MP News: सीहोर (Sehore) जिले के बुदनी क्षेत्र के देवगांव के आदिवासी  दंपती ने अपने बेटे के इलाज के लिए घर के बर्तन और बिस्तर तक बेच दिए, लेकिन उसकी जान न बचा बचा पाए. बेटे के इलाज में उनके पास कुछ नहीं बचा. आखिर में उनके पास इतने पैसे भी नहीं रह गए कि वो अपने बेटे के शव को घर ले जा सकें. मजबूरी में  उन्होंने अपने नवजात बेटे का शव मर्चुरी में ही छोड़ दिया और  गांव चले गए. वहीं चार दिनों तक उनके बेटे का शव मर्चुरी में पड़ा रहा.


इस आदिवासी दंपती का नाम लालू और निर्मला बाई है. वो मजदूरी करते हैं. निर्मला ने 16 जुलाई को बेटा हुआ. बच्चा जन्म के समय से ही अस्वस्थ था. इसे देखते हुए उसे बुदनी के शासकीय अस्पताल से भोपाल रेफर किया गया. भोपाल के कमला नेहरू अस्पताल में उसे भर्ती किया गया, लेकिन आदिवासी परिवार के पास न तो राशन कार्ड और न ही आयुष्मान कार्ड था. ऐसे में इलाज में रुपये लगे. 22 जुलाई की शाम को बेटे की मौत हो गई. क्योंकि सारे रुपये उसके इलाज में खर्च हो चुके थे, इसलिए दंपती के पास शव को गांव तक ले जाने के रुपये भी नहीं थे.


इलाज के लिए खटिया और बर्तन तक बेच दिया
मृतक बच्चे की मां निर्मला ने बताया कि हमारे पास रुपये नहीं थे, इलाज के लिए खटिया और बर्तन तक बेच दिया था. इलाज के दौरान सारे पैसे खर्च हो गए. हमारे पास इतने भी पैसे नहीं बचे कि हम अपने बच्चे के शव को ले जा सकें. वहीं जब शव को लेने कोई नहीं आया तो कर्मचारियों ने लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कराने वाले लक्ष्मी नारायण आनंदम क्लब के सदस्यों से संपर्क साधा.संस्था सचिव मोहन सोनी ने डिस्चार्ज पर्चे की मदद से आदिवासी दंपती को तलाशा.


इसके बाद दंपती से संपर्क हुआ तो उन्होंने कहा कि साहब शव गांव पहुंचा दो, हम भोपाल नहीं आ सकते क्योंकि हमारे पास इतने रुपये नहीं हैं.  इसके बाद संस्था सचिव मोहन सोनी ने बुदनी थाना प्रभारी विकास खींची को पूरा मामले की जानकारी दी. सब कुछ जानकार बुदनी थाना प्रभारी ने संवेदनशीलता का परिचय दिया और वाहन की व्यवस्था कर परिवार को भोपाल पहुंचाया, ताकि वो अपने बेटे को अंतिम विदाई दे सकें.


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