Sehore News: मध्य प्रदेश के सीहोर जिले में मजदूरों को उनका हक नहीं मिल पा रहा है. केंद्र सरकार द्वारा महात्मा गांधी गारंटी योजना चलाई जा रही है, उसकी हकीकत कुछ ओर ही दिखाई दे रही है. मेहनत करने के बावजूद ग्रामीणों को मनरेगा की मजदूरी समय पर नहीं मिल पा रही है. समय पर मजदूरी नहीं मिलने से ग्रामीणों में नाराजगी है. कई ग्रामीण ऐसे भी हैं, जिनका एक साल पहले किए गए काम का पैसा अब तक नहीं मिल पाया है. वहीं, कुछ ग्रामीण अब भी पंचायतों के चक्कर काट रहे हैं.
कोरोना काल में ग्रामीणों को मजदूरी नहीं मिलने से अब उनके सामने भुखमरी के हालात हो गए हैं. इसमें सीहोर, आष्टा और इछावर विकास खंड के कई ग्रामीण शामिल हैं. जिनका मेहनताना नहीं मिल पाया है. प्रशासनिक अधिकारी दावा कर रहे हैं कि सभी का भुगतान किया जा चुका है. इस वित्तीय वर्ष का भुगतान होना बस बाकी है. इधर केंद्र सरकार ने मनरेगा पोर्टल में बदलाव कर दिया है. अब पोर्टल में एंट्री जातिवार हो रही है.
इस वजह से हो रही है भुगतान में देरी
अनुमान लगाया जा रहा है कि इस नए बदलाव की वजह से श्रमिकों के कार्य दिवस से जुड़े भुगतान में देरी हो रही है. जिले के इछावर ब्लॉक के बिजिश नगर ग्राम पंचायत के आईत मियां ने एबीपी न्यूज़ को बताया कि उन्होंने एक साल पहले मनरेगा के तहत मजदूरी का काम किया था, लेकिन अब तक उसका मेहनताना नहीं मिल पाया है. कई बार रोजगार सहायक अधिकारियों से वे संपर्क कर चुके हैं. पंचायत के भी चक्कर लगा चुके हैं. लेकिन कुछ नहीं हुआ. मजदूर ने बताया कि संबंधित अधिकारी कहते हैं कि पैसा डाल दिया जाएगा. लेकिन अब तक पैसा नहीं मिल पाया. बल्लू वर्मा ने बताया कि उसने 3 सप्ताह तक मनरेगा मजदूरी का काम किया.
सरपंच कैलाश पटेल ने दी ये जानकारी
कई ग्राम पंचायतों में मनरेगा के तहत काम करने वाले ग्रामीणों को आधा-अधूरा मेहनताना मिल रहा है. सीहोर जिले में चार करोड़ रुपये की भुगतान अटकी है. सरपंच सचिव परेशान हैं. मजदूर उनके घर दिन रात चक्कर काट रहे हैं. मजदूरी के लिए लेकिन सरपंच कैलाश पटेल का कहना है कि 1 साल से मनरेगा योजना के तहत मजदूरों की मजदूरी अटकी है. केंद्र सरकार ने मध्य प्रदेश सरकार को अभी तक कोई फंडिंग नहीं की है इसलिए हमें भी दुकानदारों का पैसा देना है और मजदूर भी रोज घर पर आकर खड़े हो जाते हैं. लेकिन मध्य प्रदेश सरकार को जल्दी मजदूरों के खाते में मजदूरी डाल देना चाहिए. खेरी गांव की बसंती बाई बताती हैं कि उन्हें पूरे रुपये नहीं मिले हैं. जितने दिन उसने काम किया, उसका आधा पैसा ही मिला है. वह कहती हैं कि आधा मेहनताना मिलने पर जब पंचायत जाते हैं, तो वहां के अधिकारी उन्हें घुमा देते हैं. इतना ही नहीं पड़ोस के गांव में मार्च में उतना ही काम हुआ, लेकिन वहां बहुत से लोगों को पूरा पैसा मिला है. उन्होंने एबीपी न्यूज़ के माध्यम से प्रशासन से सवाल किया कि मेहनत पूरा किए हैं, तो मेहनताना आधा क्यों दिया जा रहा?
जिला प्रशासन ने किया ये बड़ा दावा
इधर जिला प्रशासन का दावा है कि जिले में सभी लंबित भुगतान किए जा रहे हैं. सीहोर जिला पंचायत सीईओ हर्ष सिंह ने बताया कि वर्तमान में लंबित राशि को लेकर अवगत कर दिया है. मजदूरों के खाते में राशि जल्द ही आ जाएगी. यह इसी वित्तीय वर्ष की राशि है. जिनके रुपये बचे हुए हैं उन सभी का एफटीओ हो चुका है. इसका क्लियरेंस भी बैंक के द्वारा हो रहा है. प्रतिदिन ग्रामीणों के खाते में सीधे रुपये जा रहे हैं.
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