Sehore News: युवा अवस्था में सुन्दरलाल की दोनों आंखें बीमारी के चलते खराब हो गई और संसार का उजाला उनके लिए हमेशा के लिए चला गया. लेकिन इस शख्स ने हिम्मत नहीं हारी. उन्होंने और ढोलक बनाकर अपना जीवन बसर करना शुरू कर दिया. तंग आर्थिक परिस्थितियों से जकड़े इस व्यक्ति ने न केवल खुद की जिंदगी नए तरीके से शुरू की बल्कि अपनी बूढी मां और परिजनों का पेट भी पाल रहे है. 


युवा अवस्था में ही चली गई थी आंखों की रौशनी


जोश, जूनून और जज्बे की यह कहानी मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के ग्राम दिवाड़िया से शुरू होती है. भोपाल से 80 किमी दूर ग्राम दिवाड़िया के 52 वर्षीय वृद्ध सुन्दरलाल की युवा अवस्था में बीमारी के कारण दोनों आंखें चली गई थी. यहीं से शुरू हुई दृष्टिहीन सुन्दर लाल की संघर्षमय जीवन यात्रा.


महज चंद समय में बना लेते हैं ढोलक


इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना में सुन्दर लाल ने अपनी दोनों आंखें खोने के बाद युवावस्था से ढोलक बनाने का कार्य शुरू किया। देखते ही देखते सुन्दरलाल इस कार्य में मंझ गए. अब स्थिति यह है कि दृष्टिहीन 52 वर्षीय सुन्दरलाल उम्र के इस विदाई लेते पड़ाव पर भी पुरे जोश से अपने काम को अंजाम दे रहे हैं. वो महज चंद समय में ढोलक तैयार कर लेते हैं. अपनी आंखों की रौशनी खो चुके सुन्दर लाल को ढोलक बनाते देख कोई यह नहीं कह सकता है कि सुन्दरलाल बिन आंखों से यह कार्य करते होंगे.


अपनी मां और परिजन का कर रहे पालन


दृष्टिहीन सुन्दरलाल 52 साल की इस उम्र में भी एक सामान्य युवा की तरह ढोलक बनाने के कार्य में जुटे रहते है. खास बात यह है कि सुन्दरलाल खुद आंखों से असहाय होने के बाद भी इस उम्र में अपनी 70 वर्षीय मां नन्नी बाई और परिवार का भी पेट पाल रहे है.


भिक्षावृत्ति से है नफरत


दृष्टिहीन सुन्दरलाल आंखों से असहाय होने के बाद समाज को संदेश देते हैं कि हालत कैसे भी हो व्यक्ति को कभी लोगों के सामने हाथ नहीं फैलाना चाहिए. एक किस्सा बताते हुए उनके ग्राम के राकेश वर्मा बताते हैं की एक बार दृष्टिहीन सुन्दरलाल बस में सफर कर रहे थे. उसी समय एक दिव्यांग भिक्षा मांग रहा था. यह सुनकर वो नाराज हुए और उन्होंने गुस्साए लहजे में उस व्यक्ति को लात मारकर गिरा दिया। उसे अपनी स्थिति के बारे में बताया कि मेरी दोनों आंखें नहीं है लेकिन फिर भी काम करके खुद का और परिवार का पालन कर रहा हूं...तुम्हारे तो दोनों हाथ हैं फिर भी भिक्षा मांग रहे हो. सलाम इस शख्शियत को हमारा. सुंदरलाल ढोलक के साथ-साथ बांसुरी भी बहुत अच्छे से बजाते हैं. बांसुरी बजाने के लिए आस-पास के गांवों में गम्मत पारायण में जाते हैं.


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