Sehore Sundial: 175 साल से सीहोर की विरासत है ब्रिटिशकालीन सूर्य घड़ी, सूरज की रोशनी में बताती है सटीक समय
Sehore Heritage: ब्रिटिश शासन काल में 1840-41 को घड़ी बनाई गई थी. सूर्य घड़ी संगमरमर से निर्मित है और इसका डायल आज भी सूर्य की रोशनी में सटीक समय की गणना करता है.
Sehore Heritage: आज के तकनीकी दौर में सुई और पेंडुलम वाली घड़ियों की जगह डिजिटल वॉच ने ले ली है. कुछ ऐतिहासिक घड़ियां भारत में प्रसिद्ध हैं. उनकी कालगणना और समय मापन में विशेष योगदान है. ऐसी ही एक ब्रिटिश कालीन सूर्य घड़ी लगभग 175 वर्षों से मध्य प्रदेश के सीहोर कलेक्टर बंगले में मौजूद है. सूर्य घड़ी की प्रासंगिकता को समझने के लिए एबीपी न्यूज की टीम ने सीहोर कलेक्टर बंगले का दौरा किया.
कलेक्टर के बंगले में ऐतिहासिक विरासत
इतिहासकारों से चर्चा के दौरान पता चला कि ब्रिटिश शासन काल में 1840-41 को घड़ी बनाई गई थी. सूर्य घड़ी संगमरमर से निर्मित है और इसका डायल आज भी सूर्य की रोशनी में सटीक समय की गणना करता है. साहित्यकार आकाश माथुर के अनुसार, सन 1818 में ब्रिटिश फौज के जनरल स्टुवर्ड ने सीहोर को मुख्यालय बनाया था और इसके साथ ही यहां पॉलिटिकल एजेंट की नियुक्ति हुई थी.
अंग्रेजों को भारत के साहित्य में भी रुझान था. लिहाजा सीहोर में वैधशाला बनाई गई, जिसमें कालिदास की प्रसिद्ध रचना शाकुंतलम् का अंग्रेजी में अनुवाद किया गया. इसी वैधशाला में सूर्य घड़ी स्थापित की गई जिसका डायल संगमरमर का और पत्ता अष्टधातु का है, जिसे इंग्लेंड से मंगवाया गया था. वैधशाला खत्म होने के बाद इसे कलेक्टर निवास में लगाया गया जहां ये सुरक्षित है. उस समय सटीक समय की जानकारी के लिए इस प्रकार की सूर्य घड़ी को सीहोर कलेक्टर बंगले में लगाया गया था. घड़ी से अंग्रेजी सेना और ब्रिटिश अधिकारी समय की सटीक गणना किया करते थे.
विद्यार्थियों में जिज्ञासा बढ़ाती है सूर्य घड़ी
स्कूली छात्र छात्राओं को अक्सर शिक्षक भ्रमण कराने के लिये लाते हैं और ऐतिहासिक धरोहर के रूप में इस सूर्य घड़ी को दिखाते है. इस घड़ी को देखकर बच्चों में काफी जिज्ञासा जागती है और तथ्यात्मक जानकारी भी मिलती है. घड़ी सूर्य की किरणों के मुख्य डायल पर बनने वाली छाया की विभिन्न स्थितियों से समय का आकलन करती है. खासकर सूर्य घड़ी दिन के समय में ही काम करती है.
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