
निजी कॉलेजों में छात्रों को लाखों रुपये खर्च करने पड़ते हैं. यूक्रेन का रास्ता बताने वाली असली कहानी शुरू होती है नीट एग्जाम का परिणाम आने के बाद. हमने यूक्रेन में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही रिया पाठक के पिता प्रवीण कुमार पाठक से बात की. उन्होंने बताया कि सरकारी कॉलेज में एडमिशन से वंचित रह जानेवालों को एमबीबीएस सीट के लिए बोली लगाने का ही रास्ता बचता है. निजी मेडिकल कॉलेज में 50 लाख से 1 करोड़ तक की डोनेशन ली जाती है. अब बात करते हैं यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई के खर्च की. प्रवीण कुमार पाठक के मुताबिक बेटी रिया का यूक्रेन में 6 साल के कोर्स का पांचवां साल है. 3 लाख रुपये सालाना फीस के साथ रहने खाने में 3 लाख रुपये और लगते हैं. यानी यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने पर 30-35 लाख खर्च होते हैं. इसलिए बच्चे यूक्रेन का रुख करते हैं.
यूक्रेन की चार यूनिवर्सिटी में पूरी दुनिया से बच्चे मेडिकल की पढ़ाई करने आते हैं. यूक्रेन और भारत में पढ़ाई करने में सिर्फ इतना अंतर आता है कि विदेश से पढ़कर आने वाले बच्चों को फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएशन एग्जाम (FMGE) क्लीयर करना पड़ता है. 300 अंकों की परीक्षा को 150 अंक लेकर पास की जा सकती है. देश के स्वास्थ्य मंत्री ने संसद में जानकारी दी थी कि भारत में डॉक्टर-रोगी अनुपात 1: 834 है. ये अनुपात विश्व स्वास्थ्य संगठन की सिफारिश से बेहतर है. डब्ल्यूएचओ की सिफारिश के अनुसार डॉक्टर-जनसंख्या अनुपात 1:1000 है. इसका मतलब है कि देश मे 834 मरीजों पर एक डॉक्टर उपलब्ध है. संख्या डब्ल्यूएचओ के हिसाब से भले ठीक है लेकिन विकसित देशों के मुकाबले बेहद कम है.
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