Scholarship Scam Indore: इंदौर में कागजों में गड़बड़ी कर छात्रवृत्ति हड़पने का चौंकाने वाला मामला सामने आया है.यह मामला ब्राह्मण संस्था कान्यकुब्ज शैक्षणिक एवं पारमार्थिक न्याय समिति से जुड़ा हुआ है. संस्था ने अपने दो कॉलेजों की 4.5 करोड़ की छात्रवृत्ति लेने के लिए एक गजब खेल रच डाला. उसने ब्राह्मण संस्था को कागजों में पहले अल्पसंख्यक बनाया. फिर छात्रवृत्ति ले ली, इसके बाद फिर वापस ब्राह्मण बना दिया. अभी इस संस्था के अध्यक्ष कांग्रेस विधायक संजय शुक्ला हैं. जब छात्रवृत्ति जारी हुई तब इसके अध्यक्ष उनके विष्णु प्रसाद शुक्ला थे.


कैसे पकड़ में आया मामला


इस पर जब सवाल उठे तो जवाब में एक नियम का हवाला दिया गया.यह नियम है कि पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन मैनेजमेंट (PGDM) कोर्स में उन्हीं कॉलेजों को छात्रवृत्ति मिलेगी,जो या तो अल्पसंख्यक संस्था के अंतर्गत संचालित होंगे या फिर एडमिशन लेने वाले छात्रों ने राष्ट्रीय स्तर की प्रवेश परीक्षा दी हो. इसी की आड़ लेकर अल्पसंख्यक विभाग के अफसरों और कॉलेज संचालकों ने वेरिफिकेशन किए बिना ही छात्रवृत्ति दे दी. इसके आठ महीने बाद विभाग ने अल्पसंख्यक संस्था को फर्जी बताकर छात्रवृत्ति तो रोक दी,लेकिन पैसा हड़पने वालों पर एफआईआर नहीं करवाई.जबकि यही विभाग अल्पसंख्यक होने का सर्टिफिकेट और छात्रवृत्ति दोनों जारी करता है. 


इस मामले में ध्यान देने वाली बात ये है कि 2019 में जब छात्रवृत्ति जारी हुई तो मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और जब पैसा रोका गया तो बीजेपी की सरकार है.इस मामले में कान्यकुब्ज ब्राह्मण समाज की समिति से जुड़े वरिष्ठ पदाधिकारी बताते हैं कि हमारी संस्था के अंतर्गत एक नर्सिंग कॉलेज और दो अन्य कॉलेज चलते हैं. उन दो कॉलेज को किराए पर चलाने के लिए दिया हुआ है. हमारी संस्था के बॉयलॉज में शुरू से है कि संस्था का सदस्य या पदाधिकारी सिर्फ ब्राह्मण समाज का वो भी कान्यकुब्ज ब्राह्मण ही हो सकता है. अगर हमें संस्था में सीए भी रखना है तो वो भी कान्यकुब्ज ब्राह्मण ही होगा, न कि दूसरा ब्राह्मण या अन्य समाज का.


कितनी मिली स्कॉलरशिप


PGDM कोर्स के लिए सरकार की मंशा थी कि एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग के छात्र मुख्य धारा से जुड़ें. इसके लिए पहली शर्त थी कि जो भी PGDM की पढ़ाई करेगा,उसे कॉलेज 100 फीसदी जॉब प्लेसमेंट करवाएगा. इसके लिए प्रदेश में किसी कोर्स को दी जाने वाली सबसे बड़ी स्कॉलरशिप दी गई. इसमें एक दो साल के कोर्स के लिए तीन लाख 35 हजार रुपये प्रति छात्र स्कॉलरशिप दी गई. बस यही बड़ी राशि कॉलेज संचालकों के लालच का कारण बन गई.


इसके लिए ऑल इंडिया काउंसिल फार टेक्निकल एजुकेशन( AICTE) ने कोर्स संचालित करने के लिए बिना फिजिकल वेरीफिकेशन के ही मान्यता दे दी. इसके बाद पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक विभाग के अधिकारियों ने अंधाधुंध छात्रवृत्ति बांटना शुरू कर दिया.मिलीभगत का आलम ये था कि किसी ने यह तक नहीं देखा कि जिस छात्र का नाम लिखा है,वो यहां पढ़ रहा है या भी नहीं, उसका फॉर्म में एड्रेस क्या है? एक उदाहरण देखिए, छात्र का नाम अक्षय दास बैरागी. उसका पता है उज्जैन. यानी जिले की 19 लाख की आबादी में यह पता ढूंढा ना जा सके.


इंदौर और उसके आसपास के छात्रों को दी स्कॉलरशिप


इस मामले में अखबार 'दैनिक भास्कर' ने पता लगाया है कि प्रदेश की 90 फीसदी छात्रवृत्ति सिर्फ इंदौर और उसके इसके आसपास बांट दी गई. रसूख के दम पर एक ही बिल्डिंग में दो नाम से कान्यकुब्ज यानी केके व्यावसायिक अध्ययन महाविद्यालय, विजय नगर इंदौर और केके विज्ञान एवं व्यावसायिक महाविद्यालय विजय नगर कॉलेज चल रहे हैं. PGDM की दोनों कॉलेजों की 300 सीट थीं. इनमें 263 एडमिशन देना भी दिखाया गया था. लेकिन,न तो छात्रों ने राष्ट्रीय स्तर के एग्जाम दिए और न ही ब्राह्मणों की सर्वोच्च संस्था कहलाने वाला कान्यकुब्ज समाज अल्पसंख्यक है. बस यहीं से एक छात्र की 1 लाख 67 हजार 500 रुपये की छात्रवृत्ति के हिसाब से 263 छात्रों की चार करोड़ 40 लाख 52 हजार रुपये की छात्रवृत्ति हड़पने का जाल बुना गया.


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