MP News: मेहनत कभी बेकार नहीं जाती, बस जरुरत इस बात की होती है कि आपका लक्ष्य तय हो. मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के स्नेहल वामनकर इसका उदाहरण हैं. उन्होंने पढ़ाई की, इंजीनियरिंग की और कई नौकरियां छोड़ी और आखिरकार उन्हें वह मंजिल मिल गई, जिसकी उन्हें तलाश थी. अब उनकी पहचान एक फ्लाइंग अफसर के तौर पर है. स्नेहल वामनकर का नाता आदिवासी बाहुल्य जिले बैतूल से है. एयरफोर्स में कॉमन एडमिशन टेस्ट (AF-CAT) को भारत की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक माना जाता है, लेकिन उन्होंने इस परीक्षा को पहले ही प्रयास में बिना कोचिंग के उत्तीर्ण कर लिया.


आज किसान का बेटा फ्लाइंग अफसर बन चुका है. उन पर एयर फोर्स में फ्लाइंग अफसर बनने का जुनून ऐसा था कि उन्होंने कई नौकरियां छोड़ दी. दो साल की मेहनत के बाद 21 जनवरी 2023 को पासिंग आउट परेड के बाद वे अफसर बन गए. उन्होंने बताया कि कक्षा आठवीं से 10वीं तक वह स्वतंत्रता दिवस पर परेड में हिस्सा लेना चाहता थे लेकिन हर बार हाईट कम होने के कारण बाहर कर दिए जाते थे. वह बहुत रोए और फिर कालेज में आने के बाद एनसीसी में हिस्सा लिया. यहां पर जी-तोड़ मेहनत करके स्टेट लेवल परेड में तीन बार उनका सिलेक्शन हुआ. इसके अलावा पथ (राजपथ) में भी प्रदेश का प्रतिनिधित्व करते हुए हिस्सा लिया.


फ्लाइंग अफसर बनने के लिए ठुकराई कई नौकरियां


स्नेहल की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी और उन्होंने कालेज जाने के लिए पुरानी साइकिल खरीदी और चार साल तक इसी के सहारे कॉलेज गए. बस में प्रतिदिन 30 से 40 रुपए लगते थे और इतने रुपए उनके पास होते नहीं थे. स्नेहल ने भोपाल की आरजीपीवी यूनिवर्सिटी (RGPV University) कम्प्यूटर साइंस में ग्रेजुएशन किया. पहला मौका उन्हें आईसीआईसीआई बैंक (ICICI Bank) में मिला. यहां ज्वाइनिंग लेटर भी मिला, लेकिन स्नेहल ने ज्वाइन नहीं किया. इसके बाद इंडिगो एयरलाइंस (Indigo Airlines) में एक्जीक्यूटिव के पद पर भोपाल एयरपोर्ट में जॉब मिली. उन्होंने गुड़गांव में ट्रेनिंग ली और वापस भोपाल लौट आए. यहां एक महीने जॉब की और फिर नौकरी छोड़ दी. इसके बाद वेदांता से कॉल लेटर आ गया. ट्रेनिंग के लिए स्नेहल चंडीगढ़ चले गए, पोस्टिंग ओडिशा में हुई तो वहां भी 20 दिन ही काम करके नौकरी छोड़ दी और जुलाई 2020 में एफ-कैट की तैयारी शुरू की. .


स्नेहल की युवाओं के लिए सीख
एफ-कैट की इस परीक्षा में देश भर के 204 प्रतिभागी पास हुए थे. इसमें स्नेहल भी शामिल थे. सिलेक्शन के बाद हैदराबाद एयरफोर्स एकेडमी में उनकी एक साल की ट्रेनिंग हुई और फिर एक साल टेक कॉलेज बेंगलुरु में ट्रेनिंग चली. दो साल की मेहनत के बाद 21 जनवरी को स्नेहल पास आउट हो गए. स्नेहल का कहना है कि युवा अपना एक लक्ष्य रखें. अपने लक्ष्य को हासिल करने के बीच में परेशान न हो. कभी-कभी असफलताएं आती हैं, लेकिन इसका मुकाबला करें. कभी यह न सोचें कि मेरा चयन नहीं होगा, थोड़ा जोखिम लें. स्नेहल के पिता घनश्याम वामनकर के पास 12 एकड़ खेत है.


छोटा भाई दे रहा है मेंस एग्जाम


घनश्याम ने बताया कि मैं ज्यादा पढ़ नहीं सका. बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले यह सोचता था. इसके लिए भरकावाड़ी से रोज बच्चों को बैतूल ले जाता था. इस वजह से खेती पर ध्यान नहीं दे पाता था. खेती बस गुजर बसर के लिए ही हो पाती थी. कई मौके ऐसे आए कि बच्चों की फीस के लिए रुपए नहीं होते थे. अपने खर्च कम किए अभाव में समय काटा. बच्चों ने इस संघर्ष को देखा तो उन्होंने कभी कुछ मांगा नहीं. आज एक बेटा फ्लाइंग अफसर बन गया तो दूसरा तपत्युस एग्रीकल्चर फील्ड ऑफिसर (Agriculture Field Officer) का मेंस एग्जाम दे रहा है. हमारी मेहनत आज सफल हो गई.


स्नेहल के लिए यह गौरव का विषय था कि उन्हें 26 जनवरी को जिस स्कूल ने चीफ गेस्ट बनाकर बुलाया था, वह वही स्कूल था, जिसने कभी 11वीं कक्षा में कम नंबर के कारण दाखिला नहीं दिया था. ये वही स्कूल था, जिसने कम हाइट के कारण स्नेहल को परेड में शामिल नहीं होने दिया था. हालांकि, अब स्कूल प्रशासन का कहना है कि अब वे कभी भी किसी को कम हाइट के कारण परेड में शामिल होने से नहीं रोकेंगे और न ही किसी को कम नंबर होने के कारण एडमिशन देने से रोकेंगे.


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