Salman Khan ने इस स्कूल से की है पढ़ाई, 1 महीने की फीस सुन रह जाएंगे हैरान
ये स्कूल ग्वालियर फोर्ट के समीप स्थित है. इसी स्कूल में फिल्म अभिनेता सलमान खान ने अपने भाई अरबाज खान के साथ साल 1976 से 1979 के बीच शिक्षा ग्रहण की थी.
बॉलीवुड सुपरस्टार सलमान खान (Salman Khan) अपने स्कूली जीवन में कम शरारती नहीं थे. वे अपने भाई अरबाज खान के साथ स्कूल की छुट्टी मारकर फिल्म शोले (Sholay) देखने गए थे. सलमान खान ने मध्य प्रदेश की धरती पर केवल जन्म ही नहीं लिया, बल्कि इसी धरती पर उन्होंने कुछ सालों तक शिक्षा भी ग्रहण की थी. सलमान खान जिस सिंधिया स्कूल (The Scindia School) में शिक्षा ग्रहण करते थे, वहां की फीस भरना आम आदमी के बस की बात नहीं है.
1933 में शुरू हुआ था ये स्कूल
मध्य प्रदेश के ग्वालियर का द सिंधिया स्कूल किसी पहचान का मोहताज नहीं है. यहां से निकले विद्यार्थी ही स्कूल की पहचान बन गए हैं. 110 एकड़ में फैला यह स्कूल 1933 में शुरू किया गया था. स्कूल ग्वालियर फोर्ट के समीप स्थित है. इसी स्कूल में फिल्म अभिनेता सलमान खान ने अपने भाई अरबाज खान के साथ साल 1976 से 1979 के बीच शिक्षा ग्रहण की थी. सलमान खान ने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि स्कूली जीवन में उन्होंने भी उन्हें फिल्मों का काफी शौक था. वे स्कूल की छुट्टी मारकर अपने भाई अरबाज के साथ फिल्म 'शोले' देखने गए थे.
रानोजी हाउस में रहते थे सलमान
सलमान खान ने जब दी सिंधिया स्कूल में शिक्षा ग्रहण की उस समय वे अपने भाई के साथ रानोजी हाउस में रहते थे. द सिंधिया स्कूल अपने अनुशासन और पढ़ाई के लिए जाना जाता है. यहां पर सलमान खान की बचपन की कई यादें जुड़ी हुई हैं. सलमान खान जब भी अपनी जन्मभूमि इंदौर (Indore) को याद करते हैं तो वे ग्वालियर (Gwalior) का जिक्र करना नहीं भूलते.
स्कूल की फीस है 12 लाख रुपए
द सिंधिया स्कूल में फिल्मी दुनिया से जुड़े केवल सलमान खान और अरबाज खान ही नहीं बल्कि नितिन मुकेश, सूरज बड़जातिया और प्रसिद्ध उद्योगपति मुकेश अंबानी सहित देश की कई जानी-मानी हस्तियों ने शिक्षा ग्रहण की है. यहां पर वार्षिक फीस की बात की जाए तो दी सिंधिया स्कूल की वेबसाइट के मुताबिक 12 लाख रुपए तक वार्षिक फीस ली जाती है.
सिंधिया स्कूल का पुराना इतिहास
द सिंधिया स्कूल की स्थापना 1847 में ग्वालियर फोर्ट के पास की गई थी. राजघराने के तत्कालीन महाराजा माधवराव सिंधिया में जब स्कूल की स्थापना की थी. उस समय यह स्कूल 'सरदार स्कूल' के नाम से जाना जाता था. कई दशकों तक इस स्कूल में जागीरदार, सरदार और राजाओं के वंशज शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते थे. 1933 से यह विद्यालय सार्वजनिक कर दिया गया.
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