Poornima Ravidas Jayanti: आज जब इस आधुनिक युग में लोग परम्पराओं को धीरे-धीरे भूलते जा रहे हैं और पुराने रीति रिवाजों के स्थान पर नई मान्यताएं स्थापित होती चली जा रही हैं. ऐसे में कुछ समाज ऐसे भी हैं जिन्होंने वर्षों पुरानी परम्पराओं को पीढी दर पीढी सहेज रखा है. यहां के लोग कई सालों से इस लोक संस्कृति को आगे ले जा रहे हैं. बुंदेलखण्डी रविदास समाज के लोग आज भी पारम्परिक होली खेलते हैं.


क्या है इनकी परंपरा


होली के एक माह पूर्व पूर्णिमा रविदास जयंती के दिन होली का डांडा गढने से ही यहां पर होली की तैयारियां शुरु हो जाती है. समाजसेवी कपिल सूर्यवंशी ने बताया कि होलिका दहन के बाद धुरेंडी के दिन सबसे पहले शोकाकुल परिवार के यहां रंग डाला जाता है. ढोल, टिमकी, झांझ और मंजीरे बजाते हुए फाग, स्वांग और लोकगीत गाते हुए बुदेंलखण्डी शोकाकुल परिवार को रंग डालकर सांत्वना देते हैं. रंग खुशी और उल्लास, उमंग के प्रतीक होते हैं. शोकाकुल परिवार को रंग लगाकर अपने रंग में शामिल करते हैं. इसी प्रकार समाज में महिलाओं की भी अलग गैर निकलती है. रंग पंचमी तक यहां पर फाग मंडली द्वारा गीत संगीत के कार्यक्रम आयोजित होते हैं.


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लगभग सौ साल पुरानी है ये परंपरा


उसके बाद फाग टोली घर-घर लोकगीत गाती हुई घूमती हैं और लोग एक दूसरे को रंग-गुलाल लगाकर होली की बधाई देते हैं. क्षेत्र में यह परंपरा लगभग सौ साल से निरंतर चली आ रही है. सौ साल पहले पूर्व बुंदेलखण्ड क्षेत्र से यहां पर आए थे तभी से निरंतर इन्हीं परम्पराओं को निरंतर निभाते चले आ रहे हैं. आज तीसरी पीढी भी बड़े उत्साह, उमंग और उल्लास के साथ फाग टीम में बुजुर्गों के साथ सुर ताल मिलाते हुए लोकगीत गाते हैं.


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