Navratri 2022: भिंड में मिट्टी से बनी मां दुर्गा की मूर्तियों पर महंगाई की मार, लोग कर रहे छोटी मूर्तियों की डिमांड
Shardiya Navratri 2022: भिंड जिले में कुछ जगहों पर पारंपरिक कारीगर वर्षों से नवरात्र के लिए मां दुर्गा की सुंदर मूर्तियां बनाते आए हैं.
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Shardiya Navratri 2022 Puja : नवरात्र सोमवार से शुरू हो रहे हैं. ऐसे में माता की मूर्तियों की खरीदी-बिक्री का अंतिम दौर चल रहा है. भिंड में भी मूर्तियां तैयार हैं लेकिन ग्राहकी पर महंगाई का असर है. मूर्ति तैयार करने वाले कारीगर कोरोना से तो राहत में हैं लेकिन महंगाई के चलते ग्राहकों को सस्ते दाम पर मूर्तियां नहीं उपलब्ध करा पा रहे हैं. ऐसे में कहा जा सकता है कि नवरात्र पर भी महंगाई की मार दिखाई दे रही है. नवरात्र में मां दुर्गा के नौ रूप की अलग-अलग झलक वाली शेर पर सवार माता दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करने की परम्परा अंन्तकाल से चली आ रही है.
हर वर्ष देश भर में नवरात्रों की धूम रहती है. खासकर अश्विन मास में पड़ने वाली शारदीय नवरात्र की तैयारियों की अलग ही बात होती है. जगह-जगह पंडालों में माता की बड़ी-बड़ी प्रतिमाओं से लेकर घर-घर में लोग नवरात्र की पड़वा यानी पहले दिन माता की मूर्तियों की स्थापना करते हैं. फिर अगले नौ दिनों तक उनकी पूजा अर्चना के साथ सेवा करते हैं. इन मूर्तियों को स्थापित करने के लिए 15 दिन पहले से ही लोग बुकिंग कर देते हैं. पहले पीओपी की मूर्तियां बनायी जाती थी लेकिन अब ईको फ्रेंड्ली मिट्टी की प्रतिमाएं डिमांड में रहती है.
भिंड में ऐसे बनाते हैं मूर्ति
भिंड जिले में भी कुछ जगहों पर पारंपरिक कारीगर वर्षों से नवरात्र के लिए मां दुर्गा की सुंदर मूर्तियां बनाते आए हैं. मूर्तिकार प्रेम सिंह कुशवाह भिंड में बीते एक दशक से नवरात्र के लिए माता की मूर्तियां तैयार कर बेचते हैं. भिंड शहर में ही उनका छोटा सा कारखाना है. जहां मिट्टी, घास और लकड़ी की मदद से उनके साथी कारीगर मां दुर्गा की मनमोहक और सुंदर छोटी से बड़ी हर साइज की मूर्तियां बनाकर तैयार करते हैं. मूर्ति तैयार होने के बाद उन्हें हाथों से पेंट किया जाता है. पेंट सूखने के बाद तैयार हुई माता की प्रतिमा को बेचने के लिए प्रदर्शित किया जाता है.
लोग छोट मूर्तियों की कर रहे डिमांड
मूर्तिकार प्रेम सिंह कहते हैं कि 3 साल पहले कोरोना के दौरान आयोजनों पर रोक लगने से उनका व्यापार ठप पड़ गया था लेकिन इस साल लोग दोबारा त्यौहार के रंग में रंगे हुए हैं. लगातार ऑर्डर आ रहे हैं समय के साथ-साथ लोगों की सोच में भी बदलाव आया है. पर्यावरण के लिहाज से अब लोग पीओपी की मूर्तियां लेने के बजाय मिट्टियों की मूर्तियां लेना पसंद करते हैं. पीओपी की मूर्तियां सस्ती रहती थीं जबकि मिट्टी की मूर्ति बनाने में लागत भी ज्यादा आती है और वह बिकती भी महंगी हैं. उन्होंने कहा कि बड़ी मुसीबत महंगाई है.
पहले ही महंगाई ने लोगों की कमर तोड़ रखी है. ऐसे में मिट्टी की मूर्तियों के दाम दोगुने तक होते हैं. एक सामान्य तीन फीट की मूर्ति की कीमत 4 से 5 हजार तक है. ऐसे में हर कोई उन्हें नहीं खरीद पा रहा है. उन्होंने यह भी बताया कि घर में बिठाने के लिए भी लोग छोटी मूर्तियों की डिमांड कर रहे हैं. बहरहाल अगर महंगाई को छोड़ दिया जाए तो त्यौहारों की रौनक दोबारा ट्रैक पर लौट रही है. हलांकि जो धूम पहले दिखाई देती थी वह महंगाई के चलते थोड़ी कम नजर आ रही है.
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