Madhya Pradesh News :  एमपी के उज्जैन में 14 साल के वनवास के दौरान भगवान श्री राम और सीता ने शिप्रा तट के किनारे पूर्वजों का श्राद्ध और तर्पण किया था. जिसके बाद शिप्रा नदी (Shipra River) का ये घाट रामघाट (Ramghat) के रूप में नाम से जाना जाता है. आज भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु अपने पूर्वजों की मोक्ष की प्राप्ति के लिए यहां पर तर्पण और पूजा करने के लिए आते हैं.


श्रीराम ने यहां किया था पूर्वजों का तर्पण


मोक्षदायिनी और उत्तरवाहिनी शिप्रा नदी के तट पर श्राद्ध पक्ष ही नहीं बल्कि आम दिनों में भी हजारों की संख्या में श्रद्धालु तर्पण और कर्मकांड के लिए आते हैं. पंडित अवधेश भट्ट के मुताबिक शिप्रा नदी को भगवान महाकाल की गंगा के रूप में जाना जाता है. ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव की तर्जनी उंगली से प्रकट हुई है. पंडित भट्ट के मुताबिक भगवान श्रीराम ने अपने पिता दशरथ और माता कौशल्या का यहां पर तर्पण किया था. अमृत मंथन के दौरान शिप्रा नदी के रामघाट के समीप स्थित सुंदर कुंड में अमृत की बूंदे गिरी थी,  इसलिए शिप्रा नदी का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है. यहां पर भगवान श्री राम ने पूर्वजों का तर्पण किया था, इसलिए शिप्रा का प्रमुख तक रामघाट के रूप में जाना जाता है. 


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गंगा के समान है शिप्रा का महत्व


रामघाट के पंडा संतोष गुरु बंशीवाला के मुताबिक शिप्रा नदी का महत्व गंगा नदी से समान माना गया है. देश में गंगा के अलावा शिप्रा एक ऐसी नदी है जो कि उत्तरवाहिनी है. उत्तर की दिशा देवताओं की दशा मानी जाती है, इसलिए उत्तरवाहिनी शिप्था नदी के किनारे तर्पण और श्राद्ध करने के लिए देशभर के श्रद्धालु उज्जैन आते हैं. शिप्रा नदी को मोक्षदायिनी भी कहा जाता है. शिप्रा नदी के दर्शन मात्र से वैकुंठ का वास होता है.


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