MP News: सतना में लगा ऐतिहासिक मेला: सलमान बिका 1 लाख में, शाहरुख को मिले 90 हजार
MP News: लोगों का दावा है, मुगल शासक औरंगजेब की सेना में जब रसद और असलहा ढोने वालों की कमी हो गई तब पूरे क्षेत्र से खच्चरों-गधों को इसी मैदान में एकत्रित कर गधे-खच्चर खरीदे गए थे.
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Madhya Pradesh News: आप ने बचपन में मेले और बाजार तो बहुत देखे सुने होंगे और घूमा भी होगा मगर क्या आपने कभी गधों का मेला देखा है. जी हां, भले ही आप इस मेला या बाजार के बारे में पहली बार सुन रहे हैं लेकिन देश में इकलौता गधों का बाजार मध्य प्रदेश के सतना (Satna) जिले की धार्मिक नगरी चित्रकूट (Chitrakoot) में दीपावली के अवसर पर वर्षों से यह ऐतिहासिक मेला बाजार लगता चला आ रहा है. बाजार में अलग-अलग प्रदेशों से व्यापारी खच्चर-गधे लेकर चित्रकूट पहुंचते हैं. यहां खच्चरों-गधों की बोली लगाई जाती है. खरीदारों के साथ-साथ मेला बाजार घूमने वालों की भी भारी भीड़ रहती है.
क्या है मेले का इतिहास
जानकारी के अनुसार इस मेले की शुरुआत मुगल बादशाह औरंगजेब (Mughal emperor Aurangzeb) द्वारा करवाई गई थी. तब से लेकर आज तक मेला बाजार लगातार लगता चला आ रहा है. यह मेला बाजार दीपदान के बाद तीन दिन तक चलता है. लोगों का दावा है कि मुगल शासक औरंगजेब की सेना में जब रसद और असलहा ढोने वालों की कमी हो गई तब पूरे क्षेत्र से खच्चरों-गधों के मालिकों को इसी मैदान में एकत्रित कर उनके गधे खच्चर खरीदे गए थे. तभी से प्रारंभ हुआ मेला बाजार का यह सिलसिला लगातार चला आ रहा है.
देश के इस इकलौते और अनोखे मेले को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं. दीपावली के दूसरे दिन से चित्रकूट के मंदाकिनी नदी के तट पर तीन दिनों तक मेला आयोजित होता है. मेले में काफी दूर-दूर से लोग अपने खच्चर-गधे लेकर आते हैं और खरीद बिक्री करते हैं. तीन दिन के मेले में लाखों का कारोबार किया जाता है.
फिल्म स्टार का रखते हैं नाम
यहां गधे-खच्चर खरीददारों के अलावा इनको देखने वालों की भीड़ उमड़ती है. आज की टेक्नोलॉजी के दौर में जहां लोग आधुनिकता की ओर बढ़ते चले जा रहे हैं वहीं चित्रकूट में आज भी वर्षों पुरानी परंपरा बखूबी चलती चली आ रही है. इस मेले में गधे और खच्चरों की कीमत हजारों लाखों रुपए तक बोली जाती है. व्यापारी अपने गधों के नाम फिल्म स्टारों के नाम पर रखते हैं. जैसे कोई सलमान तो कोई शारूख तो कोई कैटरीना तो कोई मोदी.
मेले के संस्थापक ने क्या बताया
मेले के संस्थापक रमेश पांडे ने बताया कि यह मेला औरंगजेब के समय से चलता आ रहा है. गंगा किनारे उसका मंदिर भी बना हुआ है. यहीं उसका लावा लश्कर रहा करता था तभी से मेला लगता चला आ रहा है. पूरे मेले की व्यवस्था आठ दिन पहले से की जाती है. वहीं मेले में गधों की कीमत खच्चर प्रजाति की ज्यादा मिलती है करीब 50 से 70 हजार रु तक बिक जाते हैं. वही सामन्य गधों की कीमत कम रहती है जो दिखने में सुंदर दिखाई देते हैं उन्हे फिल्मी कलाकारों के नाम दे दिए जाते हैं जो आकर्षण का केंद्र भी रहते हैं. उनकी कीमत भी ज्यादा रहती है. शाहरुख नाम का गधा सबसे ज्यादा 90 हजार रुपए में बिका है.
हालांकि मुगल काल से प्रारंभ हुआ यह मेला अब सुविधाओं के अभाव में कम होता जा रहा है लेकिन इस विरासत को संजों कर रखने वाले आज भी मेला बाजार का आयोजन करते आ रहे हैं.
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