Singrauli News: खनन के विरोध में आंदोलन कर रहे आदिवासी, विभिन्न मांगों को लेकर धरने पर बैठे
सिंगरौली में कई दिनों से ग्रामीण तपती धुप में धरने पर बैठे हैं. ग्रामीणों का आरोप है कि कंपनी के द्वारा बिना मुआवजा भुगतान किये ही खदान में ब्लास्टिंग कराई जा रही है.
MP News: सिंगरौली जिले के मझौली गांव के रहने वाले आदिवासी कई दिनों से तपती धूप में धरने पर बैठे हैं. वो एक स्वर में बस यही कहते हैं कि 'हमको विकास नहीं चाहिए, हम लोग अपना जमीन, जगह और जंगल इन कंपनियों को नही देंगे. हम इसके बिना नहीं जी सकते है. भले हमारी जान चली जाए लेकिन इस जंगल को हम कटने नहीं देंगे'. वे मुस्कराते हुए दृढ़ता के साथ कहते हैं, “हम बीते कई दिनों से ज्यादा समय से यहां बैठे हैं और अंतिम दम तक इस लड़ाई को लड़ने के लिए तैयार हैं.”
ग्रामीणों ने लगाए ये आरोप
इस इलाके में एपीएमडीसी कोल ब्लॉक का कब्जा हो चुका है. धरने पर बैठे ग्रामीणों का आरोप है कि कंपनी के द्वारा बिना मुआवजा भुगतान किये ही खदान में ब्लास्टिंग कराई जा रही है. जिससे आस-पास इलाके के ग्रामीण इस हैवी ब्लास्टिंग से दहसत में होते हैं. उनके घरों में ब्लास्टिंग से पत्थर गिरते हैं जिससे उन्हें हर पल डर का खतरा बना होता है.
पूरी नहीं हुई है प्रक्रिया
बताया जा रहा है कि अभी भु अर्जन की प्रक्रिया भी पूरी नहीं हो पाई है. कोल ब्लॉक द्वारा अधिग्रहित कई गांव के ग्रामीणों को मुआवजा और विस्थापन नीति की प्रक्रिया अभी पूरी नही हो पाई है. बावजूद इसके कोल ब्लॉक की कंपनी खदान में हेवी ब्लास्टिंग कर रही है. जिस वजह से ग्रामीण और आदिवासी लोग बीते कई दिनों से धरने पर बैठे हैं.
किये जा रहे हैं ये दावे
एपीएमडीसी के प्रबंधक लक्ष्मण राव का कहना है कि इस बारे में जिला प्रशासन भू-अर्जन अधिकारी से जानकारी ले सकते हैं. भू-अर्जन की प्रक्रिया अभी चल रही है. दरअसल सिंगरौली जिले के सरई तहसील में 80 फीसदी वनक्षेत्र है जिसमें कोयले का भंडार छुपा हुआ है. यही इन जंगलों पर छाए संकट का कारण भी है. पूरे इलाके में कुल 3 कोल ब्लॉक खदानों के खोले जाने की प्रक्रिया जारी है. इस महान जंगल के इलाके से 10 हजार आदिवासी परिवार जंगल से बेदखल होंगे.
जिनके पास कागजात नहीं उसका क्या होगा?
सरई तहसील की 14 हजार एकड़ जमीन के अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू हो गई है. इससे जंगल में सालों से काबिज आदिवासियों को घर के साथ जमीन से भी बेदखल होना पड़ रहा है. विस्थापित परिवारों के लिए कॉलोनी बनाने के दावे किए जा रहे हैं. यह साफ नहीं किया गया है कि उन आदिवासी परिवारों का क्या होगा जिनके पास जमीन और घर के किसी तरह के कागजात नहीं हैं.
ये भी पढ़ें-