Sehore News: वटवृक्ष यहां खुद करता है भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक, सावन में दर्शन करने पर मिलता है विशेष फल
MP News: श्रावण के महीने में यहां दर्शन करने पर विशेष फल प्राप्त होता है इसीलिए दूर दराज के क्षेत्रों से शारीरिक कष्टों को झेलते हुए भक्त यहां भगवान भोलेनाथ के दर्शन करने पहुंचते हैं.
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Madhya Pradesh News: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल (Bhopal) से सटे सीहोर (Sehore) जिले में सतपुड़ा वन क्षेत्र (Satpura forest) के अंदर कोलार डैम और रातापानी अभयारण्य के पास जिला मुख्यालय से लगभग 70 किलोमीटर की दूरी पर प्राकृतिक सौंदर्य और अनुपम दुर्लभ अवस्था में केरी के महादेव का दिव्य स्थान है. यहां महादेव को केरी के महादेव इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे यहां भव्य और दिव्य आम के वृक्ष के साथ विराजते हैं और स्वयं विशालकाय वटवृक्ष की जटा निरंतर भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक करती रहती है.
जलधारा करती है भोलेनाथ का जलाभिषेक
मंदिर की दुर्लभता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस क्षेत्र में दुर्गम पहाड़ियों के बीच लगभग 100 से 110 फीट नीचे गहरी खाई में आम के पेड़ के अंदर आम के निकट भगवान का छोटा सा पवित्र स्थान है जहां पर शिवलिंग के रूप में भगवान भोलेनाथ विराजते हैं. विशाल वटवृक्ष की जटाओं से निकलने वाली पवित्र जलधारा निरंतर भगवान भोलेनाथ का अभिषेक करती ही रहती हैं जो कि इस दृश्य को आलौकिक बना देता है.
श्रावण में दर्शन करने पर मिलता है विशेष फल
अति दुर्गम पहाड़ियों के बीच वन क्षेत्र में स्थित यह मंदिर अत्यंत पवित्र धाम है. यहां पहुंचना आसान नहीं क्योंकि अभ्यारण का वन्यजीव क्षेत्र और वन क्षेत्र होने के कारण यहां पर विशेष सुविधाएं नहीं है और केवल प्राकृतिक दशाओं के आधार पर ही इस स्थान पर भक्त दर्शन करने पहुंचते हैं. श्रावण के महीने में यहां पर दर्शन करने पर विशेष फल प्राप्त होता है इसीलिए दूर दराज के क्षेत्रों से शारीरिक कष्टों को झेलते हुए भक्तजन यहां भगवान भोलेनाथ के दर्शन करने पहुंचते हैं.
साल में दो बार लगता है मेला
इस इलाके में दर्शन करने के लिए पहले वन विभाग की परमिशन भी लेनी पड़ती है. जब एबीपी न्यूज़ की टीम ने इस संबंध में जानकारी जुटाई तो पता चला कि वर्ष में दो बार शिवरात्रि और भूतनी अमावस्या पर यहां पर मेले का आयोजन भी होता है जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु भाग लेकर अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए भगवान भोलेनाथ का अभिषेक करते हैं.
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